"भारत में राजभत्ता": अवतरणों में अंतर

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'''राजभत्ता''', '''निजी कोश''', '''प्रिवी पर्स''' किसी संवैधानिक या लोकतांत्रिक राजतंत्र में राज्य के स्वायत्त शासक एवं राजपरिवार को मिलने वाले विशेष धनराशी को कहा जाता है।  
'''भारतवर्ष में''' [[राजभत्ता]] देने की परियोजना की शुरुआत सन १९५०में लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना के बाद हुई थी। [[इंग्लैण्ड]], [[जापान]] या अन्य [[यूरोप|यूरोपिय देशों]](जहां केवल एक राजवंश या राजपरिवार होते हैं) के विपरीत भारत में(गणराज्य के शुरुआती वर्षों में) कुल ५६२राजवंश थे। ये भारत के उन पूर्व राज्यों के राजवंश थे जिन्होंने नव-स्वतंत्र भारत(अर्थात [[भारतीय अधिराज्य|भारत अधीराज्य]]; {{lang-en|Dominion of India}}) में अपनी रियासतों को संधि द्वारा [[भारतीय अधिराज्य|भारतीय संघ]] में, पहले शामिल किया एवं बाद में, अपने राज्यों को [[भारत|भारत गणराज्य]] में संपूर्णतः विलीन कर आधूनिक भारत को स्थापित किया था। जिसके कारणवश उन्होंने अपना शासनाधिकार पूर्णतः [[भारत सरकार]] के हाथों सौंप दिया था। [[भारतीय]] संघ में सम्मिलित होने की [[विलय के उपकरण|संधि]] के शर्तों में रियासतों के तत्कालीन शासकों एवं उनके उत्तराधिकारियों को आजीवन, [[जीवनयापन]] हेतु [[भारत सरकार]] द्वारा विशेष [[धनराशि]] एवं भत्ते ([[राजभत्ता]]) दिये जाने का प्रावधान था। इस विशेष वार्षिक धनराशि को '''राजभत्ता''', '''निजी कोश''' या '''प्रिवी पर्स''' कहा जाता था। इस व्यवस्था को ब्रिटेन में चल रहे [[यूनाईटेड किंग्डम मे राजभत्ता|राजभत्ते]] ('''प्रिवी पर्स''') की व्यवस्था के आधार पर पारित किया गया था। इस "अलोकतांत्रिक" व्यवस्था को सन १९७१में [[भारत का प्रधानमन्त्री|प्रधानमंत्री]] [[इन्दिरा गांधी|इंदिरा गांधी]] के शासनकाल के दैरान पूर्णतः स्थगित कर दिया गया।<ref>{{Cite web |url=http://www.bhaskar.com/news/BIH-PAT-MAT-latest-patna-news-030501-787733-NOR.html |title=संग्रहीत प्रति |access-date=2 अगस्त 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20150923223652/http://www.bhaskar.com/news/BIH-PAT-MAT-latest-patna-news-030501-787733-NOR.html |archive-date=23 सितंबर 2015 |url-status=live }}</ref><ref>{{Cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/specials/101_economy_60yrs/page4.shtml |title=संग्रहीत प्रति |access-date=2 अगस्त 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20120428063000/http://www.bbc.co.uk/hindi/specials/101_economy_60yrs/page4.shtml |archive-date=28 अप्रैल 2012 |url-status=live }}</ref>
{{ब्रिटिश भारत में रियासतें}} 
 
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==भारत में राजभत्ते की समाप्ति==
 
नव स्वतंत्र [[भारत]] में राजभत्ते पर आम राय नकारात्मक थी, साथ ही उस समय की आर्थिक स्थिती के मद्देनज़र इस व्यवस्था को बहुमूल्य धन के व्यर्थ व्यय के रूप में देखा जाता था। इसके अलावा शाही ख़िताबों की आधिकारिक मान्यता को भी पूर्णतः असंवैधानिक व अलोकतांत्रिक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता था। विशेष भत्तों एवं राजकिय उपादियों के उन्मूलन का प्रस्ताव [[भारतीय संसद|संसद]] में सबसे पहले १९६९ में लाया गया था, जब उसे [[राज्य सभा]] की स्वीकृति केवल 1 कम रहने के कारण नहीं मिल पायी थी। तत्कालीन [[भारत का प्रधानमन्त्री|प्रधानमंत्री]] [[इन्दिरा गांधी|इंदिरा गांधी]] द्वारा सारे नागरिकों के लिये सामान अधिकार एवं सरकारी धन का व्यर्थ व्यय का हवाला देते हुए इसे दोबारा १९७१ में लाया गया और '''२६वें संविधानिक संशोधन''' के रूप में पारित कर दिया गया। इस संशोधन के बाद राजभत्ता और राजकिय उपाधियों का भारत से सदा के लिये अंत हो गया और साथ ही अंत हो गया [[भारत]]वर्ष में हज़ारों सालों से चले आ रहे [[राजतन्त्र|राजतंत्र]] के आखरी बचे अवशेषों का भी| इस विधेयक के पारित होन का कई पूर्व राजवंशों ने विरोध करते हुए अदालतों में याचिका दयर की, पर सारी याचिकाओं को खारिज कर दिया गया। कई राजवंशियों ने १९७१ के चुनावों में खड़े होने का फ़ैसला किया, परन्तु किसी को भी सफ़लता प्राप्त नहीं हुई।<ref>{{Cite web |url=http://blogs.reuters.com/india-expertzone/2013/04/08/indias-privy-purses-and-the-cyprus-deal/ |title=संग्रहीत प्रति |access-date=3 अगस्त 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20150905153317/http://blogs.reuters.com/india-expertzone/2013/04/08/indias-privy-purses-and-the-cyprus-deal/ |archive-date=5 सितंबर 2015 |url-status=live }}</ref><ref>{{Cite web |url=http://www.indianetzone.com/59/privy_purse_india.htm |title=संग्रहीत प्रति |access-date=3 अगस्त 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20150924034448/http://www.indianetzone.com/59/privy_purse_india.htm |archive-date=24 सितंबर 2015 |url-status=live }}</ref><ref>{{Cite web |url=http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-in-school/how-fair-were-the-privy-purses/article5402219.ece |title=संग्रहीत प्रति |access-date=3 अगस्त 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20140830162406/http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-in-school/how-fair-were-the-privy-purses/article5402219.ece |archive-date=30 अगस्त 2014 |url-status=live }}</ref>
 
==इनहें भी देखें==