"दादासाहब फालके": अवतरणों में अंतर

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''' धुंडिराज गोविन्द फालके''' उपाख्य '''दादासाहब फालके''' ([[मराठी भाषा|मराठी]] : दादासाहेब फाळके) (३० अप्रैल १८७० - १६ फ़रवरी १९४४) वह महापुरुष हैं जिन्हें भारतीय फिल्म उद्योग का 'पितामह' कहा जाता है। <ref>{{cite book |url=https://books.google.com/books/about/Dadasaheb_Phalke_the_father_of_Indian_ci.html?id=zTZnAAAAMAAJ&redir_esc=y |title=Dadasaheb Phalke, the father of Indian cinema – Bāpū Vāṭave, National Book Trust – Google Books |publisher=Books.google.co.in |date= |accessdate=17 November 2012 |archive-url=https://web.archive.org/web/20161224223911/https://books.google.com/books/about/Dadasaheb_Phalke_the_father_of_Indian_ci.html?id=zTZnAAAAMAAJ&redir_esc=y |archive-date=24 दिसंबर 2016 |url-status=live }}</ref><ref>{{cite news |author=Sachin Sharma, TNN 28 June 2012, 03.36AM IST |url=http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2012-06-28/vadodara/32456429_1_godhra-dadasaheb-phalke-father-of-indian-cinema |title=Godhra forgets its days spent with Dadasaheb Phalke – Times of India |publisher=Articles.timesofindia.indiatimes.com |date=28 June 2012 |accessdate=17 November 2012 |archive-url=https://web.archive.org/web/20131101035654/http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2012-06-28/vadodara/32456429_1_godhra-dadasaheb-phalke-father-of-indian-cinema |archive-date=1 नवंबर 2013 |url-status=live }}</ref><ref>{{cite book|last=Vilanilam|first=J. V.|title=Mass Communication in India: A Sociological Perspective|year=2005|publisher=Sage Publications|location=New Delhi|isbn=81-7829-515-6|page=128|url=https://books.google.com/books?id=XBU6pN7toHsC&pg=PA128&dq=dadasaheb+phalke+father+indian+cinema#v=onepage&q=dadasaheb%20phalke%20father%20indian%20cinema&f=false|access-date=30 अप्रैल 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20170320160355/https://books.google.com/books?id=XBU6pN7toHsC&pg=PA128&dq=dadasaheb+phalke+father+indian+cinema#v=onepage&q=dadasaheb%20phalke%20father%20indian%20cinema&f=false|archive-date=20 मार्च 2017|url-status=live}}</ref>
 
दादा साहब फालके, सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से प्रशिक्षित सृजनशील कलाकार थे। वह मंच के अनुभवी अभिनेता थे, शौकिया जादूगर थे। कला भवन [[वड़ोदरा|बड़ौदा]] से फोटोग्राफी का एक पाठ्यक्रम भी किया था। उन्होंने फोटो केमिकल प्रिंटिंग की प्रक्रिया में भी प्रयोग किये थे। प्रिंटिंग के जिस कारोबार में वह लगे हुए थे, 1910 में उनके एक साझेदार ने उससे अपना आर्थिक सहयोग वापस ले लिया। उस समय इनकी उम्र 40 वर्ष की थी कारोबार में हुई हानि से उनका स्वभाव चिड़िचड़ा हो गया था। उन्होंने क्रिसमस के अवसर पर ‘ईसामसीह’ पर बनी एक फिल्म देखी। फिल्म देखने के दौरान ही फालके ने निर्णय कर लिया कि उनकी जिंदगी का मकसद फिल्मकार बनना है। उन्हें लगा कि रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक महाकाव्यों से फिल्मों के लिए अच्छी कहानियां मिलेंगी। उनके पास सभी तरह का हुनर था। वह नए-नए प्रयोग करते थे। अतः प्रशिक्षण का लाभ उठाकर और अपनी स्वभावगत प्रकृति के चलते प्रथम भारतीय चलचित्र बनाने का असंभव कार्य करनेवाले वह पहले व्यक्ति बने।
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उन्होंने 5 पौंड में एक सस्ता कैमरा खरीदा और शहर के सभी सिनेमाघरों में जाकर फिल्मों का अध्ययन और विश्लेषण किया। फिर दिन में 20 घंटे लगकर प्रयोग किये। ऐसे उन्माद से काम करने का प्रभाव उनकी सेहत पर पड़ा। उनकी एक आंख जाती रही। उस समय उनकी पत्नी सरस्वती बाई ने उनका साथ दिया। सामाजिक निष्कासन और सामाजिक गुस्से को चुनौती देते हुए उन्होंने अपने जेवर गिरवी रख दिये (40 साल बाद यही काम सत्यजित राय की पत्नी ने उनकी पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ बनाने के लिए किया)। उनके अपने मित्र ही उनके पहले आलोचक थे। अतः अपनी कार्यकुशलता को सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक बर्तन में मटर बोई। फिर इसके बढ़ने की प्रक्रिया को एक समय में एक फ्रेम खींचकर साधारण कैमरे से उतारा। इसके लिए उन्होंने टाइमैप्स फोटोग्राफी की तकनीक इस्तेमाल की। इस तरह से बनी अपनी पत्नी की जीवन बीमा पॉलिसी गिरवी रखकर, ऊंची ब्याज दर पर ऋण प्राप्त करने में वह सफल रहे।
 
फरवरी 1912 में, फिल्म प्रोडक्शन में एक क्रैश-कोर्स करने के लिए वह इंग्लैण्ड गए और एक सप्ताह तक सेसिल हेपवर्थ के अधीन काम सीखा। कैबाउर्न ने विलियमसन कैमरा, एक फिल्म परफोरेटर, प्रोसेसिंग और प्रिंटिंग मशीन जैसे यंत्रों तथा कच्चा माल का चुनाव करने में मदद की। इन्होंने ‘राजा हरिशचंद्र’ बनायी। चूंकि उस दौर में उनके सामने कोई और मानक नहीं थे, अतः सब कामचलाऊ व्यवस्था उन्हें स्वयं करनी पड़ी। अभिनय करना सिखाना पड़ा, दृश्य लिखने पड़े, फोटोग्राफी करनी पड़ी और फिल्म प्रोजेक्शन के काम भी करने पड़े। महिला कलाकार उपलब्ध न होने के कारण उनकी सभी नायिकाएं पुरुष कलाकार थे (वेश्या चरित्र को छोड़कर)। होटल का एक पुरुष रसोइया सालुंके ने भारतीय फिल्म की पहली नायिका की भूमिका की। शुरू में शूटिंग दादर के एक स्टूडियो में सेट बनाकर की गई। सभी शूटिंग दिन की रोशनी में की गई क्योंकि वह एक्सपोज्ड फुटेज को रात में डेवलप करते थे और प्रिंट करते थे (अपनी पत्नी की सहायता से)। छह माह में 3700 फीट की लंबी फिल्म तैयार हुई। 21 अप्रैल 1913 को ओलम्पिया सिनेमा हॉल में यह रिलीज की गई। पश्चिमी फिल्म के नकचढ़े दर्शकों ने ही नहीं, बल्कि प्रेस ने भी इसकी उपेक्षा की। लेकिन फालके जानते थे कि वे आम जनता के लिए अपनी फिल्म बना रहे हैं, अतः यह फिल्म जबरदस्त हिट रही।<ref>{{cite news |author=PTI |url=http://timesofindia.indiatimes.com/news/india/Harishchandrachi-Factory-Indias-entry-for-Oscars/articleshow/5033889.cms |title='Harishchandrachi Factory' India's entry for Oscars – Times of India |publisher=Timesofindia.indiatimes.com |date=20 September 2009 |accessdate=17 November 2012 |archive-url=https://web.archive.org/web/20151111002036/http://timesofindia.indiatimes.com/news/india/Harishchandrachi-Factory-Indias-entry-for-Oscars/articleshow/5033889.cms |archive-date=11 नवंबर 2015 |url-status=live }}</ref><ref>{{cite web|author=Express News Service |url=http://www.expressindia.com/latest-news/harishchandrachi-factory-to-tell-story-behind-making-of-indias-first-feature-film/304892/ |title=Harishchandrachi Factory to tell story behind making of India's first feature film |publisher=Express India |date= |accessdate=17 November 2012 |url-status=dead |archiveurl=https://web.archive.org/web/20120930065757/http://www.expressindia.com/latest-news/harishchandrachi-factory-to-tell-story-behind-making-of-indias-first-feature-film/304892/ |archivedate=30 September 2012 |df=dmy }}</ref>
 
फालके के फिल्मनिर्मिती के प्रयास तथा पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र के निर्माण पर [[मराठी भाषा|मराठी]] में एक फिचर फिल्म 'हरिश्चंद्राची फॅक्टरी' २००९ में बनी, जिसे देश विदेश में सराहा गया।
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उनमें चलचित्र-निर्माण की ललक इतनी बड़ गई कि उन्होंने चलचित्र-निर्माण संबंधी कई पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन किया और कैमरा लेकर चित्र खींचना भी शुरु कर दिया।
जब दादासाहब ने चलचित्र-निर्माण में अपना ठोस कदम रखा तो इन्हें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जैसे-तैसे कुछ पैसों की व्यवस्था कर चलचित्र-निर्माण संबंधी उपकरणों को खरीदने के लिए दादासाहब लंदन पहुँचे। वे वहाँ बाइस्कोप सिने साप्ताहिक के संपादक की मदद से कुछ चलचित्र-निर्माण संबंधी उपकरण खरीदे और १९१२ के अप्रैल माह में वापस मुम्बई आ गए<ref>{{cite web|author=Cybertech |url=http://www.nashik.com/halloffame/tribute/phalke.html |title=Hall of Fame : Tribute : Dadasaheb Phalke |publisher=Nashik.com |accessdate=5 January 2012 |url-status=dead |archiveurl=https://web.archive.org/web/20120125235059/http://nashik.com/halloffame/tribute/phalke.html |archivedate=25 January 2012 |df=dmy }}</ref>। उन्होने दादर में अपना स्टूडियो बनाया और फालके फिल्म के नाम से अपनी संस्था स्थापित की। आठ महीने की कठोर साधना के बाद दादासाहब के द्वारा पहली मूक फिल्म "राजा हरिश्चंन्द्र" का निर्माण हुआ। इस चलचित्र (फिल्म) के निर्माता, लेखक, कैमरामैन इत्यादि सबकुछ दादासाहब ही थे। इस फिल्म में काम करने के लिए कोई स्त्री तैयार नहीं हुई अतः लाचार होकर तारामती की भूमिका के लिए एक पुरुष पात्र ही चुना गया। इस चलचित्र में दादासाहब स्वयं नायक (हरिश्चंन्द्र) बने और रोहिताश्व की भूमिका उनके सात वर्षीय पुत्र भालचन्द्र फालके ने निभाई। यह चलचित्र सर्वप्रथम दिसम्बर १९१२ में कोरोनेशन थिएटर में प्रदर्शित किया गया। इस चलचित्र के बाद दादासाहब ने दो और पौराणिक फिल्में "भस्मासुर मोहिनी" और "सावित्री" बनाई। १९१५ में अपनी इन तीन फिल्मों के साथ दादासाहब विदेश चले गए। लंदन में इन फिल्मों की बहुत प्रशंसा हुई। कोल्हापुर नरेश के आग्रह पर १९३७ में दादासाहब ने अपनी पहली और अंतिम सवाक फिल्म "गंगावतरण" बनाई। दादासाहब ने कुल १२५ फिल्मों का निर्माण किया। १६ फ़रवरी १९४४ को ७४ वर्ष की अवस्था में पवित्र तीर्थस्थली नासिक में भारतीय चलचित्र-जगत का यह अनुपम सूर्य सदा के लिए अस्त हो गया। भारत सरकार उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष चलचित्र-जगत के किसी विशिष्ट व्यक्ति को 'दादा साहब फालके पुरस्कार' प्रदान करती है।<ref>{{cite news | url=http://www.thehindu.com/features/cinema/pran-chosen-for-dada-saheb-phalke-award/article4610293.ece | location=Chennai, India | work=The Hindu | title=Pran chosen for Dada Saheb Phalke award | date=12 April 2013 | access-date=30 अप्रैल 2018 | archive-url=https://web.archive.org/web/20190909025432/https://www.thehindu.com/features/cinema/pran-chosen-for-dada-saheb-phalke-award/article4610293.ece | archive-date=9 सितंबर 2019 | url-status=live }}</ref>
 
==प्रमुख फिल्में ==
दादासाहब नें १९ साल के लंबे करियर में कुल ९५ फिल्में और २७ लघु फिल्मे बनाईं<ref name="Navbharat Times 2018">{{cite web | title=गूगल डूडल में आज दादसाहब फाल्के को किया जा रहा है याद, जानें क्यों है खास | website=Navbharat Times | date=३० अप्रैल २०१८ | url=https://navbharattimes.indiatimes.com/tech/computer-mobile/google-doodle-celebrates-the-148th-birthday-of-dadasaheb-phalke/articleshow/63966793.cms | language = hi | accessdate=३० अप्रैल २०१८ | archive-url=https://web.archive.org/web/20180430183253/https://navbharattimes.indiatimes.com/tech/computer-mobile/google-doodle-celebrates-the-148th-birthday-of-dadasaheb-phalke/articleshow/63966793.cms | archive-date=30 अप्रैल 2018 | url-status=live }}</ref>।
* [[राजा हरिश्चन्द्र (फ़िल्म) |राजा हरिश्चंद्र]] (१९१३)<ref>{{cite news |url=https://movies.nytimes.com/movie/249829/Raja-Harishchandra/overview |title=Raja-Harishchandra - Trailer from - Cast - Showtimes - NYTimes.com |publisher=Movies.nytimes.com |date= |accessdate=17 November 2012 |url-status=dead |archiveurl=https://web.archive.org/web/20121105210228/http://movies.nytimes.com/movie/249829/Raja-Harishchandra/overview |archivedate=5 November 2012 |df=dmy }}</ref>
* मोहिनी भास्मासुर (१९१३)