"शीतयुद्ध": अवतरणों में अंतर

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इस समय के दौरान शीतयुद्ध का असली रूप उभरा। अमेरिका व सोवियत संघ के मतभेद खुलकर सामने आए। इस काल में शीत युद्ध को बढ़ाने देने वाली प्रमुख घटनाएं निम्नलिखित हैं-
 
*1 . 1946 में चर्चिल ने सोवियत संघ के [[साम्यवाद]] की आलोचना की। उसने अमेरिका के फुल्टन नामक स्थान पर आंग्ल-अमरीकी गठबन्धन को मजबूत बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। इसमें सोवियत संघ विरोधी भावना स्पष्ट तौर पर उभरकर सामने आई। अमेरिकन सीनेट ने भी सोवियत संघ की विदेश नीति को आक्रामक व विस्तावादी बनाया गया। इससे शीत युद्ध को बढ़ावा मिला।
 
*2 . मार्च 1947 में [[ट्रूमैन सिद्वान्त|ट्रूमैन सिद्धान्त]] द्वारा साम्यवादी प्रसार रोकने की बात कही गई। इस सिद्धान्त के अनुसार विश्व के किसी भी भाग में अमेरिका हस्तक्षेप को उचित ठहराया गया। [[यूनान]], [[पेरू (पक्षी)|टर्की]] में अमेरिका द्वारा हस्तक्षेप करके सोवियत संघ के प्रभाव को कम करने की बात स्वीकार की गई। अमेरिका ने आर्थिक सहायता के नाम पर हस्तक्षेप करने की चाल चलकर शीतयुद्ध को भड़काया और विश्व शांति को भंग कर दिया।
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*3 . 23 अप्रैल 1947 को अमेरिका द्वारा प्रतिपादित [[मार्शल योजना]] ने भी सोवियत संघ के मन में अविश्वास व वैमनस्य की भावना को बढ़ावा दिया। इस योजना के अुनसार पश्चिमी यूरोपीय देशों को 12 अरब डालर की आर्थिक सहायता देने का कार्यक्रम स्वीकार किया गया। इसका प्रमुख उद्देश्य पश्चिमी यूरोपीय देशों में साम्यवाद के प्रसार को रोकना था। इस योजना का लाभ उठाने वाले देशें पर यह शर्त लगाई गई कि वे अपनी शासन व्यवस्था से साम्यवादियों को दूर रखेंगे। इससे सोवियत संघ के मन में पश्चिमी राष्ट्रों के प्रति घृणा का भाव पैदा हो गया और शीत युद्ध को बढ़ावा मिला।
 
*4 . [[सोवियत संघ]] ने 1948 में [[बर्लिन]] की नाकेबन्दी करके शीत युद्ध को और अधिक भड़का दिया। अमेरिका ने इसका सख्त विरोध करके उसके इरादों को नाकाम कर दिया और वह भी वहां अपना सैनिक वर्चस्व बढ़ाने की तैयारी में जुट गया। इस प्रतिस्पर्धा से शीत युद्ध का माहौल विकसित हुआ।
 
*5 . [[जर्मनी का इतिहास (१९४५-९०)|जर्मनी के विभाजन]] ने भी दोनों महाशक्तियों में विरोध की प्रवृति को जन्म दिया। जर्मनी का बंटवारा इसलिए हुआ था कि दोनों शक्तियां अपने-अपने क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढ़ा सकें। लेकिन अमेरिका की मार्शल योजना तथा सोवियत संघ की ‘[[कोमिकान]]’‘कोमिकान’ की नीति ने यूरोप को सोवियत संघ तथा अमेरिका के मध्य शीत युद्ध को बढ़ावा दिया।
 
*6 . 1949 में अमेरिका ने अपने मित्र राष्ट्रों के सहयोग से [[नाटो]] जैसे सैनिक संघ का निर्माण किया। इसका उद्देश्य उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में शान्ति बनाए रखने के लिए किसी भी बाहरी खतरे से कारगर ढंग से निपटना था। इस सन्धि में सोवियत संघ को सीधी चेतावनी दी गई कि यदि उसने किसी भी सन्धि में शामिल देश पर आक्रमण किया तो उसके भयंकर परिणाम होंगे। इससे अमेरिका और सोवियत संघ के बीच मतभेद और अधिक गहरे होते गए।
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*8 . 1950 में [[कोरियाई युद्ध|कोरिया संकट]] ने भी अमेरिका और सोवियत संघ में शीत युद्ध में वृद्धि की। इस युद्ध में उत्तरी कोरिया को सोवियत संघ तथा दक्षिणी कोरियों को अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी राष्ट्रों का समर्थन व सहयोग प्राप्त था, दोनों महाशक्तियों ने परस्पर विरोधी व्यवहार का प्रदर्शन करके शीतयुद्ध को वातावरण में और अधिक गर्मी पैदा कर दी। कोरिया युद्ध का तो हल हो गया लेकिन दोनों महाशक्तियों में आपसी टकराहट की स्थिति कायम रही।
 
*9 . 1951 में जब कोरिया युद्ध चल ही रहा था, उसी समय अमेरिका ने अपने मित्र राष्ट्रों के साथ मिलकर [[जापान]] से शान्ति सन्धि की और [[संधि (व्याकरण)|सन्धि]] को कार्यरूप देने के लिए [[सान फ्रांसिस्को]] नगर में एक सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय किया। सोवियत संघ ने इसका कड़ा विरोध किया। अमेरिका ने इसी वर्ष जापान के साथ एक प्रतिरक्षा सन्धि करके विरोध की खाई को और अधिक गहरा कर दिया। अमेरिका की इन कार्यवाहियों ने सोवियत संघ के मन में द्वेष की भावना को बढ़ावा दिया इन सन्धियों को सोवियत संघ ने साम्यवाद के विस्तार में सबसे बड़ी बाधा माना और उसकी निन्दा की।
 
===शीत युद्ध के विस्तार का दूसरा चरण===