"नागरीप्रचारिणी पत्रिका": अवतरणों में अंतर

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'''नागरीप्रचारिणी पत्रिका''' का प्रकाशन [[नागरीप्रचारिणी सभा]] द्वारा १८९६ में आरम्भ हुआ था। उस समय यह [[हिन्दी]] की त्रैमासिक पत्रिका थी। [[श्यामसुन्दर दास]], महामहोपाध्याय [[सुधाकर द्विवेदी]], [[कालिदास|कालीदास]] और [[राधाकृष्ण दास]] इसके सम्पादक थे। १९०७ ई. में यह मासिक पत्रिका में परिवर्तित कर दी गई और इसके सम्पादक श्यामसुन्दर दास, [[रामचन्द्र शुक्ल]], [[रामचन्द्र शर्मा]] और [[वेणीप्रसाद]] बनाए गए।
 
नागरी प्रचारिणी पत्रिका हिंदी की सबसे प्राचीन शोध पत्रिका है। इसका सारे जगत में खोज जगत में मान है। इसका शीर्षक होता था, 'नागरीप्रचारिणी पत्रिका, अर्थात् प्राचीन शोधसम्बन्धी त्रैमासिक पत्रिका'। इस पत्रिका के संपादक मंडल में बाबू [[श्यामसुन्दर दास|श्याम सुंदर दास]], [[गौरीशंकर हीराचंद ओझा]], [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य रामचंद्र शुक्ल]], [[चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी'|चंद्रधर शर्मा गुलेरी]], [[जयचन्द विद्यालंकार|जयचंद विद्यालंकार]], [[संपूर्णानन्द|डॉ. सम्पूर्णानन्द]], [[नरेन्द्र देव|आचार्य नरेन्द्र देव]], [[हजारीप्रसाद द्विवेदी|हजारी प्रसाद द्विवेदी]], [[वासुदेव शरण अग्रवाल|वासुदेवशरण अग्रवाल]]<nowiki/>-जैसे विद्वान् रहे। <ref>[{{Cite web |url=https://www.patrika.com/news/varanasi/great-contribution-of-nagri-pracharini-sabha-for-regeneration-of-hindi-1399026 |title=नौवीं कक्षा के छात्र जिन्होंने रच दिया इतिहास] |access-date=27 नवंबर 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20171201131809/https://www.patrika.com/news/varanasi/great-contribution-of-nagri-pracharini-sabha-for-regeneration-of-hindi-1399026/ |archive-date=1 दिसंबर 2017 |url-status=live }}</ref>
 
==सन्दर्भ==