"असुर (आदिवासी)": अवतरणों में अंतर
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== इतिहास ==
असुर हजारों सालों से [[झारखण्ड]] में रहते आए हैं। मुण्डा [[जनजाति]] समुदाय के लोकगाथा ‘सोसोबोंगा’ में असुरों का उल्लेख मिलता है जब मुण्डा 600 ई.पू. झारखण्ड आए थे। असुर [[जनजाति]] प्रोटो-आस्ट्रेलाइड समूह के अंतर्गत आती है।<ref>{{cite web|url=http://akhra.org.in/adivasi_history.php|title=झारखण्ड का आदिवासी इतिहास|author=डॉ॰ रोज केरकेट्टा|publisher=अखड़ा वेबसाईट|accessdate=
[[ऋग्वेद]] तथा ब्राह्मण, [[आरण्यक|अरण्यक]], [[उपनिषद्]], [[महाभारत]] आदि ग्रन्थों में असुर शब्द का अनेकानेक स्थानों पर उल्लेख हुआ है। बनर्जी एवं शास्त्री (1926) ने असुरों की वीरता का वर्णन करते हुए लिखा है कि वे पूर्ववैदिक काल से वैदिक काल तक अत्यन्त शक्तिशाली समुदाय के रूप में प्रतिष्ठित थे। मजुमदार (1926) का मानना है कि असुर साम्राज्य का अन्त [[आर्य]]ों के साथ संघर्ष में हो गया।
प्रागैतिहासिक संदर्भ में असुरों की चर्चा करते हुए बनर्जी एवं शास्त्री ने इन्हें असिरिया नगर के वैसे निवासियों के रूप में वर्णन किया है, जिन्होंने मिस्र और बेबीलोन की संस्कृति अपना ली थी और बाद में उसे [[भारत]] और [[ईरान|इरान]] तक ले आये। भारत में सिन्धु सभ्यता के प्रतिष्ठापक के रूप में असुर ही जाने जाते हैं। राय (1915, 1920) ने भी [[मोहन जोदड़ो|मोहनजोदड़ो]] एवं [[हड़प्पा]] से असुरों को संबंधित बताया है। साथ ही साथ उन्हें ताम्र, कांस्य एवं [[लौह युग]] तक का यात्री माना है।
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== '''जनसंख्या''' ==
भारत में असुरों की जनसंख्या 1991 की जनगणना<ref>{{cite book|url=http://books.google.co.in/books?id=oG9_QkvmUKMC&pg=PA43&dq=asur+people&source=gbs_toc_r&cad=4#v=onepage&q=asur%20people&f=false|title=Primitive Tribes in Contemporary India|author=Sarit Kumar Chaudhuri, Sucheta Sen Chaudhuri|accessdate= 2013-08-30}}</ref> के अनुसार केवल 10,712 ही रह गयी है वहीं झारखण्ड में असुरों की जनसंख्या 7,783 है।<ref>{{cite web|url=http://www.censusindia.gov.in/Tables_Published/SCST/dh_st_jharkhand.pdf|title=भारतीय जनगणना वेबसाईट, झारखण्ड अनुसूचित जनजाति आकड़ा|accessdate=
== '''व्यवसाय''' ==
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== '''धर्म और पर्व-त्यौहार''' ==
असुर प्रकृति-पूजक होते हैं। ‘सिंगबोंगा’ उनके प्रमुख देवता है। ‘सड़सी कुटासी’ इनका प्रमुख [[उत्सव|पर्व]] है, जिसमें यह अपने औजारों और लोहे गलाने वाली भट्टियों की पूजा करते हैं। असुर महिषासुर को अपना पूर्वज मानते है। हिन्दू धर्म में महिषासुर को एक [[राक्षस]] (असुर) के रूप में दिखाया गया है जिसकी हत्या [[दुर्गा]] ने की थी। [[पश्चिम बंगाल]] और [[झारखण्ड]] में [[दुर्गा पूजा]] के दौरान असुर समुदाय के लोग शोक मनाते है।<ref>{{cite news|url=http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2009/09/090927_festival_mourners_adas.shtml|title=दुर्गा नहीं महिषासुर की जय|publisher=बीबीसी हिंदी|date=27 सितंबर 2009|accessdate=
[[जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय|जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय]], दिल्ली में पिछले कुछ सालों से एक पिछड़े वर्ग के छात्र संगठन ने ‘महिषासुर शहीद दिवस’ मनाने की शुरुआत की है।<ref>{{cite news|url=http://www.indianexpress.com/news/move-to-observe--mahishasur-day--on-jnu-campus/1021261/|title=Move to observe ‘Mahishasur Day’ on JNU campus|publisher=द इंडियन एक्सप्रेस|date=Oct 24, 2012|accessdate= 2013-08-30}}</ref>
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लोहा गलाने और बनाने की परंपरागत आजीविका के खात्मे तथा खदानों के कारण तेजी से घटते कृषि आधारित अर्थव्यवस्था ने असुरों को गरीबी के कगार पर ला खड़ा किया है। नतीजतन पलायन, विस्थापन एक बड़ी समस्या बन गई है। गरीबी के कारण नाबालिग असुर लड़कियों की [[तस्करी]] अत्यंत चिंताजनक है। ईंट भट्ठों और असंगठित क्षेत्र में मिलनेवाली दिहाड़ी मजदूरी भी उनके आर्थिक-शारीरिक और सांस्कृतिक शोषण का बड़ा कारण है।
नेतरहाट में बॉक्साइट खनन की वजह से असुरों की जीविका छीन गयी है और खनन से उत्पन्न प्रदूषण से इनकी कृषि भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। पहले से ही कम जनसंख्या वाले असुर समुदाय की जनसंख्या में पिछले कुछ सालों में कमी आई है।
इन दिनों असुर समुदाय से आने वाली एक युवा सुषमा असुर, जो [[नेतरहाट]] में रहती हैं, अपने समुदाय की कला-संस्कृति और अस्तित्व को बचाने के लिए प्रयासरत है।<ref>{{cite news|url=http://test.prabhatkhabar.com/node/274891|title=असुरों का ज्ञान सहेजने में जुटीं सुषमा|publisher=प्रभात खबर|date=16 मार्च 2013|accessdate=
== सन्दर्भ ==
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== बाहरी कड़ियाँ ==
*[http://archive.org/download/agaria032832mbp/agaria032832mbp.pdf वैरियर एल्विन की ‘अगरिया’]
*[
[[श्रेणी:आदिवासी (भारतीय)]]
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