"घनानन्द": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
छो clean up AWB के साथ |
Rescuing 4 sources and tagging 0 as dead.) #IABot (v2.0.1 |
||
पंक्ति 12:
ये प्रेमसाधना का अत्यधिक पथ पार कर बड़े बड़े साधकों की कोटि में पहुँच गए थे। यमुना के कछारों और ब्रज की वीथियों में भ्रमण करते समय ये कभी आनंदातिरेक में हँसने लगते और कभी भावावेश में अश्रु की धारा इनके नेत्रों से प्रवाहित होने लगती। नागरीदास जैसे श्रेष्ठ महात्मा इनका बड़ा संमान करते थे।
मथुरा पर [[अहमदशाह अब्दाली]] के प्रथम आक्रमण के समय, सं. १८१३ में, ये मार डाले गए। [[विश्वनाथप्रसाद मिश्र]] के मतानुसार उनकी मृत्यु [[अहमदशाह अब्दाली]] के [[मथुरा]] पर किए गए द्वितीय आक्रमण में हुई थी।<ref>{{cite web
== रचनाएँ ==
पंक्ति 80:
अब न घिरत घन आनंद निदान को।
अधर लगे हैं आनि करि कै पयान प्रान,
चाहत चलन ये संदेसों लै सुजान को ॥<ref>{{cite web | url=
</poem>
पंक्ति 87:
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [
* [https://web.archive.org/web/20161111204514/http://sol.du.ac.in/mod/book/tool/print/index.php?id=2513&chapterid=1846 सुजानहित (घनानंद)]
{{रीति काल के कवि}}
|