"दण्ड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (भारत)": अवतरणों में अंतर

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कुछ प्रकार के मानव व्यवहार ऐसे होते हैं जिसकी कानून इजाजत नहीं देता। ऐसे व्यवहार करने पर किसी व्यक्ति को उनके परिणामों का सामना करना पड़ता है। खराब व्यवहार को अपराध या गुनाह कहते हैं और इसके परिणाम को दंड कहा जाता है। जिन व्यवहारों को अपराध माना जाता है उनके बारे में और हर अपराध से संबंधित दंड के बारे में ब्योरा मुख्यतया आइपीसी में दिया गया है।
 
जब कोई अपराध किया जाता है, तो सदैव दो प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें पुलिस अपराध की जांच करने में अपनाती है। एक प्रक्रिया [https://web.archive.org/web/20170318001441/http://nyaaya.in/crpc-victim-in-hindi/ पीड़ित] के संबंध में और दूसरी [https://web.archive.org/web/20170320232420/http://nyaaya.in/crpc-accused-in-hindi/ आरोपी] के संबंध में होती है। सीआरपीसी में इन दोनों प्रकार की प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है।दंड प्रक्रिया संहिता के द्वारा ही अपराधी को दंड दिया जाता है !
 
==कुछ प्रमुख धारायें==
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* '''धारा 55 ए''' : इसके अनुसार अभियुकत की अभिरक्षा रखने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह अभियुक्त के स्वास्थ्य तथा सुरक्षा की युक्तियुक्त देख-रेख करे।
* '''धारा 58''' : इस धारा के अनुसार पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी जिला मजिस्टेट को या उसके ऐसे निर्देश देने पर उपखण्ड मजिस्टेट को, अपने अपने थाने की सीमाओं के भीतर वारण्ट के बिना गिरफ्तार किये अये सब व्यक्तियों कें मामले के रिपोर्ट करेंगे चाहे उन व्यक्तियों की जमानत ले ली गई हो या नहीं।
* '''धारा १०६ से १२४ तक''' : ये धारायें दण्ड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 8 में 'परिशान्ति कायम रखने के लिए और सदाचार के लिए प्रतिभूति' शीर्षक से दी गयी हैं, जिसमें 107/116 धारा परिशान्ति के भंग होने की दशा में लागू होती है। धारा 107 के अनुसार, जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को सूचना मिले कि सम्भाव्य है कि कोई व्यक्ति परिशान्ति भंग करेगा या लोक प्रशान्ति विक्षुब्ध करेगा या कोई ऐसा संदोष कार्य करेगा, जिससे सम्भवत: परिशान्ति भंग हो जाएगी या लोकप्रशान्ति विक्षुब्ध हो जाएगी, तब वह मजिस्ट्रेट यदि उसकी राय में कार्यवाई करने के लिए पर्याप्त आधार हो तो वह ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात उपबन्धित रीति से अपेक्षा कर सकेगा कि वह कारण दर्शित करें कि एक वर्ष से अनधिक इतनी अवधि के लिए, जितनी मजिस्ट्रेट नियत करना ठीक समझे, परिशान्ति कायम रखने के लिए उसे (प्रतिभुओं सहित या रहित) बन्धपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश क्यों न दिया जाय।<ref>[{{Cite web |url=http://www.swatantraawaz.com/news/154.htm |title=क्या होती है 107/116/151 दण्ड प्रक्रिया संहिता?] |access-date=15 मई 2016 |archive-url=https://web.archive.org/web/20160510211610/http://www.swatantraawaz.com/news/154.htm |archive-date=10 मई 2016 |url-status=live }}</ref>
* '''धारा 108''' : राजद्रोहात्मक बातों को फैलाने वाले व्यक्तियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति
* '''धारा 109''' : संदिग्ध और आवारा-गर्द व्यक्तियों से अच्छे व्यवहार के लिए जमानत
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* '''धारा १५४''' : यह धारा संज्ञेय मामलों में इत्तिला से सम्बंधित है। इसके अनुसार-
: ''संज्ञेय अपराध किये जाने से सम्बंधित प्रत्येक इत्तिला,यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को मौखिक रूप से दी गयी हो तो उसके द्वारा या उसके निदेशाधीन लेखबद्ध कर ली जाएगी और इत्तिला देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी और प्रत्येक ऐसी इत्तिला पर,चाहे वह लिखित रूप में दी गयी हो या पूर्वोक्त रूप में लेखबद्ध की गयी हो, उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे जो उसे दे और उसका सार ऐसी पुस्तक में,जो उस अधिकारी द्वारा ऐसे रूप में रखी जाएगी जिसे राज्य सरकार इस निमित्त विहित करे,प्रविष्ट किया जायेगा।''
: इस कानून मैं बच्चों और महिलायों के लिए [https://web.archive.org/web/20170320233508/http://nyaaya.in/crpc-victim-in-hindi/special-measures-for-women/ विशेष प्रावधान] हैं |
 
== इन्हें भी देखें ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
*[https://web.archive.org/web/20190407215005/http://www.bipard.bih.nic.in/ विधि-व्यवस्था संधारण एवं दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधान] (हिन्दी)
*[https://web.archive.org/web/20160327151051/http://www.mha.nic.in/hindi/sites/upload_files/mhahindi/files/pdf/ccp1973.pdf दण्ड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (अंग्रेजी में)]
*[https://web.archive.org/web/20180614061939/http://lawcommissionofindia.nic.in/Hindi_Reports/H269.pdf दण्ड प्रक्रिया संहिता (हिन्दी में )]
*[https://web.archive.org/web/20170318001441/http://nyaaya.in/crpc-victim-in-hindi/ भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली की एक गाइड (मार्गदर्शक)]
{{भारतीय विधि}}