"मुत्तुस्वामी दीक्षित": अवतरणों में अंतर
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== जन्म और शिक्षा ==
मुत्तुस्वामी दीक्षित का जन्म तमिलनाडु के तिरूवरूर (तमिलनाडु राज्य में) में [[ब्राह्मण तमिल|तमिल ब्राह्मण]] दंपति, रामस्वामी दीक्षित (रागा हम्सधवानी के शोधकर्ता) और सुब्बम्मा के यहाँ, सबसे बड़े पुत्र के रूप में हुआ था।<ref>{{cite book|url=https://books.google.com.my/books?id=t6-uWK5e9a4C&pg=PA12&lpg=PA12#v=onepage&q&f=false|title=भारत के पवित्र गीत, खंड 2|3=|last=सुब्रमण्यम|first=वी.के.|6=|publisher=अभिनव पब्लिकेशन, नई दिल्ली|access-date=29 जनवरी 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20171115014643/https://books.google.com.my/books?id=t6-uWK5e9a4C&pg=PA12&lpg=PA12#v=onepage&q&f=false|archive-date=15 नवंबर 2017|url-status=live}}</ref><ref>{{cite web|url=http://music.indobase.com/classical-singers/muthuswami-dikshitar.html|title=श्री मुत्तुस्वामी दीक्षित की जीवनी|publisher=वीथी.कॉम|date=7, जनवरी 2017|access-date=29 जनवरी 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20171228035727/http://music.indobase.com/classical-singers/muthuswami-dikshitar.html|archive-date=28 दिसंबर 2017|url-status=live}}</ref>
ब्राह्मण शिक्षा परम्परा को मन में रखकर, मुत्तु स्वामि ने संस्कृत भाषा, वेद और अन्य मुख्य धार्मिक ग्रन्थों को सीखा व उनका गहन अध्ययन किया। उनको प्रारम्भिक शिक्षा उनके पिता से मिली थी। कुछ समय बाद मुत्तुस्वामी संगीत सीखने हेतु महान् सन्त चिदम्बरनाथ योगी के साथ बनारस या वाराणसी गए और वहां 5 साल तक सीखने व अध्ययन का दौर चलता रहा। गुरु ने उन्हें मन्त्रोपदेश दिया व उनको हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दी। गुरु के देहान्त के बाद मुत्तुस्वामी दक्षिण भारत को लौटे। जब तब वह चिदम्बरनाथ योगी के साथ रहे, उन्होंने उत्तर भारत में काफी भ्रमण किया व काफी कुछ सीखने को मिला। अध्ययन व पठन-पाठन के दौरान उनके गुरु ने उन्हें एक विशेष वीणा भी दी थी।
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इस गीत ने भगवान (और/या गुरु) को संस्कृत में पहली विभक्ति में संबोधित किया, बाद में दीक्षित ने भगवान के सभी आठ [[अवतार|अवतारों]] पर कृतियों की रचना की। ये ज्यादातर संप्रदाय/अनुग्रहवादी रूप में मुरुगन की स्तुति करने वाले उपधाराओं में थे।
फिर मुत्तुस्वामी तीर्थाटन के निकल गये और [[कांची]], [[तिरुवन्नमलई]], [[चिदंबरम मंदिर|चिदंबरम]], [[तिरुपति]] और [[कालाहस्ती मंदिर|कालहस्ती]], [[श्रीरंगम]] के मंदिरों की यात्रा और वहाँ कृतियों की रचना की और [[तिरुवारूर]] लौट आये।<ref>{{cite news | url=http://www.hindu.com/ms/2007/12/01/stories/2007120150180600.htm | location=चेन्नई, भारत | work=
मुथुस्वामी दीक्षित को [[वीणा]] पर प्रवीणता प्राप्त थी, और वीणा का प्रदर्शन उनकी रचनाओं में स्पष्ट देखा जा सकता है, विशेषकर गमन में। उनकी कृति बालगोपाल में, उन्होंने खुद को वीणा गायक के रूप में परिचय दिया।<ref name=ency>लुडविग पेस्च, मुत्तुस्वामी दीक्षित, भारत का विश्वकोश, एड. स्टेनली वोलपोर्ट, पृष्ठ. 337-8</ref> उन्होंने [[वायलिन]] पर भी महारत हासिल की और उनके शिष्यों में [[तंजावुर चौकड़ी]] के वदिविल्लू और उनके भाई बलुस्वामी दीक्षित के साथ मिलकर [[कर्नाटक संगीत]] में वायलिन का इस्तेमाल करने की अग्रणी भूमिका निभाई, जो अब ज्यादातर कर्नाटक कलाकारों का एक अभिन्न अंग है।
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उनकी प्रत्येक रचना अद्वितीय और प्रतिभाशाली ढंग से प्रस्तुत की गई है। रचनाएं गहराई और माधुर्य की आत्मा के लिए जाने जाते हैं- कुछ रागों के लेकर उनकी परिकल्पना अभी भी उनकी संरचनाओं पर मान्य हैं। उनके संस्कृत के गीतों में मंदिर देवता की प्रशंसा कि गई हैं, लेकिन अद्वैत दर्शन और बहुदेववादी पूजा के बीच निहित संबंधों को दूर करते हुए, मुथुस्वामी ने अपने गीतों में अद्वैत विचारों का मूल दिया है। उनके गीतों में मंदिर के इतिहास और उसकी पृष्ठभूमि के बारे में बहुत जानकारी दि गई है, जिसके कारण ही आज इन पुराने तीर्थों में कई परंपराओं को बनाए रखा गया है। उनकी रचनाओं में एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषताएं, गीतों की लाइनों में कुशल छंद पाई जाती हैं।
मुत्तुस्वामी ने सभी 72 मेलकर्ता रागों की रचना करने की परियोजना को अपनाया (अपनी असम्भुर्ण मेला योजना में), जिससे कई दुर्लभ और लुप्त रागों के लिए संगीत का उदाहरण मिल सका।<ref>{{cite book|title=उम्र के माध्यम से भारत|last=गोपाल|first=मदन|year= 1990| pages= 218–9|editor=के.एस. गौतम|publisher=प्रकाशन डिवीजन, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार}}</ref> इसके अलावा, वे समष्टि चरणम कृति (जिन गाने में मुख्य पद्य या पल्लवी के अनुगामी केवल एक पद्य होता है, जबकि पारंपरिक शैली में दो होता है) के अग्रगामी थे।<ref>
[[राग]] [[भाव]] की समृद्धि के लिए, उनके दार्शनिक अंतर्वस्तु की महानता और साहित्य की भव्यता के लिए, दीक्षित के गीत अप्राप्य है। मुथुस्वामी दीक्षित ने कई कृतियों का निर्माण समूहों में किया है। जिनमे "वतापी गणपति" को उनकी सबसे प्रसिद्ध और सर्वोत्तम कृति माना जाता है।
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==बाहरी कड़ियाँ==
*[https://web.archive.org/web/20160123112728/http://hindi.culturalindia.net/muthuswami-dikshitar.html मुथुस्वामी दीक्षितार] (कल्चरल इण्डिया)
*[https://web.archive.org/web/20170606134442/http://www.itshindi.com/muthuswami-dikshitar.html मुथुस्वामी दीक्षितार]
*[https://web.archive.org/web/20171013181108/http://www.ibiblio.org/guruguha/mdskt.pdf मुत्तुस्वामि दीक्षितर कीर्तनसमाहार]
[[श्रेणी:भारतीय संगीतकार]]
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