"दशरथ": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Dasaratha sets out toward Angada to invite Rsyasrnga to his abode,C.1597-1605.jpg|thumb|दशरथ ऋष्यश्रृंग को लेने के लिए जाते हुए]]
'''दशरथ''' [[वाल्मीकि]] [[रामायण]] के अनुसार अयोध्या के रघुवंशी (सूर्यवंशी) राजा थे। वह [[इक्ष्वाकु]] कुल के थे तथा प्रभु [[श्रीराम]], जो कि [[विष्णु]] का अवतार थे, के पिता थे। दशरथ के चरित्र में आदर्श महाराजा, पुत्रों को प्रेम करने वाले पिता और अपने वचनों के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति दर्शाया गया है। उनकी तीन पत्नियाँ थीं – [[कौशल्या]], [[सुमित्रा]] तथा [[कैकेयी]]। [[अंग महाजनपद|अंगदेश]] के राजा रोमपाद या चित्ररथ की दत्तक पुत्री शान्ता महर्षि [[ऋष्यशृंग]] की पत्नी थीं। एक प्रसंग के अनुसार शान्ता दशरथ की पुत्री थीं तथा रोमपाद को गोद दी गयीं थीं।<ref>{{cite web | url = http://www.valmikiramayan.net/bala/sarga9/bala_9_frame.htm | title = ऋष्यशृंग | accessdate = 2012-05-07 | archive-url = https://web.archive.org/web/20111120181859/http://valmikiramayan.net/bala/sarga9/bala_9_frame.htm | archive-date = 20 नवंबर 2011 | url-status = live }}</ref><ref>{{cite book |last1=Buck |first1=William |title=Ramayana |date=2000 |publisher=Motilal Banarsidass Publ. |isbn=9788120817203 |url=https://books.google.co.in/books?id=vvuIp2kqIkMC&pg=PA70&dq=ramayana+dasratha&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjYjbHn0LncAhXGi7wKHbmCCMQQ6AEIPjAE#v=onepage&q=ramayana%20dasratha&f=false |accessdate=25 जुलाई 2018 |language=en |archive-url=https://web.archive.org/web/20180725122826/https://books.google.co.in/books?id=vvuIp2kqIkMC&pg=PA70&dq=ramayana+dasratha&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjYjbHn0LncAhXGi7wKHbmCCMQQ6AEIPjAE#v=onepage&q=ramayana%20dasratha&f=false |archive-date=25 जुलाई 2018 |url-status=live }}</ref>
 
== राम का जन्म ==
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दशरथ अधेड़ उम्र तक पहुँच गये थे लेकिन उनका वंश सम्हालने के लिए उनका पुत्र रूपी कोई वंशज नहीं था। उन्होंने पुत्र कामना के लिए [[अश्वमेध यज्ञ]] तथा [[पुत्रकामेष्टि]] यज्ञ कराने का विचार किया। उनके एक मंत्री [[सुमन्त्र]] ने उन्हें सलाह दी कि वह यह यज्ञ अपने दामाद ऋष्यशृंग या साधारण की बोलचाल में शृंगि ऋषि से करवायें। दशरथ के कुल गुरु ब्रह्मर्षि [[वशिष्ठ]] थे। वह उनके धर्म गुरु भी थे तथा धार्मिक मंत्री भी। उनके सारे धार्मिक अनुष्ठानों की अध्यक्षता करने का अधिकार केवल धर्म गुरु को ही था। अतः वशिष्ठ की आज्ञा लेकर दशरथ ने शृंगि ऋषि को यज्ञ की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया।
 
<br />शृंगि ऋषि ने दोनों यज्ञ भलि भांति पूर्ण करवाये तथा पुत्रकामेष्टि यज्ञ के दौरान यज्ञ वेदि से एक आलौकिक '''यज्ञ पुरुष''' या '''प्रजापत्य पुरुष''' उत्पन्न हुआ तथा दशरथ को स्वर्णपात्र में [[नैवेद्य]] का प्रसाद प्रदान करके यह कहा कि अपनी पत्नियों को यह प्रसाद खिला कर वह पुत्र प्राप्ति कर सकते हैं। दशरथ इस बात से अति प्रसन्न हुये और उन्होंने अपनी पट्टरानी कौशल्या को उस प्रसाद का आधा भाग खिला दिया। बचे हुये भाग का आधा भाग (एक चौथाई) दशरथ ने अपनी दूसरी रानी सुमित्रा को दिया। उसके बचे हुये भाग का आधा हिस्सा (एक बटा आठवाँ) उन्होंने कैकेयी को दिया। कुछ सोचकर उन्होंने बचा हुआ आठवाँ भाग भी सुमित्रा को दे दिया। सुमित्रा ने पहला भाग भी यह जानकर नहीं खाया था कि जब तक राजा दशरथ कैकेयी को उसका हिस्सा नहीं दे देते तब तक वह अपना हिस्सा नहीं खायेगी। अब कैकेयी ने अपना हिस्सा पहले खा लिया और तत्पश्चात् सुमित्रा ने अपना हिस्सा खाया।<ref> {{cite web | url = http://www.valmikiramayan.net/bala/sarga16/bala_16_frame.htm | title = राम जन्म | accessdate = 2012-05-07 | archive-url = https://web.archive.org/web/20111120175051/http://valmikiramayan.net/bala/sarga16/bala_16_frame.htm | archive-date = 20 नवंबर 2011 | url-status = live }}</ref> इसी कारण राम (कौशल्या से), [[भरत]] (कैकेयी से) तथा [[लक्ष्मण]] व [[शत्रुघ्न]] (सुमित्रा से) का जन्म हुआ।
 
== दशरथ का देहावसान ==
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पाँचवीं अवस्था जो कि वैकल्पिक है, सन्यास की है, जब व्यक्ति सांसारिक मोह माया के परे जाकर केवल भगवत् स्मरण करता है। इस अवस्था के लिए यह अनिवार्य है कि मनुष्य ने अपने सारे उत्तरदायित्व भलि भांति निभा लिए हों। इस अवस्था में मनुष्य अरण्य में जाकर ऋषियों की शरण लेता है।) अतः उनका कैकेयी के प्रति वासना जागना स्वाभाविक था और उस वासना के लिए जो भी बन पड़े वह निभाने के लिए राजा दशरथ तत्पर रहते थे। अब कैकेयी ने राजा दशरथ से वह दो वर मांगे। एक से स्वयं के पुत्र भरत को अयोध्या की राजगद्दी तथा दूसरे से राम को चौदह वर्ष का वनवास। राजा दशरथ यह बर्दाशत न कर सके। उन्होंने कैकेयी को बहुत मनाने की कोशिश की। उसे बुरा-भला भी कहा। लेकिन जब कैकेयी ने उनकी एक न मानी तो वह आहत होकर वहीं कोपभवन में गिर गये।<ref>{{Cite web|url=https://www.jagran.com/haryana/sirsa-14839335.html|title=पुत्र वियोग में दशरथ देहावसान, केवट प्रसंग व भरत मिलाप का मंचन|last=|first=|date=|website=जागरण|archive-url=|archive-date=|dead-url=|access-date=}}</ref><br />
[[चित्र:Rama taking leave of Dasharatha.jpg|thumb|left|राम दशरथ से वन जाने की आज्ञा लेते हुये]]
राम को जब इस विषय की आभास हुआ तो वह स्वयं ही दशरथ के समीप गये और उनसे आग्रह किया कि रघुकुल की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए वह कैकेयी को दोनों वर प्रदान कर दें। उन्होंने हठ करके राजा को इन बातों के लिए मना लिया और संन्यासियों के वस्त्र पहनकर [[सीता]] तथा [[लक्ष्मण]] के साथ वन की ओर निकल पड़े। दशरथ यह सदमा बर्दाश्त न कर सके और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिये।<ref>{{cite web | url = http://www.valmikiramayan.net/ayodhya/sarga65/ayodhya_65_frame.htm | title = दशरथ का देहावसान | accessdate = 2012-05-07 | archive-url = https://web.archive.org/web/20111120184336/http://valmikiramayan.net/ayodhya/sarga65/ayodhya_65_frame.htm | archive-date = 20 नवंबर 2011 | url-status = live }}</ref><br />
रामायण में दशरथ का नाम इसके बाद तभी आया है जब राम अपने आपको दशरथ-पुत्र कहकर या तो संबोधित करते हैं या फिर अपना इस संदर्भ में परिचय देते हैं।
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"https://hi.wikipedia.org/wiki/दशरथ" से प्राप्त