"ध्यानचंद सिंह": अवतरणों में अंतर

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१९७९) भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान थे। [[भारत]] एवं विश्व हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाडड़ियों में उनकी गिनती होती है। वे तीन बार [[ओलम्पिक]] के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे ( जिनमें १९२८ का [[१९२८ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत|एम्सटर्डम ओलम्पिक]] , १९३२ का [[१९३२ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत|लॉस एंजेल्स ओलम्पिक]] एवं १९३६ का [[१९३६ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत|बर्लिन ओलम्पिक]])। उनकी जन्मतिथि को भारत में "राष्ट्रीय खेल दिवस" के के रूप में मनाया जाता है। <ref name="test1">children.co.in/india/festivals/national-sports-day.htm</ref>में
 
उन्हें '''हॉकी का जादूगर''' ही कहा जाता है। उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे। जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। उन्हें १९५६ में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान [[पद्मभूषण]] से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा बहुत से संगठन और प्रसिद्ध लोग समय-समय पर उन्हे 'भारतरत्न' से सम्मानित करने की माँग करते रहे हैं किन्तु अब केन्द्र में [[भारतीय जनता पार्टी]] की सरकार होने से उन्हे यह सम्मान प्रदान किये जाने की सम्भावना बहुत बढ़ गयी है।<ref>[{{Cite web |url=http://zeenews.india.com/hindi/sports/sports-ministry-write-letter-to-pmo-request-for-bharat-ratna-to-dhyan-chand/329225 |title=खेल मंत्रालय ने पीएमओ को लिखी चिट्ठी, हॉकी के जादूगर ध्यानचंद को 'भारत रत्न' देने का आग्रह] |access-date=13 अगस्त 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170813152154/http://zeenews.india.com/hindi/sports/sports-ministry-write-letter-to-pmo-request-for-bharat-ratna-to-dhyan-chand/329225 |archive-date=13 अगस्त 2017 |url-status=live }}</ref><ref>[http://www.amarujala.com/sports/hockey/sports-minister-vijay-goel-writes-to-pmo-requesting-bharat-ratna-for-dhyan-chand खेल मंत्री विजय गोयल ने प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी, ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20170813143639/http://www.amarujala.com/sports/hockey/sports-minister-vijay-goel-writes-to-pmo-requesting-bharat-ratna-for-dhyan-chand |date=13 अगस्त 2017 }}
 
== जीवन परिचय ==
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== खिलाडी जीवन ==
ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है। गेंद इस कदर उनकी स्टिक से चिपकी रहती कि प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को अक्सर आशंका होती कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं। यहाँ तक हॉलैंड में उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गई। जापान में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक से जिस तरह गेंद चिपकी रहती थी उसे देख कर उनकी हॉकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात कही गई। ध्यानचंद की हॉकी की कलाकारी के जितने किस्से हैं उतने शायद ही दुनिया के किसी अन्य खिलाड़ी के बाबत सुने गए हों। उनकी हॉकी की कलाकारी देखकर हॉकी के मुरीद तो वाह-वाह कह ही उठते थे बल्कि प्रतिद्वंद्वी टीम के खिलाड़ी भी अपनी सुधबुध खोकर उनकी कलाकारी को देखने में मशगूल हो जाते थे। उनकी कलाकारी से मोहित होकर ही जर्मनी के रुडोल्फ हिटलर सरीखे जिद्दी सम्राट ने उन्हें जर्मनी के लिए खेलने की पेशकश कर दी थी। लेकिन ध्यानचंद ने हमेशा भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा। वियना में ध्यानचंद की चार हाथ में चार हॉकी स्टिक लिए एक मूर्ति लगाई और दिखाया कि ध्यानचंद कितने जबर्दस्त खिलाड़ी थे।<ref name="test3">{{Cite web |url=http://news.bbc.co.uk/sportacademy/hi/sa/hockey/features/newsid_3490000/3490504.stm |title=संग्रहीत प्रति |access-date=2 फ़रवरी 2012 |archive-url=https://web.archive.org/web/20150901035958/http://news.bbc.co.uk/sportacademy/hi/sa/hockey/features/newsid_3490000/3490504.stm |archive-date=1 सितंबर 2015 |url-status=live }}</ref>
 
जब ये ब्राह्मण रेजीमेंट में थे उस समय मेजर बले तिवारी से, जो हाकी के शौकीन थे, हाकी का प्रथम पाठ सीखा। सन्‌ 1922 ई. से सन्‌ 1926 ई. तक सेना की ही प्रतियोगिताओं में हाकी खेला करते थे। दिल्ली में हुई वार्षिक प्रतियोगिता में जब इन्हें सराहा गया तो इनका हौसला बढ़ा। 13 मई सन्‌ 1926 ई. को न्यूजीलैंड में पहला मैच खेला था। न्यूजीलैंड में 21 मैच खेले जिनमें 3 टेस्ट मैच भी थे। इन 21 मैचों में से 18 जीते, 2 मैच अनिर्णीत रहे और और एक में हारे। पूरे मैचों में इन्होंने 192 गोल बनाए। उनपर कुल 24 गोल ही हुए। 27 मई सन्‌ 1932 ई. को [[श्रीलंका]] में दो मैच खेले। ए मैच में 21-0 तथा दूसरे में 10-0 से विजयी रहे। सन्‌ 1935 ई. में भारतीय हाकी दल के [[न्यूजीलैंड]] के दौरे पर इनके दल ने 49 मैच खेले। जिसमें 48 मैच जीते और एक वर्षा होने के कारण स्थगित हो गया। अंतर्राष्ट्रीय मैचों में उन्होंने 400 से अधिक गोल किए। अप्रैल, 1949 ई. को प्रथम कोटि की हाकी से संन्यास ले लिया।
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== ओलंपिक खेल ==
=== एम्सटर्डम (1928) ===
1928 में एम्सटर्डम ओलम्पिक खेलों में पहली बार भारतीय टीम ने भाग लिया। एम्स्टर्डम में खेलने से पहले भारतीय टीम ने इंगलैंड में 11 मैच खेले और वहाँ ध्यानचंद को विशेष सफलता प्राप्त हुई। एम्स्टर्डम में भारतीय टीम पहले सभी मुकाबले जीत गई। 17 मई सन्‌ 1928 ई. को [[आस्ट्रिया]] को 6-0, 18 मई को [[बेल्जियम]] को 9-0, 20 मई को [[डेनमार्क]] को 5-0, 22 मई को [[स्विट्जरलैंड]] को 6-0 तथा 26 मई को फाइनल मैच में [[हालैंड]] को 3-0 से हराकर विश्व भर में हॉकी के चैंपियन घोषित किए गए और 29 मई को उन्हें पदक प्रदान किया गया। फाइनल में दो गोल ध्यानचंद ने किए।<ref name="test4">{{Cite web |url=http://www.bharatiyahockey.org/olympics/golden/1928.htm |title=संग्रहीत प्रति |access-date=24 मार्च 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20080914085003/http://www.bharatiyahockey.org/olympics/golden/1928.htm |archive-date=14 सितंबर 2008 |url-status=dead }}</ref>
 
=== लास एंजिल्स (1932) ===
[[1932 की बॉलीवुड फिल्में|1932]] में लास एंजिल्स में हुई ओलम्पिक प्रतियोगिताओं में भी ध्यानचंद को टीम में शामिल कर लिया गया। उस समय सेंटर फॉरवर्ड के रूप में काफ़ी सफलता और शोहरत प्राप्त कर चुके थे। तब सेना में वह 'लैंस-नायक' के बाद नायक हो गये थे। इस दौरे के दौरान भारत ने काफ़ी मैच खेले। इस सारी यात्रा में ध्यानचंद ने 262 में से 101 गोल स्वयं किए। निर्णायक मैच में भारत ने अमेरिका को 24-1 से हराया था। तब एक अमेरिका समाचार पत्र ने लिखा था कि भारतीय हॉकी टीम तो पूर्व से आया तूफान थी। उसने अपने वेग से अमेरिकी टीम के ग्यारह खिलाड़ियों को कुचल दिया।<ref name="test5">{{Cite web |url=http://www.bharatiyahockey.org/olympics/golden/1932.htm |title=संग्रहीत प्रति |access-date=24 मार्च 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20161109184401/http://www.bharatiyahockey.org/olympics/golden/1932.htm |archive-date=9 नवंबर 2016 |url-status=live }}</ref>
 
=== बर्लिन (1936) ===
[[चित्र:Dhyan Chand with the ball vs. France in the 1936 Olympic semi-finals.jpg|right|thumb|300px|१९३६ के बर्लिन ओलम्पिक के समय ध्यानचन्द]]
[[चित्र:Dhyan Chand 1936 final.jpg|right|thumb|300px|१९३६ के बर्लिन ओलम्पिक के हॉकी के निर्णायक मैच में जर्मनी के विरुद्ध गोल दागते हुए ध्यानचन्द|कड़ी=Special:FilePath/Dhyan_Chand_1936_final.jpg]]
1936 के बर्लिन ओलपिक खेलों में ध्यानचंद को भारतीय टीम का कप्तान चुना गया। इस पर उन्होंने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा- "मुझे ज़रा भी आशा नहीं थी कि मैं कप्तान चुना जाऊँगा" खैर, उन्होंने अपने इस दायित्व को बड़ी ईमानदारी के साथ निभाया। अपने जीवन का अविस्मरणिय संस्मरण सुनाते हुए वह कहते हैं कि 17 जुलाई के दिन जर्मन टीम के साथ हमारे अभ्यास के लिए एक प्रदर्शनी मैच का आयोजन हुआ। यह मैच बर्लिन में खेला गया। हम इसमें चार के बदले एक गोल से हार गए। इस हार से मुझे जो धक्का लगा उसे मैं अपने जीते-जी नहीं भुला सकता। जर्मनी की टीम की प्रगति देखकर हम सब आश्चर्यचकित रह गए और हमारे कुछ साथियों को तो भोजन भी अच्छा नहीं लगा। बहुत-से साथियों को तो रात नींद नहीं आई। 5 अगस्त के दिन भारत का हंगरी के साथ ओलम्पिक का पहला मुकाबला हुआ, जिसमें भारतीय टीम ने हंगरी को चार गोलों से हरा दिया। दूसरे मैच में, जो कि 7 अगस्त को खेला गया, भारतीय टीम ने जापान को 9-0 से हराया और उसके बाद 12 अगस्त को फ्रांस को 10 गोलों से हराया। 15 अगस्त के दिन भारत और जर्मन की टीमों के बीच फाइनल मुकाबला था। यद्यपि यह मुकाबला 14 अगस्त को खेला जाने वाला था पर उस दिन इतनी बारिश हुई कि मैदान में पानी भर गया और खेल को एक दिन के लिए स्थगित कर दिया गया। अभ्यास के दौरान जर्मनी की टीम ने भारत को हराया था, यह बात सभी के मन में बुरी तरह घर कर गई थी। फिर गीले मैदान और प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण हमारे खिलाड़ी और भी निराश हो गए थे। तभी भारतीय टीम के मैनेजर पंकज गुप्ता को एक युक्ति सूझी। वह खिलाड़ियों को ड्रेसिंग रूम में ले गए और सहसा उन्होंने तिरंगा झण्डा हमारे सामने रखा और कहा कि इसकी लाज अब तुम्हारे हाथ है। सभी खिलाड़ियों ने श्रद्धापूर्वक तिरंगे को सलाम किया और वीर सैनिक की तरह मैदान में उतर पड़े। भारतीय खिलाड़ी जमकर खेले और जर्मन की टीम को 8-1 से हरा दिया। उस दिन सचमुच तिरंगे की लाज रह गई। उस समय कौन जानता था कि 15 अगस्त को ही भारत का स्वतन्त्रता दिवस बनेगा।<ref name="test6">{{Cite web |url=http://www.bharatiyahockey.org/olympics/golden/1936.htm |title=संग्रहीत प्रति |access-date=24 मार्च 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20161109183816/http://www.bharatiyahockey.org/olympics/golden/1936.htm |archive-date=9 नवंबर 2016 |url-status=live }}</ref>
 
== हिटलर व ब्रैडमैन ==
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== सम्मान ==
उन्हें १९५६ में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान [[पद्मभूषण]] से सम्मानित किया गया था। ''' ध्यान चंद ''' को [[खेल]] के क्षेत्र में [[१९५६]] में [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया गया था। उनका जन्म 29 अगस्त 1905 [[इलाहाबाद]], संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत में हुआ था। उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है। इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। भारतीय ओलम्पिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था। फिलहाल ध्यानचंद को [[भारत रत्न]] देने की मांग भी की जा रही है। <ref name="test8">{{Cite web |url=http://indiatoday.intoday.in/story/sachin-tendulkar-dhyan-chand-bharat-ratna/1/170462.html |title=संग्रहीत प्रति |access-date=2 फ़रवरी 2012 |archive-url=https://web.archive.org/web/20120207144016/http://indiatoday.intoday.in/story/sachin-tendulkar-dhyan-chand-bharat-ratna/1/170462.html |archive-date=7 फ़रवरी 2012 |url-status=live }}</ref>
[[भारत रत्न]] को लेकर ध्यानचंद के नाम पर अब भी विवाद जारी है।<ref>{{cite news|title=भारत रत्न के लिए भेजा गया था मेजर ध्यानचंद का नाम |url=http://www.patrika.com/news/upa-government-made-last-minute-change-to-ignore-dhyan-chand-for-bharat-ratna/1020773|work=पत्रिका समाचार समूह |date=३० जुलाई २०१४|accessdate=३० जुलाई २०१४|archive-url=https://web.archive.org/web/20140731153928/http://www.patrika.com/news/upa-government-made-last-minute-change-to-ignore-dhyan-chand-for-bharat-ratna/1020773|archive-date=31 जुलाई 2014|url-status=live}}</ref>
 
== सन्दर्भ ==
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== बाहरी कड़ियाँ==
*[httphttps://wwwweb.archive.org/web/20131221002737/http://ranchiexpress.com/232516 भारतीय हॉकी के महानायक थे ध्यानचंद]
 
{{१९५६ पद्म भूषण }}