"साबरमती आश्रम": अवतरणों में अंतर

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आश्रम में रहते हुए ही गांधी जी ने अहमदाबाद की मिलों में हुई हड़ताल का सफल संचालन किया। मिल मालिक एवं कर्मचारियों के विवाद को सुलझाने के लिए गांधी जी ने अनान आरंभ कर दिया था, जिसके प्रभाव से 21 दिनों से चल रही हड़ताल तीन दिनों के अनान से ही समाप्त हो गई। इस सफलता के पचात् गांधी जी ने आश्रम में रहते हुए खेड़ा सत्याग्रह का सूत्रपात किया। रालेट समिति की सिफारिाों का विरोध करने के लिए गांधी जी ने यहाँ तत्कालीन राष्ट्रीय नेताओं का एक सम्मेलन आयोजित किया और सभी उपस्थित लोगों ने सत्याग्रह के प्रतिज्ञा पत्र हर हस्ताक्षर किए।
 
साबरमती आश्रम में रहते हुए [https://web.archive.org/web/20180829143954/https://www.go4prep.com/mahatma-gandhi-history-biography-essay-nibandh-in-hindi/ महात्मा गांधी] ने 2 मार्च 1930 ई. को भारत के वाइसराय को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि वह नौ दिनों का सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करने जा रहे हैं। 12 मार्च 1930 ई. को महात्मा गांधी ने आश्रम के अन्य 78 व्यक्तियों के साथ नमक कानून भंग करने के लिए ऐतिहासिक दंडी यात्रा की। इसके बाद गांधी जी भारत के स्वतंत्र होने तक यहाँ लौटकर नहीं आए। उपर्युक्त आंदोलन का दमन करने के लिए सरकार ने आंदोलनकारियों की संपत्ति जब्त कर ली। आंदोलनकारियों के प्रति सहानुभूति से प्रेरित होकर, गांधी जी ने सरकार से साबरमती आश्रम ले लेने के लिए कहा पर सरकार ने ऐसा नहीं किया, फिर भी गांधी जी ने आश्रमवासियों को आश्रम छोड़कर गुजरात के खेड़ा जिले के बीरसद के निकट रासग्राम में पैदल जाकर बसने का परार्मा दिया, लेकिन आश्रमवासियों के आश्रम छोड़ देने के पूर्व 1 अगस्त 1933 ईं. को सब गिरफ्तार कर लिए गए। महात्मा गांधी ने इस आश्रम को भंग कर दिया। आश्रम कुछ काल तक जनशून्य पड़ा रहा। बाद में यह निर्णय किया गया कि हरिजनों तथा पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए शिक्षा एवं शिक्षा संबंधी संस्थाओं को चलाया जाए और इस कार्य के लिए आश्रम को एक न्यास के अधीन कर दिया जाए।
 
साबरमती आश्रम के शिष्यों द्वारा ही महात्मा गाँधी को "बापू "नाम से सर्वप्रथम सम्बोधित किया गया, जो उनके लिए एक बड़ा सम्मान था |
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [https://web.archive.org/web/20120129151343/http://powerofhydro.blogspot.com/2009/07/blog-post_23.html साबरमती आश्रम की कुछ छबियाँ]
 
[[श्रेणी:महात्मा गांधी]]