"शाक्त सम्प्रदाय": अवतरणों में अंतर

हटाया गया रीडायरेक्ट शाक्त के लिए
टैग: हटाया गया पुनर्निर्देशन
Rescuing 1 sources and tagging 0 as dead.) #IABot (v2.0.1
पंक्ति 6:
हिन्दुओं के [[श्रुति]] तथा [[स्मृति]] ग्रन्थ, शाक्त परम्परा का प्रधान ऐतिहासिक आधार बनाते हुए दिखते हैं। इसके अलावा शाक्त लोग [[देवीमाहात्म्य]], [[देवीभागवत पुराण]] तथा शाक्त उपनिषदों (जैसे, [[देवी उपनिषद]]) पर आस्था रखते हैं।
 
शाक्त अर्थात 'भगवती शक्ति की उपासना'। शाक्त धर्म शक्ति की साधना का विज्ञान है। इसके मतावलंबी शाक्त धर्म को भी प्राचीन वैदिक धर्म के बराबर ही पुराना मानते हैं। यह बात उल्लेखनीय है कि इस धर्म का विकास वैदिक धर्म के साथ ही साथ या सनातन धर्म में इसे समावेशित करने की ज़रूरत के साथ ही हुआ। यह हिन्दू धर्म में पूजा का एक प्रमुख स्वरूप है, जिसे अब 'हिन्दू धर्म' कहा जाता है, उसे तीन अंतःप्रवाहित, परस्परव्यापी धाराओं में विभाजित किया जा सकता है। वैष्णववाद, भगवान विष्णु की उपासना; शैववाद, भगवान शिव की पूजा; तथा शाक्तवाद, देवी के शक्ति रूप की उपासना। इस प्रकार शाक्तवाद दक्षिण एशिया में विभिन्न देवी परम्पराओं को नामित करने वाला आम शब्द है, जिसका सामान्य केन्द्र बिन्दु देवियों की पूजा है।<ref name=":0">{{Cite web|url=https://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4|title=शाक्त - भारतकोश, ज्ञान का हिन्दी महासागर|website=bharatdiscovery.org|access-date=2020-01-05|archive-url=https://web.archive.org/web/20190630151719/http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4|archive-date=30 जून 2019|url-status=live}}</ref>
 
'<nowiki/>'''शक्ति की पूजा'''' शक्ति के अनुयायियों को अक्सर 'शाक्त' कहा जाता है। शाक्त न केवल शक्ति की पूजा करते हैं, बल्कि उसके शक्ति–आविर्भाव को मानव शरीर एवं जीवित ब्रह्माण्ड की शक्ति या ऊर्जा में संवर्धित, नियंत्रित एवं रूपान्तरित करने का प्रयास भी करते हैं। विशेष रूप से माना जाता है कि शक्ति, कुंडलिनी के रूप में मानव शरीर के गुदा आधार तक स्थित होती है। जटिल ध्यान एवं यौन–यौगिक अनुष्ठानों के ज़रिये यह कुंडलिनी शक्ति जागृत की जा सकती है। इस अवस्था में यह सूक्ष्म शरीर की सुषुम्ना से ऊपर की ओर उठती है। मार्ग में कई चक्रों को भेदती हुई, जब तक सिर के शीर्ष में अन्तिम चक्र में प्रवेश नहीं करती और वहाँ पर अपने पति-प्रियतम शिव के साथ हर्षोन्मादित होकर नहीं मिलती। भगवती एवं भगवान के पौराणिक संयोजन का अनुभव हर्षोन्मादी–रहस्यात्मक समाधि के रूप में मनों–दैहिक रूप से किया जाता है, जिसका विस्फोटी परमानंद कहा जाता है कि कपाल क्षेत्र से उमड़कर हर्षोन्माद एवं गहनानंद की बाढ़ के रूप में नीचे की ओर पूरे शरीर में बहता है।<ref name=":0" />