"पुरुषार्थ": अवतरणों में अंतर
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<ref>{{Cite web |url=http://hariomgroup.org/hariombooks/paath/Hindi/ShriYogaVashishthaMaharamayan/ShriYogaVashihthaMaharamayan-Prakarana-2.pdf |title=संग्रहीत प्रति |access-date=1 अक्तूबर 2011 |archive-url=https://web.archive.org/web/20120327032900/http://hariomgroup.org/hariombooks/paath/Hindi/ShriYogaVashishthaMaharamayan/ShriYogaVashihthaMaharamayan-Prakarana-2.pdf |archive-date=27 मार्च 2012 |url-status=dead }}</ref>
==धर्म==
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शास्त्रों ने अर्थ को मानव की सुख-सुविधाओं का मूल माना है। धर्म का भी मूल, अर्थ है (चाणक्यसूत्र १/२) । सुख प्राप्त करने के लिए सभी अर्थ की कामना करते हैं। इसलिए आचार्य कौटिल्य त्रिवर्ग में अर्थ को प्रधान मानते हुए इसे धर्म और काम का मूल कहा है। भूमि, धन, पशु, मित्र, विद्या, कला व कृषि सभी अर्थ की श्रेणी में आते हैं। इनकी संख्या निश्चित करना सम्भव नहीं है क्योंकि यह मानव जीवन की आवश्यकताओं पर निर्भर करती है। मनुष्य स्वभावतः कामना प्रधान होता है, यह कहना भी गलत नहीं होगा वह कामनामय होता है। इन सभी कामनाओं की पूर्ति का एक मात्र साधन अर्थ है। आचार्य वात्स्यायन 'अर्थ' को परिभाषित करते हुए विद्या, सोना, चांदी, धन, धान्य गृहस्थी का सामान, मित्र का अर्जन एवं जो कुछ प्राप्त हुआ है या अर्जित हुआ है उसका वर्धन
सब अर्थ है। (''विद्या भूमि हिरण्य पशुधान्य भाण्डोपस्कर मित्त्रादि नामार्जन मर्जितस्य विवर्धनमर्थः।)<ref>
==काम==
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [https://web.archive.org/web/20180620181300/https://books.google.co.in/books?id=Srw6DwAAQBAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false भारतीय संस्कृति का मूल आधार - पुरुषार्थ चतुष्ठय] (गूगल पुस्तक ; लेखक - आशीष कुमार)
* [https://web.archive.org/web/20160304134352/http://www.hindigaurav.com/index.php?option=com_content&view=article&id=646:2011-04-14-12-27-28&catid=17:2011-02-27-10-33-29&Itemid=19 चार पुरुषार्थ को जानें] (हिन्दी गौरव)
*[http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/180269/5/05_chapter%202.pdf पुरुषार्थ चतुष्टय]
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