"सर्पगन्धा": अवतरणों में अंतर

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| species = '''''राउलफिया सर्पेन्टिना'''''
| binomial = '''''राउलफिया सर्पेन्टिना'''''
| binomial_authority = ([[Carl Linnaeus|L.]]) [[Benth.]] ''ex'' [[Kurz]]<ref>{{cite web |url=http://www.ars-grin.gov/duke/syllabus/module11.htm |title=Module 11: Ayurvedic |accessdate=11 फरवरी 2008 |archive-url=https://web.archive.org/web/20071214142339/http://www.ars-grin.gov/duke/syllabus/module11.htm |archive-date=14 दिसंबर 2007 |url-status=dead }}</ref>
| synonyms =
}}
'''सर्पगन्धा''' [[एपोसाइनेसी]] परिवार का [[द्विबीजपत्री]], बहुवर्षीय झाड़ीदार [[सपुष्पक]] और महत्वपूर्ण [[औषधीय पौधा]] है। इस पौधे का पता सर्वप्रथम [[लियोनार्ड राल्फ]] ने [[१५८२]] ई. में लगाया था। [[भारत]] तथा [[चीन]] के पारंपरिक औषधियों में सर्पगन्धा एक प्रमुख औषधि है। भारत में तो इसके प्रयोग का इतिहास ३००० वर्ष पुराना है।<ref>{{cite web |url= http://www.time.com/time/magazine/article/0,9171,857672,00.html |title= पिल्स फ़ॉर मेंटल इलनेस=|accessmonthday[[२६3= मार्च]] [[२००९]]|format= एचटीएमएल|publisher= टाइम|language= अंग्रेज़ी|access-date= 14 फ़रवरी 2009|archive-url= https://web.archive.org/web/20130827000102/http://www.time.com/time/magazine/article/0,9171,857672,00.html|archive-date= 27 अगस्त 2013|url-status= live}}</ref> सर्पगन्धा के पौधे की ऊँचाई ६ इंच से २ फुट तक होती है। इसकी प्रधान जड़ प्रायः २० से. मी. तक लम्बी होती है। [[जड़]] में कोई शाखा नहीं होती है। सर्पगन्धा की [[पत्ती]] एक सरल पत्ती का उदाहरण है। इसका [[तना]] मोटी छाल से ढका रहता है। इसके [[फूल]] [[गुलाबी]] या [[सफेद]] रंग के होते हैं। ये गुच्छों में पाए जाते हैं। भारतवर्ष में समतल एवं पर्वतीय प्रदेशों में इसकी खेती होती है। [[पश्चिम बंगाल]] एवं [[बांग्लादेश]] में सभी जगह स्वाभाविक रूप से सर्पगन्धा के पौधे उगते हैं।
 
सर्पगन्धा में रिसार्पिन तथा राउलफिन नामक उपक्षार पाया जाता है। सर्पगन्धा के नाम से ज्ञात होता है कि यह [[सर्प]] के काटने पर दवा के नाम पर प्रयोग में आता है। सर्प काटने के अलावा इसे [[बिच्छू]] काटने के स्थान पर भी लगाने से राहत मिलती है। इस पौधे की [[जड़]], [[तना]] तथा [[पत्ती]] से दवा का निर्माण होता है। इसकी जड़ में लगभग २५ क्षारीय पदार्थ, [[स्टार्च]], [[रेजिन]] तथा कुछ लवण पाए जाते हैं। सर्पगंधा को [[आयुर्वेद]] में निद्राजनक कहा जाता है इसका प्रमुख तत्व रिसरपिन है, जो पूरे विश्व में एक औषधीय पौधा बन गया है इसकी जड़ से कई तत्व निकाले गए हैं जिनमें क्षाराभ रिसरपिन, सर्पेन्टिन, एजमेलिसिन प्रमुख हैं जिनका उपयोग उच्च रक्त चाप, अनिद्रा, उन्माद, हिस्टीरिया आदि रोगों को रोकने वाली औषधियों के निर्माण किया जाता है इसमें १.७ से ३.० प्रतिशत तक क्षाराभ पाए जाते हैं जिनमें रिसरपिन प्रमुख हैं इसका गुण रूक्ष, रस में तिक्त, विपाक में कटु और इसका प्रभाव निद्राजनक होता है।<ref>{{cite web |url= http://opaals.iitk.ac.in/deal/embed.jsp?url=crops-type.jsp&url2=116&url3=&url4=%E0%A4%94%E0%A4%B7%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%AA%E0%A5%8C%E0%A4%A7%E0%A5%87&url5=%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%97%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BE&url6=HI|title= औषधीय पौधे >> >> सर्पगंधा |access-date= [[२६ मार्च]] [[२००९]]|format= जेएसपी|publisher= डील|language= }}{{Dead link|date=जून 2020 |bot=InternetArchiveBot }}</ref>
 
[[चित्र:Rauwolfia serpentina at talkatora gardens delhi.jpg|left|thumb|200px|]]
दो-तीन साल पुराने पौधे की जड़ को उखाड़ कर सूखे स्थान पर रखते है, इससे जो दवाएँ निर्मित होती हैं, उनका उपयोग [[उच्च रक्तचाप]], [[गर्भाशय]] की दीवार में संकुचन के उपचार में करते हैं। इसकी पत्ती के रस को निचोड़ कर [[आँख]] में दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग [[मस्तिष्क]] के लिए औषधि बनाने के काम आता है। अनिद्रा, हिस्टीरिया और मानसिक तनाव को दूर करने में सर्पगन्धा की जड़ का रस, काफी उपयोगी है। इसकी जड़ का चूर्ण पेट के लिए काफी लाभदायक है। इससे पेट के अन्दर की कृमि खत्म हो जाती है।
== सर्पगंधा का इतिहास ==
सर्पगंधा का रूचिकर इतिहास<ref>[{{Cite web |url=http://www.scientificworld.in/2015/02/sarpagandha-tree-in-hindi.html?m=0 |title=भारत में संकटग्रस्त बहुमूल्य औषधीय वनस्पति सर्पगंधा] |access-date=25 फ़रवरी 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20150225130037/http://www.scientificworld.in/2015/02/sarpagandha-tree-in-hindi.html?m=0 |archive-date=25 फ़रवरी 2015 |url-status=live }}</ref> है। पौधे का वर्णन चरक (1000-800 ई0पू0) ने संस्कृत नाम सर्पगंधा के तहत सर्पदंश तथा कीटदंश के उपचार हेतु लाभप्रद विषनाशक के रूप में किया है। सर्पगंधा से जुड़ी अनेक कथायें हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार कोबरा सर्प (cobra snake) से युद्ध के पूर्व नेवला (mongoose) सर्पगंधा की पत्तियों को चूसकर ताकत प्राप्त करता है। दूसरी कथा के अनुसार सर्पदंश में सर्पगंधा की ताजा पीसी हुई पत्तियों को पांव के तलवे के नीचे लगाने से आराम मिलता है। एक अन्य कथा के अनुसार पागल व्यक्ति द्वारा सर्पगंधा की जड़ों के उपभोग से पागलपन से मुक्ति मिल जाती है। इसी कारण से भारत में सर्पगंधा को पागल-की-दवा के नाम से भी जाना जाता है।
 
सर्पगंधा के नामकरण को लेकर भी विभिन्न मत हैं। एक ऐसे ही मत के अनुसार इस वनस्पति का नाम सर्पगंधा इसलिए पड़ा क्योंकि सर्प इस वनस्पति की गंध पाकर दूर भाग जाते हैं। दूसरे मत के अनुसार चूंकि सर्पगंधा की जड़े सर्प की तरह लम्बी तथा टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं इसलिए इसका नाम सर्पगंधा पड़ा है। लेकिन उक्त दोनों मत भ्रामक तथा तथ्यहीन हैं। पौधे का नाम सर्पगंधा इसलिए पड़ा है क्योंकि प्राचीन काल में विशेष तौर पर इसका उपयोग सर्पदंश के उपचार में विषनाशक के रूप में होता था। सत्रहवीं शताब्दी में फ्रेन्च वनस्पतिशास्त्री प्लूमियर्स (Plumiers) ने सर्पगंधा का जेनेरिक नाम राओल्फिया, सोलहवीं शताब्दी के आगस्बर्ग (Augsburg) जर्मनी के प्रख्यात फिजिशियन, वनस्पतिशास्त्री, यात्री तथा लेखक लियोनार्ड राओल्फ (Leonard Rauwolf) के सम्मान में दिया था।
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==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://bhartiyakisan.com/Medicinal Plants.html सर्पगन्‍धा की खेती]{{Dead link|date=जून 2020 |bot=InternetArchiveBot }} (भारतीय_किसान_डॉट_कॉम)