"नारायण पण्डित": अवतरणों में अंतर

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''' पंचतन्त्रान्तथाडन्यस्माद् ग्रंथादाकृष्य लिख्यते।'''
 
इसके आश्रयदाता का नाम धवलचंद्रजी है। धवलचंद्रजी बंगाल के माण्डलिक राजा थे तथा नारायण पण्डित राजा धवलचंद्रजी के राजकवि थे।<ref>[{{Cite web |url=http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/hitop.htm |title=नारायण पण्डित बारे जानकारी] |access-date=13 अगस्त 2010 |archive-url=https://web.archive.org/web/20100826090716/http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/hitop.htm |archive-date=26 अगस्त 2010 |url-status=dead }}</ref> मंगलाचरण तथा समाप्ति श्लोक से नारायण की शिव में विशेष आस्था प्रकट होती है।
 
उनके समय के बारे में ठीक से ज्ञात नहीं है। कथाओं से प्राप्त साक्ष्यों के विश्लेषण के आधार पर डॉ॰ फ्लीट कर मानना है कि इसकी रचना काल ११ वीं शताब्दी के आस- पास होना चाहिये। हितोपदेश का नेपाली हस्तलेख १३७३ ई. का प्राप्त है। वाचस्पति गैरोलाजी ने इसका रचनाकाल १४ वीं शती के आसपास माना है। इन तथ्यों से नारायण पण्डित का काल ११वीं से १४वीं शताब्दी के आसपास का मालूम होता है।