"रामकृष्ण परमहंस": अवतरणों में अंतर

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रामकुमार की मृत्यु के बाद श्री रामकृष्ण ज़्यादा ध्यान मग्न रहने लगे। वे [[काली ]] माता के मूर्ति को अपनी माता और ब्रम्हांड की माता के रूप में देखने लगे। कहा जाता हैं की श्री रामकृष्ण को काली माता के दर्शन ब्रम्हांड की माता के रूप में हुआ था। रामकृष्ण इसकी वर्णना करते हुए कहते हैं " घर ,द्वार ,मंदिर और सब कुछ अदृश्य हो गया , जैसे कहीं कुछ भी नहीं था! और मैंने एक अनंत तीर विहीन आलोक का सागर देखा, यह चेतना का सागर था। जिस दिशा में भी मैंने दूर दूर तक जहाँ भी देखा बस उज्जवल लहरें दिखाई दे रही थी, जो एक के बाद एक ,मेरी तरफ आ रही थी।
 
<ref>{{Cite web |url=https://en.wikipedia.org/wiki/Ramakrishna#Priest_at_Dakshineswar_Kali_Temple |title=संग्रहीत प्रति |access-date=10 दिसंबर 2014 |archive-url=https://web.archive.org/web/20141216095235/http://en.wikipedia.org/wiki/Ramakrishna#Priest_at_Dakshineswar_Kali_Temple |archive-date=16 दिसंबर 2014 |url-status=live }}</ref>
 
=== विवाह ===
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=== मृत्यु ===
सन् 1886 ई. में श्रावणी पूर्णिमा के अगले दिन प्रतिपदा को प्रातःकाल रामकृष्ण परमहंस ने देह त्याग दिया।<ref name=":0">{{Cite web|url=https://hindipath.com/ramkrishna-paramhans-biography-in-hindi/|title=रामकृष्ण परमहंस की जीवनी|last=शुक्ल|first=पण्डित विद्याभास्कर|date=|website=|archive-url=https://web.archive.org/web/20190906091030/https://hindipath.com/ramkrishna-paramhans-biography-in-hindi/|archive-date=6 सितंबर 2019|dead-url=|access-date=|url-status=live}}</ref> 16 अगस्त का सवेरा होने के कुछ ही वक्त पहले आनन्दघन विग्रह श्रीरामकृष्ण इस नश्वर देह को त्याग कर महासमाधि द्वारा स्व-स्वरुप में लीन हो गये।
 
[[चित्र:Ramakrishna Marble Statue.jpg|thumb|right|[[ रामकृष्ण मिशन ]] का मुख्यालय [[बेलुड़ मठ| बेलूर मठ में]] स्थित श्रीरामकृष्ण की मार्बल प्रतिमा]]
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रामकृष्ण छोटी कहानियों के माध्यम से लोगों को शिक्षा देते थे। कलकत्ता के बुद्धिजीवियों पर उनके विचारों ने ज़बरदस्त प्रभाव छोड़ा था; हांलाकि उनकी शिक्षायें आधुनिकता और राष्ट्र के आज़ादी के बारे में नहीं थी। उनके आध्यात्मिक आंदोलन ने परोक्ष रूप से देश में राष्ट्रवाद की भावना बढ़ने का काम किया, क्योंकि उनकी शिक्षा जातिवाद एवं धार्मिक पक्षपात को नकारती है।<br />
 
रामकृष्ण के अनुसार ही मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य हैं। रामकृष्ण कहते थे की ''कामिनी -कंचन'' ईश्वर प्राप्ति के सबसे बड़े बाधक हैं। श्री [https://web.archive.org/web/20190906091030/https://hindipath.com/ramkrishna-paramhans-biography-in-hindi/ रामकृष्ण परमहंस की जीवनी] के अनुसार, वे तपस्या, सत्संग और स्वाध्याय आदि आध्यात्मिक साधनों पर विशेष बल देते थे। वे कहा करते थे, "यदि आत्मज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखते हो, तो पहले अहम्भाव को दूर करो। क्योंकि जब तक अहंकार दूर न होगा, अज्ञान का परदा कदापि न हटेगा। तपस्या, सत्सङ्ग, स्वाध्याय आदि साधनों से अहङ्कार दूर कर आत्म-ज्ञान प्राप्त करो, ब्रह्म को पहचानो।"<ref name=":0" /><br />
 
रामकृष्ण संसार को [[माया ]] के रूप में देखते थे। उनके अनुसार ''अविद्या माया'' सृजन के काले शक्तियों को दर्शाती हैं (जैसे काम, लोभ ,लालच , क्रूरता , स्वार्थी कर्म आदि ), यह मानव को चेतना के निचले स्तर पर रखती हैं। यह शक्तियां मनुष्य को जन्म और मृत्यु के चक्र में बंधने के लिए ज़िम्मेदार हैं। वही ''विद्या माया'' सृजन की अच्छी शक्तियों के लिए ज़िम्मेदार हैं (जैसे निःस्वार्थ कर्म, आध्यात्मिक गुण, ऊँचे आदर्श, दया, पवित्रता, प्रेम और भक्ति)। यह मनुष्य को चेतन के ऊँचे स्तर पर ले जाती हैं।
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{{Commonscat|Ramakrishna |रामकृष्ण परमहंस}}
{{Wikiquote|रामकृष्ण परमहंस}}
* [https://web.archive.org/web/20130328025520/http://belurmath.org/sriramakrishna.htm बेलूर मठ द्वारा जीवनी]
*[https://www.essayonfest.online/2020/01/ramakrishna-paramahansa.html संत से परमहंस बनने तक की कहानी ।]