"पदुमलाल पन्नालाल बख्शी": अवतरणों में अंतर
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'''डॉ॰ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी''' (27 मई 1894-28 दिसम्बर 1971) जिन्हें ‘मास्टरजी’ के नाम से भी जाना जाता है, हिंदी के निबंधकार थे। वे राजनांदगांव की हिंदी त्रिवेणी की तीन धाराओं में से एक हैं।{{Ref_label|त्रिवेणी|क|none}}। राजनांदगांव के त्रिवेणी परिसर में इनके सम्मान में मूर्तियों की स्थापना की गई है।<ref>{{cite web
== जीवन परिचय ==
डॉ॰ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म [[राजनांदगांव जिला|राजनांदगांव]] के एक छोटे से कस्बे खैरागढ़ में 27 मई 1894 में हुआ। उनके पिता पुन्नालाल बख्शी खैरागढ़ के प्रतिष्ठित परिवार से थे,इनके बाबा का नाम 'श्री उमराव बख्शी'था। उनकी प्राथमिक शिक्षा म.प्र. के प्रथम मुख्यमंत्री पं॰ रविशंकर शुक्ल जैसे मनीषी गुरूओं के सानिध्य में विक्टोरिया हाई स्कूल, खैरागढ में हुई थी। प्रारंभ से ही प्रखर पदुमलाल पन्नालाल बख्शी की प्रतिभा को खैरागढ के ही इतिहासकार [[लाल प्रद्युम्न सिंह]] जी ने समझा एवं बख्शी जी को साहित्य सृजन के लिए प्रोत्साहित किया और यहीं से साहित्य की अविरल धारा बह निकली। प्रतिभावान बख्शी जी ने [[बनारस हिन्दू कॉलेज]] से बी.ए. किया और एल.एल.बी. करने लगे किन्तु वे साहित्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता एवं समयाभाव के कारण एल.एल.बी. पूरा नहीं कर पाए।
यह 1903 का समय था जब वे घर के साहित्यिक वातावरण से प्रभावित हो कथा-साहित्य में मायालोक से परिचित हुए। चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति उपन्यास के प्रति विशेष आसक्ति के कारण स्कूल से भाग खड़े हुए तथा हेडमास्टर [[पंडित रविशंकर शुक्ल]] (म.प्र. के प्रथम मुख्यमंत्री) द्वारा जमकर बेतों से पीटे गये। 1911 में जबलपुर से निकलने वाली ‘हितकारिणी’ में बख्शी की प्रथम कहानी ‘तारिणी’ प्रकाशित हो चुकी थी। इसके एक साल बाद अर्थात् 1912 में वे मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण हुए और आगे की पढ़ाई के लिए बनारस के सेंट्रल कॉलेज में भर्ती हो गये। इसी बीच सन् 1913 में लक्ष्मी देवी के साथ उनका विवाह हो गया। 1916 में उन्होंने बी.ए. की उपाधि प्राप्त की।<ref>{{cite web
18 दिसम्बर 1971 के दिन उनका [[रायपुर]] के शासकीय डी.के हॉस्पिटल में उनका निधन हो गया।
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हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा सन् 1949 में साहित्य वाचस्पति की उपाधि से अलंकृत किया गया। इसके ठीक एक साल बाद वे मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए। 1951 में डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी की अध्यक्षता में जबलपुर में मास्टर जी का सार्वजनिक अभिनंदन किया गया। 1969 में सागर विश्वविद्यालय से द्वारिका प्रसाद मिश्र (मुख्यमंत्री) द्वारा डी-लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया।
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [https://web.archive.org/web/20100604014533/http://www.abhivyakti-hindi.org/sansmaran/2010/padumlal_pannalal_bakshi.htm अविस्मरणीय पदुमलाल पन्नालाल बख्शी] - डॉ॰ मोहन अवस्थी
* [http://books.google.co.in/books?id=si5QSWAoiecC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false बख्शी ग्रन्थावली, खंड-6 (आत्मकथा-संस्मरण)] (गूगल पुस्तक ; लेखक - पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी)
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