"रामभद्राचार्य": अवतरणों में अंतर
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|philosophy=[[विशिष्टाद्वैत|विशिष्टाद्वैत वेदान्त]]
|honors=धर्मचक्रवर्ती, महामहोपाध्याय, श्रीचित्रकूटतुलसीपीठाधीश्वर, जगद्गुरु रामानन्दाचार्य, महाकवि, प्रस्थानत्रयीभाष्यकार, इत्यादि
|quote=मानवता ही मेरा मन्दिर मैं हूँ इसका एक पुजारी ॥ हैं विकलांग महेश्वर मेरे मैं हूँ इनका कृपाभिखारी ॥<ref>{{cite web | year=२००३ | url=http://jagadgururambhadracharya.org/videos/jrhu?id=2 | title=जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | publisher=श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | accessdate=जून २१, २०११ | archive-url=https://web.archive.org/web/20140916075051/http://jagadgururambhadracharya.org/videos/jrhu?id=2 | archive-date=16 सितंबर 2014 | url-status=live }}</ref>
|Literary works = प्रस्थानत्रयी पर राघवकृपाभाष्य, श्रीभार्गवराघवीयम्, भृंगदूतम्, गीतरामायणम्, श्रीसीतारामसुप्रभातम्, श्रीसीतारामकेलिकौमुदी, अष्टावक्र, इत्यादि
|footnotes=
}}
[[File:रामभद्राचार्य.ogg|thumb|हिन्दी उच्चारण:रामभद्राचार्य]]
'''जगद्गुरु रामभद्राचार्य''' ({{lang-sa|जगद्गुरुरामभद्राचार्यः}}) (१९५०–), पूर्वाश्रम नाम '''गिरिधर मिश्र''' [[चित्रकूट]] ([[उत्तर प्रदेश]], [[भारत]]) में रहने वाले एक प्रख्यात विद्वान्, शिक्षाविद्, [[:en:Polyglot|बहुभाषाविद्]], रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिन्दू धर्मगुरु हैं।<ref name="speakerloksabha">{{cite web | last=लोक सभा | first=अध्यक्ष कार्यालय | title
अध्ययन या रचना के लिए उन्होंने कभी भी [[:en:Braille|ब्रेल लिपि]] का प्रयोग नहीं किया है। वे [[:en:Polyglot|बहुभाषाविद्]] हैं और २२ भाषाएँ बोलते हैं।<ref name="kkbvp"/><ref>दिनकर २००८, पृष्ठ ३९।</ref><ref>{{cite web | title = श्री जगद्गुरु रामभद्राचार्य | publisher = औपचारिक वेबसाइट | url = http://jagadgururambhadracharya.org | accessdate = May 10, 2011 | language = अंग्रेज़ी | quote = आश्चर्यजनक तथ्य: अंग्रेज़ी, फ्रांसीसी और अनेक भारतीय भाषाओं सहित २२ भाषाओं का ज्ञान | archive-url = https://web.archive.org/web/20110716183604/http://www.jagadgururambhadracharya.org/ | archive-date = 16 जुलाई 2011 | url-status = live }}</ref> वे [[संस्कृत]], [[हिन्दी]], [[अवधी]], [[मैथिली]] सहित कई भाषाओं में आशुकवि और रचनाकार हैं। उन्होंने ८० से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है, जिनमें चार महाकाव्य (दो संस्कृत और दो हिन्दी में), [[रामचरितमानस]] पर हिन्दी टीका, [[अष्टाध्यायी]] पर काव्यात्मक संस्कृत टीका और [[प्रस्थानत्रयी]] ([[ब्रह्मसूत्र]], [[भगवद्गीता]] और प्रधान [[उपनिषद्|उपनिषदों]]) पर संस्कृत भाष्य सम्मिलित हैं।<ref name="dinkarbiblio">दिनकर २००८, पृष्ठ ४०–४३।</ref> उन्हें [[तुलसीदास]] पर भारत के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में गिना जाता है,<ref name="outlook"/><ref>प्रसाद १९९९, पृष्ठ xiv: "Acharya Giridhar Mishra is responsible for many of my interpretations of the epic. The meticulousness of his profound scholarship and his extraordinary dedication to all aspects of Rama's story have led to his recognition as one of the greatest authorities on Tulasidasa in India today ... that the Acharya's knowledge of the Ramacharitamanasa is vast and breathtaking and that he is one of those rare scholars who know the text of the epic virtually by heart." (मेरे द्वारा इस ग्रंथ के किए गए अनेकानेक अर्थों के पीछे आचार्य गिरिधर मिश्र की प्रेरणा है। उनके गहनतम पाण्डित्य का अवधान और रामायण के सभी पक्षों के प्रति उनकी विलक्षण लगन के कारण आज वे भारत में तुलसीदास पर सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में अग्रगण्य हैं। ... आचार्य का रामचरितमानस का ज्ञान व्यापक और आश्चर्यजनक हैं और वे उन विरल विद्वानों में से हैं जिन्हें यह ग्रन्थ पूर्णतः कण्ठस्थ है।)</ref><ref>{{cite book | language=अंग्रेज़ी | title = The Ramayana: Global View | first=लल्लन प्रसाद, ed. | last=व्यास | publisher=हर आनन्द प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड | year=१९९६ | location=दिल्ली, भारत | id=ISBN 978-81-241-0244-2 | quote=... Acharya Giridhar Mishra, a blind Tulasi scholar of uncanny critical insight, ... (आचार्य गिरिधर मिश्र, एक मीमांसक अंतर्दृष्टि से संपन्न प्रज्ञाचक्षु तुलसी विद्वान, ...) | pages=पृष्ठ ६२}}</ref> और वे रामचरितमानस की एक [[:en:Textual criticism|प्रामाणिक प्रति]] के सम्पादक हैं, जिसका प्रकाशन तुलसी पीठ द्वारा किया गया है।<ref>रामभद्राचार्य (ed) २००६।</ref> स्वामी रामभद्राचार्य [[रामायण]] और [[भागवत]] के प्रसिद्ध कथाकार हैं – भारत के भिन्न-भिन्न नगरों में और विदेशों में भी नियमित रूप से उनकी कथा आयोजित होती रहती है और कथा के कार्यक्रम [[संस्कार टीवी]], सनातन टीवी इत्यादि चैनलों पर प्रसारित भी होते हैं।<ref>{{cite web | last=एन बी टी न्यूज़ | first=गाज़ियाबाद | publisher=नवभारत टाईम्स | title
२०१५ में [[भारत सरकार]] ने उन्हें [[पद्मविभूषण]] से सम्मानित किया।
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=== दृष्टि बाधन ===
गिरिधर की नेत्रदृष्टि दो मास की अल्पायु में नष्ट हो गयी। मार्च २४, १९५० के दिन बालक की आँखों में [[रोहे]] हो गए। गाँव में आधुनिक चिकित्सा उपलब्ध नहीं थी। बालक को एक वृद्ध महिला चिकित्सक के पास ले जाया गया जो रोहे की चिकित्सा के लिए जानी जाती थी। चिकित्सक ने गिरिधर की आँखों में रोहे के दानों को फोड़ने के लिए गरम द्रव्य डाला, परन्तु रक्तस्राव के कारण गिरिधर के दोनों नेत्रों की ज्योति चली गयी।<ref name="aicb-bio">{{cite web | language=अंग्रेज़ी | last=अनेजा | first=मुक्ता; आईवे टीम | year=२००५ | title
=== प्रथम काव्य रचना ===
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=== गीता और रामचरितमानस का ज्ञान ===
एकश्रुत प्रतिभा से युक्त बालक गिरिधर ने अपने पड़ोसी पण्डित मुरलीधर मिश्र की सहायता से पाँच वर्ष की आयु में मात्र पन्द्रह दिनों में श्लोक संख्या सहित सात सौ श्लोकों वाली सम्पूर्ण भगवद्गीता कण्ठस्थ कर ली। १९५५ ई में [[जन्माष्टमी]] के दिन उन्होंने सम्पूर्ण गीता का पाठ किया।<ref name="outlook"/><ref name="dinkarearlylife"/><ref name="parauha">{{cite book | last=परौहा | first=तुलसीदास | editor-first=स्वामी | editor-last=रामभद्राचार्य | title=गीतरामायणम् (गीतसीताभिरामं संस्कृतगीतमहाकाव्यम्) | chapter=महाकविजगद्गुरुस्वामिरामभद्राचार्याणां व्यक्तित्वं कृतित्वंच | publisher=जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | date=जनवरी १४, २०११ | pages=५–९ | language=संस्कृत}}</ref> संयोगवश, गीता कण्ठस्थ करने के ५२ वर्ष बाद नवम्बर ३०, २००७ ई के दिन जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने संस्कृत मूलपाठ और हिन्दी टीका सहित भगवद्गीता के सर्वप्रथम ब्रेल लिपि में अंकित संस्करण का विमोचन किया।<ref>{{cite web | publisher=एस्ट्रो ज्योति | title
=== उपनयन और कथावाचन ===
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=== शास्त्री (स्नातक) तथा आचार्य (परास्नातक) ===
१९७१ में गिरिधर मिश्र [[वाराणसी]] स्थित सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में संस्कृत [[व्याकरण]] में शास्त्री ([[:en:Bachelor's degree|स्नातक उपाधि]]) के अध्ययन के लिए प्रविष्ट हुए।<ref name="dinkaredu"/> १९७४ में उन्होंने सर्वाधिक अंक अर्जित करते हुए शास्त्री (स्नातक उपाधि) की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् वे आचार्य ([[:en:Master's degree|परास्नातक]] उपाधि) के अध्ययन के लिए इसी विश्वविद्यालय में पंजीकृत हुए। परास्नातक अध्ययन के दौरान १९७४ में अखिल भारतीय संस्कृत अधिवेशन में भाग लेने गिरिधर मिश्र [[नयी दिल्ली]] आए। अधिवेशन में व्याकरण, [[सांख्य]], [[न्याय]], [[वेदान्त]] और [[अन्त्याक्षरी]] में उन्होंने पाँच स्वर्ण पदक जीते।<ref name="kbs-bio"/> भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्रिणी श्रीमती [[इन्दिरा गाँधी]] ने उन्हें पाँचों स्वर्णपदकों के साथ उत्तर प्रदेश के लिए चलवैजयन्ती पुरस्कार प्रदान किया।<ref name="parauha"/> उनकी योग्यताओं से प्रभावित होकर श्रीमती गाँधी ने उन्हें आँखों की चिकित्सा के लिए [[संयुक्त राज्य अमरीका]] भेजने का प्रस्ताव किया, परन्तु गिरिधर मिश्र ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।<ref name="aicb-bio"/> १९७६ में सात स्वर्णपदकों और कुलाधिपति स्वर्ण पदक के साथ उन्होंने आचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की।<ref name="parauha"/> उनकी एक विरल उपलब्धि भी रही – हालाँकि उन्होंने केवल व्याकरण में आचार्य उपाधि के लिए पंजीकरण किया था, उनके चतुर्मुखी ज्ञान के लिए विश्वविद्यालय ने उन्हें ३० अप्रैल १९७६ के दिन विश्वविद्यालय में अध्यापित सभी विषयों का आचार्य घोषित किया।<ref name="aicb-bio"/><ref>{{cite web | date=सितम्बर १३, २००९ | url=http://jagadgururambhadracharya.org/videos/manasdharma?id=15 | title=श्रीराम कथा (मानस धर्म) | location=चित्रकूट, उत्तर प्रदेश, भारत | publisher=जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | accessdate=जुलाई १, २०११ | quote=डीवीडी संख्या ८, भाग १, समय ००:५०:२०। | archive-url=https://web.archive.org/web/20160307192520/http://jagadgururambhadracharya.org/videos/manasdharma?id=15 | archive-date=7 मार्च 2016 | url-status=live }}</ref>
=== विद्यावारिधि (पी एच डी) एवं वाचस्पति (डी लिट्) ===
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=== पयोव्रत ===
गिरिधर मिश्र ने गोस्वामी तुलसीदास विरचित ''दोहावली'' के निम्नलिखित पाँचवे दोहे के अनुसार १९७९ ई में चित्रकूट में छः महीनों तक मात्र दुग्ध और फलों का आहार लेते हुए अपना प्रथम षाण्मासिक पयोव्रत अनुष्ठान सम्पन्न किया।<ref name="dinkarlaterlife"/><ref>{{cite book | title=दोहावली | last=पोद्दार | first=हनुमान प्रसाद | publisher=गीता प्रेस | year=१९९६ | location=गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत | pages=१०}}</ref><ref>{{cite web | last=दूबे | first=डॉ हरिप्रसाद | publisher=जागरण याहू | title
<blockquote>
<center>
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{{Cquote|केवल दूध और फलों का आहार लेते हुए छः महीने तक राम नाम जपो। तुलसीदास कहते हैं कि ऐसा करने से सारे सुन्दर मंगल और सिद्धियाँ करतलगत हो जाएँगी।}}
</blockquote>
१९८३ ई में उन्होंने चित्रकूट की [[:en:Chitrakuta#Sphatic Shila|स्फटिक शिला]] के निकट अपना द्वितीय षाण्मासिक पयोव्रत अनुष्ठान सम्पन्न किया।<ref name="dinkarlaterlife"/> यह पयोव्रत स्वामी रामभद्राचार्य के जीवन का एक नियमित व्रत बन गया है। २००२ ई में अपने षष्ठ षाण्मासिक पयोव्रत अनुष्ठान में उन्होंने श्रीभार्गवराघवीयम् नामक संस्कृत महाकाव्य की रचना की।<ref>{{cite book | year=२००२ | language=संस्कृत | date=अक्टूबर ३०, २००२ | title = श्रीभार्गवराघवीयम् (संस्कृतमहाकाव्यम्) | first=स्वामी | last=रामभद्राचार्य | place=चित्रकूट, उत्तर प्रदेश, भारत | publisher=जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | pages=५११}}</ref><ref>दिनकर २००८, पृष्ठ १२७।</ref> वे अब भी तक नियमित रूप से षाण्मासिक पयोव्रत का अनुष्ठान करते रहते हैं, २०१०-२०११ में उन्होंने अपने नवम पयोव्रत का अनुष्ठान किया।<ref>{{cite web | last=संवाददाता | first=चित्रकूट | publisher=जागरण याहू | title
[[चित्र:JagadguruRamabhadracharya002.jpg|thumb|right| अक्टूबर २५, २००९ के दिन जगद्गुरु रामभद्राचार्य चित्रकूट स्थित तुलसी पीठ में संत तुलसीदास की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए]]
=== तुलसी पीठ ===
१९८७ में उन्होंने चित्रकूट में एक धार्मिक और समाजसेवा संस्थान [[तुलसी|तुलसी पीठ]] की स्थापना की, जहाँ रामायण के अनुसार श्रीराम ने वनवास के चौदह में से बारह वर्ष बिताए थे।<ref name="jagaran">{{cite web | last=संवाददाता | first=चित्रकूट | publisher=जागरण याहू | title
=== जगद्गुरुत्व ===
[[:en:Jagadguru|जगद्गुरु]] [[सनातन धर्म]] में प्रयुक्त एक उपाधि है जो पारम्परिक रूप से वेदान्त दर्शन के उन [[आचार्य|आचार्यों]] को दी जाती है जिन्होंने प्रस्थानत्रयी (ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता और मुख उपनिषद्) पर संस्कृत में भाष्य रचा है। मध्यकाल में भारत में कई प्रस्थानत्रयीभाष्यकार हुए थे यथा [[शंकराचार्य]], [[निम्बार्काचार्य]], [[रामानुजाचार्य]], [[मध्वाचार्य]], रामानन्दाचार्य और अंतिम थे
[[वल्लभाचार्य]] (१४७९ से १५३१ ई)। वल्लभाचार्य के भाष्य के पश्चात् पाँच सौ वर्षों तक संस्कृत में प्रस्थानत्रयी पर कोई भाष्य नहीं लिखा गया।<ref name="subedi">{{cite web | last=संवाददाता | first=चित्रकूट | publisher=जागरण याहू | title
जून २४, १९८८ ई के दिन काशी विद्वत् परिषद् वाराणसी ने रामभद्रदास का तुलसीपीठस्थ जगद्गुरु रामानन्दाचार्य के रूप में चयन किया।<ref name="dinkarjagadguru"/> ३ फ़रवरी १९८९ को [[प्रयाग]] में [[कुंभ मेला|महाकुंभ]] में रामानन्द सम्प्रदाय के तीन अखाड़ों के महन्तों, सभी सम्प्रदायों, खालसों और संतों द्वारा सर्वसम्मति से काशी विद्वत् परिषद् के निर्णय का समर्थन किया गया।<ref>अग्रवाल २०१०, पृष्ठ ७८१।</ref> इसके बाद १ अगस्त १९९५ को अयोध्या में दिगंबर अखाड़े ने रामभद्रदास का जगद्गुरु रामानन्दाचार्य के रूप में विधिवत अभिषेक किया।<ref name="kbs-bio"/> अब रामभद्रदास का नाम हुआ '''जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य'''। इसके बाद उन्होंने ब्रह्म सूत्र, भगवद्गीता और ११ उपनिषदों (कठ, केन, माण्डूक्य, ईशावास्य, प्रश्न, तैत्तिरीय, ऐतरेय, श्वेताश्वतर, छान्दोग्य, बृहदारण्यक और मुण्डक) पर संस्कृत में श्रीराघवकृपाभाष्य की रचना की। इन भाष्यों का प्रकाशन १९९८ में हुआ।<ref name="dinkarbiblio"/> वे पहले ही नारद भक्ति सूत्र और रामस्तवराजस्तोत्र पर संस्कृत में राघवकृपाभाष्य की रचना कर चुके थे। इस प्रकार स्वामी रामभद्राचार्य ने ५०० वर्षों में पहली बार संस्कृत में प्रस्थानत्रयीभाष्यकार बनकर लुप्त हुई जगद्गुरु परम्परा को पुनर्जीवित किया और रामानन्द सम्प्रदाय को स्वयं रामानन्दाचार्य द्वारा रचित ''आनन्दभाष्य'' के बाद प्रस्थानत्रयी पर दूसरा संस्कृत भाष्य दिया।<ref name="subedi"/><ref>{{cite book | title = हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली ४ | last=द्विवेदी | first=मुकुन्द | publisher=राजकमल प्रकाशन | year=२००७ | origyear=प्रथम संस्करण १९८१ | edition=संशोधित, परिवर्धित | location=नई दिल्ली, भारत | id=ISBN 972812671358-5 | pages=पृष्ठ २७३}}</ref>
; संयुक्त राष्ट्र को सम्बोधन
अगस्त २८ से ३१, २००० ई के बीच [[न्यूयॉर्क शहर|न्यू यॉर्क]] में [[संयुक्त राष्ट्र]] द्वारा आयोजित सहस्राब्दी विश्व शान्ति शिखर सम्मलेन में भारत के आध्यात्मिक और धार्मिक गुरुओं में जगद्गुरु रामभद्राचार्य सम्मिलित थे। संयुक्त राष्ट्र को उद्बोधित करते हुए अपने में उन्होंने भारत और हिन्दू शब्दों की संस्कृत व्याख्या और ईश्वर के सगुण और निर्गुण स्वरूपों का उल्लेख करते हुए शान्ति पर वक्तव्य दिया। इस वक्तव्य द्वारा उन्होंने विश्व के सभी विकसित और विकासशील देशों से एकजुट होकर दरिद्रता उन्मूलन, आतंकवाद दलन और निःशस्त्रीकरण के लिए प्रयासरत होने का आह्वान किया। वक्तव्य के अन्त में उन्होंने शान्ति मन्त्र का पाठ किया।<ref>{{cite web | language=अंग्रेज़ी | last=संवाददाता | first=कार्यालय | publisher=दि हिन्दू | title = 100 from India for World Peace Summit | url = http://www.hindu.com/2000/05/26/stories/14262185.htm | date = मई २६, २००० | accessdate=जून २४, २०११}}</ref><ref>{{cite web | publisher=विश्व धर्म संसद | title
=== अयोध्या मसले में साक्ष्य ===
जुलाई २००३ में जगद्गुरु रामभद्राचार्य [[इलाहाबाद उच्च न्यायालय]] के सम्मुख [[अयोध्या विवाद]] के अपर मूल अभियोग संख्या ५ के अन्तर्गत धार्मिक मामलों के विशेषज्ञ के रूप में साक्षी बनकर प्रस्तुत हुए (साक्षी संख्या ओ पी डब्लु १६)।<ref>{{cite web | language=अंग्रेज़ी | last=शर्मा | first=अमित | publisher=इण्डियन एक्सप्रेस | title = No winners in VHP’s Ayodhya blame game | url = http://www.indianexpress.com/oldStory/23063/ | date = मई १, २००३ | accessdate=जून २५, २०११}}</ref><ref>{{cite web | language = अंग्रेज़ी | title = Babar destroyed Ram temple at Ayodhya | publisher = मिड डे | url = http://www.mid-day.com/news/2003/jul/58790.htm | date = जुलाई १७, २००३ | accessdate = जून २५, २०११ | archive-url = https://web.archive.org/web/20110810072515/http://www.mid-day.com/news/2003/jul/58790.htm | archive-date = 10 अगस्त 2011 | url-status = live }}</ref><ref>{{cite web | language = अंग्रेज़ी | publisher = मिड डे | title = Ram Koop was constructed by Lord Ram | url = http://www.mid-day.com/news/2003/jul/59146.htm | date = जुलाई २१, २००३ | accessdate = जून २५, २०११ | archive-url = https://web.archive.org/web/20110810072509/http://www.mid-day.com/news/2003/jul/59146.htm | archive-date = 10 अगस्त 2011 | url-status = live }}</ref> उनके शपथ पत्र और जिरह के कुछ अंश अन्तिम निर्णय में उद्धृत हैं।<ref name="rjbm-sa-verdict">अग्रवाल २०१०, पृष्ठ. ३०४, ३०९, ७८०-७८८, ११०३-१११०, २००४-२००५, ४४४७, ४४४५-४४५९, ४५३७, ४८९१-४८९४, ४९९६।</ref><ref>शर्मा २०१०, पृष्ठ २१, ३१.</ref><ref>शर्मा २०१०, पृष्ठ २७३.</ref> अपने शपथ पत्र में उन्होंने सनातन धर्म के प्राचीन शास्त्रों (वाल्मीकि रामायण, रामतापनीय उपनिषद्, [[स्कन्द पुराण]], [[यजुर्वेद]], [[अथर्ववेद]], इत्यादि) से उन छन्दों को उद्धृत किया जो उनके मतानुसार अयोध्या को एक पवित्र तीर्थ और श्रीराम का जन्मस्थान सिद्ध करते हैं। उन्होंने तुलसीदास की दो कृतियों से नौ छन्दों (तुलसी दोहा शतक से आठ दोहे और कवितावली से एक कवित्त) को उद्धृत किया जिनमें उनके कथनानुसार अयोध्या में मन्दिर के तोड़े जाने और विवादित स्थान पर मस्जिद के निर्माण का वर्णन है।<ref name="rjbm-sa-verdict"/> प्रश्नोत्तर के दौरान उन्होंने रामानन्द सम्प्रदाय के इतिहास, उसके [[:en:Matha|मठों]], [[:en:Mahant|महन्तों]] के विषय में नियमों, [[:en:Akhara|अखाड़ों]] की स्थापना और संचालन और तुलसीदास की कृतियों का विस्तृत वर्णन किया।<ref name="rjbm-sa-verdict"/> मूल मन्दिर के विवादित स्थान के उत्तर में होने के प्रतिपक्ष द्वारा रखे गए तर्क का निरसन करते हुए उन्होंने स्कन्द पुराण के अयोध्या महात्म्य में वर्णित राम जन्मभूमि की सीमाओं का वर्णन किया, जोकि न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल द्वारा विवादित स्थल के वर्तमान स्थान से मिलती हुई पायी गयीं।<ref name="rjbm-sa-verdict"/>
== जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय ==
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[[चित्र:JRHU - Chancellor with students.jpg|thumb|right|जनवरी २, २००५ ई के दिन विकलांग विश्वविद्यालय के परिसर में मुख्य भवन के सामने अस्थि विकलांग विद्यार्थियों के साथ कुलाधिपति जगद्गुरु रामभद्राचार्य]]
२३ अगस्त १९९६ ई के दिन स्वामी रामभद्राचार्य ने चित्रकूट में दृष्टिहीन विद्यार्थियों के लिए तुलसी प्रज्ञाचक्षु विद्यालय की स्थापना की।<ref name="aicb-bio"/><ref name="jagaran"/> इसके बाद उन्होंने केवल विकलांग विद्यार्थियों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्ति हेतु एक संस्थान की स्थापना का निर्णय लिया। इस उद्देश्य के साथ उन्होंने सितम्बर २७, २००१ ई को चित्रकूट, उत्तर प्रदेश, में जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना की।<ref>{{cite web | title = About JRHU | language = अंग्रेज़ी | url = http://www.jrhu.com/index_files/Page329.htm | accessdate = जुलाई २१, २००९ | publisher = जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | archive-url = https://web.archive.org/web/20090704010720/http://jrhu.com/index_files/Page329.htm | archive-date = 4 जुलाई 2009 | url-status = dead }}</ref><ref>{{cite web | last=शुभ्रा | title = जगदगुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | url = http://archive.is/eDRf | journal=भारतीय पक्ष | accessdate = अप्रैल २५, २०११ | date=फ़रवरी १२, २०१०}}</ref> यह भारत और विश्व का प्रथम विकलांग विश्वविद्यालय है।<ref>{{cite web | language=अंग्रेज़ी | publisher=हिन्दुस्तान टाइम्स | first=तरुण | last=सुभाष | title
== रामचरितमानस की प्रामाणिक प्रति ==
[[चित्र:JagadguruRamabhadracharya008.jpg|thumb|right|जगद्गुरु रामभद्राचार्य अपने द्वारा सम्पादित रामचरितमानस की प्रामाणिक प्रति (भावार्थबोधिनी टीका सहित) भारत की राष्ट्रपति [[प्रतिभा पाटिल]] को अर्पित करते हुए]]
गोस्वामी तुलसीदास ने अयुताधिक पदों से युक्त रामचरितमानस की रचना १६वी शताब्दी ई में की थी। ४०० वर्षों में उनकी यह कृति उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय बन गयी और इसे पाश्चात्य [[भारतविद्या|भारतविद्]] बहुशः '''उत्तर भारत की बाईबिल''' कहते हैं।<ref>{{cite book | language=अंग्रेज़ी | last = लौख्टैफेल्ड | first = जेम्स जी | id=ISBN 978-0-8239-3180-4 | title = The Illustrated Encyclopedia of Hinduism: N-Z | language=अंग्रेज़ी | year = २००१ | publisher=रोज़ेन प्रकाशन ग्रुप | pages=पृष्ठ ५५९}}</ref><ref>{{cite book | location=व्हाईटफ़िश, मोंटाना, संयुक्त राज्य अमरीका | last
२०वी शताब्दी में वाल्मीकि रामायण और महाभारत का विभिन्न प्रतियाँ के आधार पर सम्पादन और प्रामाणिक प्रति ({{lang-en|critical edition}}) का मुद्रण क्रमशः बड़ौदा स्थित [[:en:Maharaja Sayajirao University of Baroda#Oriental Institute|महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय]] और पुणे स्थित [[:en:Bhandarkar Oriental Research Institute|भण्डारकर प्राच्य शोध संस्थान]] द्वारा किया गया था,<ref>{{cite web | language=अंग्रेज़ी | title
आधुनिक प्रतियों की तुलना में तुलसी पीठ प्रति में मूलपाठ में कई स्थानों पर अन्तर है - मूल पाठ के लिए स्वामी रामभद्राचार्य ने पुरानी प्रतियों को अधिक विश्वसनीय माना है।<ref name="toi-fia"/> इसके अतिरिक्त वर्तनी, व्याकरण और छन्द सम्बन्धी प्रचलन में आधुनिक प्रतियों से तुलसी पीठ प्रति निम्नलिखित प्रकार से भिन्न है।<ref name="rcmtp-prologue"/><ref>{{cite web | last=शुक्ल | first=राम सागर | publisher=वेबदुनिया | title
# गीता प्रेस सहित कईं आधुनिक प्रतियाँ २ पंक्तियों में लिखित १६-१६ मात्राओं के चार चरणों की इकाई को एक चौपाई मानती हैं, जबकि कुछ विद्वान एक पंक्ति में लिखित ३२ मात्राओं की इकाई को एक चौपाई मानते हैं।<ref>{{cite book | title = तुलसी जन्म भूमि: शोध समीक्षा | first=राम गणेश | last=पाण्डेय | publisher=भारती भवन प्रकाशन | year=२००८ | edition=संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण | location=चित्रकूट, उत्तर प्रदेश, भारत | origyear=प्रथम संस्करण २००३ | quote=हनुमान चालीसा ... इसकी भाषा अवधी है। दोहा-चौपाई छन्द हैं। इसमें ४० चौपाइयाँ और २ दोहे हैं। | pages=पृष्ठ ५४}}</ref> रामभद्राचार्य ने ३२ मात्राओं की एक चौपाई मानी है, जिसके समर्थन में उन्होंने [[हनुमान चालीसा]] और [[आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] द्वारा [[पद्मावत]] की समीक्षा के उदाहरण दिए हैं। उनके अनुसार इस व्याख्या में भी चौपाई के चार चरण निकलते हैं क्यूंकि हर १६ मात्राओं की अर्धाली में ८ मात्राओं के बाद यति है। परिणामतः तुलसी पीठ प्रति में चौपाइयों की गणना फ़िलिप लुट्गेनडॅार्फ़ की गणना जैसी है।<ref>{{cite book | year=१९९१ | title = The Life of a Text: Performing the 'Ramcaritmanas' of Tulsidas | last=लुट्गेनडॅार्फ़ | first=फ़िलिप | publisher=कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय प्रेस | place=बर्कली, कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमरीका | id=ISBN 978-0-520-06690-8 | chapter=The Text and the Research Context | pages=१४}}</ref>
# कुछ अपवादों (पादपूर्ति इत्यादि) को छोड़कर तुलसी पीठ की प्रति में आधुनिक प्रतियों में प्रचलित कर्तृवाचक और कर्मवाचक पदों के अन्त में उकार के स्थान पर अकार का प्रयोग है। रामभद्राचार्य के मतानुसार उकार का पदों के अन्त में प्रयोग त्रुटिपूर्ण है, क्यूंकि ऐसा प्रयोग अवधी के स्वभाव के विरुद्ध है।
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# आधुनिक प्रतियों में प्रयुक्त [[तद्भव]] शब्दों में उनके [[तत्सम]] रूप के तालव्य शकार के स्थान पर सर्वत्र दन्त्य सकार का प्रयोग है। तुलसी पीठ के प्रति में यह प्रयोग वहीं है जहाँ सकार के प्रयोग से अनर्थ या विपरीत अर्थ न बने। उदाहरणतः सोभा (तत्सम शोभा) में तो सकार का प्रयोग है, परन्तु शंकर में नहीं क्यूँकि रामभद्राचार्य के अनुसार यहाँ सकार कर देने से वर्णसंकर के अनभीष्ट अर्थ वाला संकर पद बन जाएगा।<ref>रामभद्राचार्य २००६, पृष्ठ १३-१४।</ref>
नवम्बर २००९ में तुलसी पीठ की प्रति को लेकर अयोध्या में एक विवाद हो गया था। [[:en:Akhil Bharatiya Akhara Parishad|अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद्]] और [[:en:Ram Janmabhoomi Nyas|राम जन्मभूमि न्यास]] ने मानस से छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए स्वामी रामभद्राचार्य से क्षमायाचना करने को कहा था।<ref name="toi-fia"/><ref>{{cite web | last = संवाददाता | first = अयोध्या (भाषा) | publisher = वेबदुनिया | title = रामचरित मानस से जुड़ा विवाद गहराया | url = http://hindi.webdunia.com/news/news/regional/0911/03/1091103099_1.htm | date = नवम्बर ३, २००९ | accessdate = जून २५, २०११ | archive-url = https://web.archive.org/web/20110924103211/http://hindi.webdunia.com/news/news/regional/0911/03/1091103099_1.htm | archive-date = 24 सितंबर 2011 | url-status = live }}</ref> उत्तर में स्वामी रामभद्राचार्य का कथन था कि उन्होंने केवल मानस की प्रचलित प्रतियों का संपादन किया था, मूल मानस में संशोधन नहीं।<ref name="jagaran-rcm">{{cite web | last=संवाददाता | first=चित्रकूट | publisher=जागरण याहू | title
== साहित्यिक कृतियाँ ==
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[[चित्र:JagadguruRamabhadracharya006.jpg|thumb|right|अक्टूबर ३०, २००२ को श्रीभार्गवराघवीयम् का लोकार्पण करते हुए भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री [[अटल बिहारी वाजपेयी]]। जगद्गुरु रामभद्राचार्य बायीं ओर हैं।]]
; [[महाकाव्य]]
* ''[[श्रीभार्गवराघवीयम्]]'' (२००२) – एक सौ एक श्लोकों वाले इक्कीस सर्गों में विभाजित और चालीस संस्कृत और प्राकृत के छन्दों में बद्ध २१२१ श्लोकों में विरचित संस्कृत महाकाव्य। स्वयं महाकवि द्वारा रचित हिन्दी टीका सहित। इसका वर्ण्य विषय दो राम अवतारों ([[परशुराम]] और राम) की लीला है। इस रचना के लिए कवि को २००५ में संस्कृत के [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया था।<ref name="sa2005">{{cite web | title = साहित्य अकादमी सम्मान २००५ | year = २००५ | publisher = नेशनल पोर्टल ऑफ इण्डिया | url = http://india.gov.in/knowindia/sakademi_awards05.php | accessdate = अप्रैल २४, २०११ | archive-url = https://web.archive.org/web/20110409185243/http://india.gov.in/knowindia/sakademi_awards05.php | archive-date = 9 अप्रैल 2011 | url-status = live }}</ref><ref>{{cite web | last=पी टी आई | first= | publisher=डी एन ए इंडिया | title
* ''[[अष्टावक्र (महाकाव्य)|अष्टावक्र]]'' (२०१०) – एक सौ आठ पदों वाले आठ सर्गों में विभाजित ८६४ पदों में विरचित हिन्दी महाकाव्य। यह महाकाव्य [[अष्टावक्र]] ऋषि के जीवन का वर्णन है, जिन्हें विकलांगों के पुरोधा के रूप में दर्शाया गया है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
* ''[[अरुन्धती (महाकाव्य)|अरुन्धती]]'' (१९९४) – १५ सर्गों और १२७९ पदों में रचित हिन्दी महाकाव्य। इसमें ऋषि दम्पती वसिष्ठ और [[अरुन्धती]] के जीवन का वर्णन है। राघव साहित्य प्रकाशन निधि, राजकोट द्वारा प्रकाशित।
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[[चित्र:JagadguruRamabhadracharya007.jpg|thumb|right|२००६ में तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष [[सोमनाथ चटर्जी]] द्वारा वाणी अलंकरण पुरस्कार से सम्मानित किए जाते हुए जगद्गुरु रामभद्राचार्य]]
[[चित्र:JagadguruRamabhadracharya004.jpg|thumb|left|मार्च ३०, २००६ के दिन तत्कालीन राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम द्वारा प्रशस्ति पत्र से पुरस्कृत किए जाते हुए जगद्गुरु रामभद्राचार्य]]
* २०११। [[हिमाचल प्रदेश]] सरकार, शिमला की ओर से देवभूमि पुरस्कार। हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जोसेफ़ कुरियन द्वारा प्रदत्त।<ref>{{cite web | language=अंग्रेज़ी | title=Himachal Pradesh State Level Award For Sandeep Marwah | date
* २००८। श्रीभार्गवराघवीयम् के लिए के के बिड़ला प्रतिष्ठान की ओर से श्री वाचस्पति पुरस्कार। राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल शैलेन्द्र कुमार सिंह द्वारा प्रदत्त।<ref>{{cite web | language=अंग्रेज़ी | last=विशेष संवाददाता | publisher=दि हिन्दू | title=Selected for Birla Foundation awards | date
* २००७। तुलसी शोध संस्थान, इलाहाबाद नगर निगम की ओर से गोस्वामी तुलसीदास समर्चन सम्मान। भारत के भूतपूर्व प्रधान न्यायाधीश रमेश चन्द्र लाहोटी द्वारा प्रदत्त।<ref>{{cite web | last=औपचारिक वेबसाइट | first= | title=गोस्वामी तुलसीदास समर्चन सम्मान | url =http://jagadgururambhadracharya.org/ViewContent/gallery/Awards%20Prizes/originals/Goswami%20Tulsidas%20Saarchan%20Samman.jpg | accessdate = जुलाई २, २०११ | publisher=श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास}}</ref>
* २००६। हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग की ओर से संस्कृत महामहोपाध्याय।<ref>{{cite web | last=औपचारिक वेबसाइट | first= | title=२००६ में संस्कृत महामहोपाध्याय | url=http://jagadgururambhadracharya.org/ViewContent/gallery/Awards%20Prizes/originals/Sanskrit%20Mahamahopadhyay%20in%202006.jpg | accessdate = जुलाई २, २०११ | publisher=श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास}}</ref>
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* २००४। बादरायण पुरस्कार। तत्कालीन [[भारत के राष्ट्रपति|भारतीय राष्ट्रपति]] [[अब्दुल कलाम]] द्वारा प्रदत्त।<ref name="kbs-awards">{{cite journal | first=आर | last=चन्द्रा | title=सम्मान और पुरस्कार | volume=८ | issue=११ | journal=क्रान्ति भारत समाचार | location=लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत | date=सितम्बर २००८ | pages=२१}}</ref>
* २००३। [[मध्य प्रदेश]] संस्कृत अकादमी की ओर से राजशेखर सम्मान।<ref name="kbs-awards"/>
* २००३। लखनऊ स्थित भाऊराव देवरस सेवा न्यास की ओर से भाऊराव देवरस पुरस्कार।<ref>{{cite web | last=टी एन एन | language=अंग्रेज़ी | title=Bhaurao Samman for Dattopanth Thengadi | date
* २००३। दीवालीबेन मेहता चैरीटेबल ट्रस्ट द्वारा धर्म और संस्कृति में प्रगति के लिए दीवालीबेन पुरस्कार। भारत के भूतपूर्व प्रमुख न्यायाधीश पी एन भगवती द्वारा प्रदत्त।<ref>{{cite web | last=औपचारिक वेबसाइट | first= | title=दीवालीबेन पुरस्कार | url =http://jagadgururambhadracharya.org/ViewContent/gallery/Awards%20Prizes/originals/Diwaliben%20award.jpg | accessdate = जुलाई २, २०११| publisher=श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास}}</ref>
* २००३। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ की ओर से अतिविशिष्ट पुरस्कार।<ref name="kbs-awards"/>
* २००२। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, की ओर से कविकुलरत्न की उपाधि।<ref name="kbs-awards"/>
* २०००। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ की ओर से विशिष्ट पुरस्कार।<ref>{{cite web | last=औपचारिक वेबसाइट | first= | title=उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा विशिष्ट पुरस्कार | url =http://jagadgururambhadracharya.org/ViewContent/gallery/Awards%20Prizes/originals/Vishisht%20Puraskar%20by%20UP%20Sanskrit%20Sansthan.jpg | accessdate = जुलाई २, २०११ | publisher=श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास}}</ref>
* २०००। [[लाल बहादुर शास्त्री]] संस्कृत विद्यापीठ, नयी दिल्ली की ओर से महामहोपाध्याय की उपाधि।<ref>{{cite web | language=अंग्रेज़ी | title=Shri Lal Bahadur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapeetha - Convocation | url
* १९९९। कविराज विद्या नारायण शास्त्री अर्चन-सम्मान समिति, भागलपुर (बिहार) द्वारा संस्कृत भाषा को योगदान हेतु कविराज विद्या नारायण शास्त्री अर्चन-सम्मान पुरस्कार।<ref>नागर २००२, पृष्ठ १८४।</ref>
* १९९९। अखिल भारतीय हिन्दी भाषा सम्मेलन, भागलपुर (बिहार) द्वारा हिन्दी भाषा, साहित्य और संस्कृति को अमूल्य योगदान और उनके प्रचार-प्रसार हेतु महाकवि की उपाधि।<ref>नागर २००२, पृष्ठ १८३।</ref>
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== सन्दर्भ ==
* {{cite book | last=अग्रवाल | first=
* {{cite book | last=दिनकर | first=डॉ वागीश | title = श्रीभार्गवराघवीयम् मीमांसा | publisher=देशभारती प्रकाशन | location=दिल्ली, भारत | year=२००८ | chapter=महाकवि परिचय (व्यक्तित्व एवं कृतित्व) | id=ISBN 978-81-908276-6-9}}
* {{cite book | title = The Holy Journey of a Divine Saint: Being the English Rendering of Swarnayatra Abhinandan Granth | language=अंग्रेज़ी | first=शान्ति लाल | last=नागर | editor1-first=आचार्य दिवाकर | editor1-last=शर्मा | editor2-first=शिव कुमार | editor2-last=गोयल | editor3-first=सुरेन्द्र शर्मा | editor3-last=सुशील | publisher=बी आर प्रकाशन निगम | year=२००२ | edition=प्रथम, सजिल्द संस्करण | location=नई दिल्ली, भारत | id=ISBN 978-81-7646-288-4}}
* {{cite book | language=अंग्रेज़ी | title
* {{cite book | <!-- editor=रामद्राचार्य, स्वामी (ed.) --> | last=रामद्राचार्य | first=स्वामी, ed. | date= मार्च ३०, २००६ | title = श्रीरामचरितमानस – मूल गुटका (तुलसीपीठ संस्करण) | edition=चतुर्थ संस्करण | publisher=जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | location=चित्रकूट, उत्तर प्रदेश, भारत}}
* {{cite book | last=शर्मा | first=न्यायमूर्ति धरम वीर | date=सितम्बर ३०, २०१० | title=Judgment in OOS No. 4 of 1989 | publisher=इलाहाबाद उच्च न्यायालय | url=http://elegalix.allahabadhighcourt.in/elegalix/DisplayAyodhyaBenchLandingPage.do | location=इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत | language=अंग्रेज़ी | accessdate=अप्रैल २४, २०११ | archive-url=https://web.archive.org/web/20140827003623/http://elegalix.allahabadhighcourt.in/elegalix/DisplayAyodhyaBenchLandingPage.do | archive-date=27 अगस्त 2014 | url-status=live }}
* {{cite book | last=शर्मा | first=न्यायमूर्ति धरम वीर | date=सितम्बर ३०, २०१० | title=
== बाहरी कड़ियाँ ==
{{commons cat|Jagadguru Rambhadracharya|जगद्गुरु रामभद्राचार्य}}
{{विकिसूक्ति|जगद्गुरु रामभद्राचार्य}}
* [
* [https://web.archive.org/web/20110813002949/http://www.jagadgururambhadracharya.org/ViewContent/pdfs/Jagadguru%20Rambhadracharya%20-%20Ramacaritamanasa%20Bhavarthabodhini.pdf रामचरितमानस पर जगद्गुरु रामभद्राचार्य की भावार्थबोधिनी टीका]
* [https://web.archive.org/web/20130429194118/https://sites.google.com/site/jagadgururambhadracharya/ गूगल पृष्ठों पर जगद्गुरु रामभद्राचार्य की अनौपचारिक वेबसाइट]
* [https://web.archive.org/web/20110902143641/http://www.jrhu.com/ जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय]
* [https://web.archive.org/web/20140605055141/http://www.youtube.com/user/namoraghavay जगद्गुरु रामभद्राचार्य के विषय में जानकारी और उनके प्रवचनों का यूट्यूब चैनल]
{{हिन्दी साहित्यकार (जन्म १९४१-१९५०)}}
{{जगद्गुरु रामभद्राचार्य}}
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