"सहाबा": अवतरणों में अंतर
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साहाबा ऐ किराम उन्हें कहते है जिन्होंने अपनी आँखों से आप (मुहम्मद) सा. अल. वसल्लम को देखा था, तमाम साहाबा ऐ किराम अल्लाह के रसूल के जांनिसार, उनके एक इशारे पे जान देनेवाले, हुक्म की तामील करने वाले और सिखने और सिखाने वाले थे, ज्यादातर साहाबा गरीब थे, कुछ अमीर भी थे, इनमे दस साहाबा ऐ किराम बङी ही इज्जत और उचे मर्तबे वाले थे जिनमे से चार एस तरह है.
१) हजरत अबू बकर सिद्दीक रजितालाह आन्हा २) हजरत उमर रजितालाह आन्हा ३)[[ हजरत उस्मान रजितालाह आन्हा]] ४) हजरत अली रजितालाह आन्हा.
और ये सभी इसी तरह से [[खलीफा]] ऐ इस्लाम बने.
अपने आखरी खुतबे में आप सा. अल. वसल्लम ने तमाम साहाबा ऐ किराम (संख्या १२५००० लगभग) से कहा के "क्या मैंने तुम तक दीन पुहुचा दिया, सभी ने जवाब दिया 'हाँ अल्लाह के रसूल' आप सा. अल. वसल्लम ने कहा 'ऐ अल्लाह तू गवाह रहना' " और हुक्म हुआ के जो दींन मैंने तुम तक पुहुचा दिया है उसे तुम सारी दुनिया तक पुहुचा दो तो जो जिस रुख था उसी रुख चल दिया दींन पुहुचाने के लिए. और इस तरह सारी दुनिया मै दीन फेला.
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