"आर्यभट": अवतरणों में अंतर

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}}
'''आर्यभट''' (४७६-५५०) प्राचीन [[भारत]] के एक महान [[ज्योतिषविद्]] और [[गणितज्ञ]] थे। इन्होंने [[आर्यभटीय]] ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है।<ref>{{cite web|url=http://www.jagran.com/news/national-jagran-special-on-khagaul-of-bihar-16424239.html|title=अंतरिक्ष विज्ञान में भारत के योगदान को समर्पित है बिहार की यह जगह|access-date=25 जुलाई 2017|archive-url=https://web.archive.org/web/20170728011143/http://www.jagran.com/news/national-jagran-special-on-khagaul-of-bihar-16424239.html|archive-date=28 जुलाई 2017|url-status=live}}</ref> इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। [[बिहार]] में वर्तमान [[पटना]] का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है।
 
एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म [[महाराष्ट्र]] के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक [[पटना]] के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की।
 
== आर्यभट का जन्म-स्थान ==
यद्यपि आर्यभट के जन्म के वर्ष का [[आर्यभटीय]] में स्पष्ट उल्लेख है, उनके जन्म के वास्तविक स्थान के बारे में विवाद है। कुछ मानते हैं कि वे [[नर्मदा]] और [[गोदावरी]] के मध्य स्थित क्षेत्र में पैदा हुए थे, जिसे ''[[अश्मक]]'' के रूप में जाना जाता था और वे अश्माका की पहचान मध्य भारत से करते हैं जिसमे [[महाराष्ट्र]] और [[मध्यप्रदेश|मध्य प्रदेश]] शामिल है, हालाँकि आरंभिक बौद्ध ग्रन्थ अश्माका को दक्षिण में, ''दक्षिणापथ '' या [[दक्कन का पठार|दक्खन]] के रूप में वर्णित करते हैं, जबकि अन्य ग्रन्थ वर्णित करते हैं कि अश्माका के लोग [[अलेक्जेंडर]] से लड़े होंगे, इस हिसाब से अश्माका को उत्तर की तरफ और आगे होना चाहिए। <ref name="Ansari">{{cite journal
{{cite journal
|last=Ansari
|first=S. M. R.
|year=1977
|month= March
|title=Aryabhata I, His Life and His Contributions
|journal=Bulletin of the Astronomical Society of India
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|issue=1
|pages=10–18
|url=http://hdl.handle.net/2248/502
|accessdate= 21 जुलाई 2007}}</ref>
|archive-url=https://web.archive.org/web/20071116013419/http://prints.iiap.res.in/handle/2248/502
|archive-date=16 नवंबर 2007
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}}</ref>
 
एक ताजा अध्ययन के अनुसार आर्यभट, [[केरल]] के [[चाम्रवत्तम]] (१०उत्तर५१, ७५पूर्व४५) के निवासी थे। अध्ययन के अनुसार अस्मका एक [[जैन धर्म|जैन]] प्रदेश था जो कि [[श्रवणबेलगोला|श्रवणबेलगोल]] के चारों तरफ फैला हुआ था और यहाँ के पत्थर के खम्बों के कारण इसका नाम अस्मका पड़ा। चाम्रवत्तम इस जैन बस्ती का हिस्सा था, इसका प्रमाण है भारतापुझा नदी जिसका नाम जैनों के पौराणिक राजा भारता के नाम पर रखा गया है। आर्यभट ने भी युगों को परिभाषित करते वक्त राजा भारता का जिक्र किया है- दसगीतिका के पांचवें छंद में राजा भारत के समय तक बीत चुके काल का वर्णन आता है। उन दिनों में कुसुमपुरा में एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था जहाँ जैनों का निर्णायक प्रभाव था और आर्यभट का काम इस प्रकार कुसुमपुरा पहुँच सका और उसे पसंद भी किया गया।<ref>[5] ^ आर्यभट की कथित गलती- उनके पर्येवेक्षण के स्थान पर प्रकाश, वर्त्तमान विज्ञान, ग्रन्थ .९३, १२, २५ दिसम्बर २००७, पीपी १८७० -७३.</ref>
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== कृतियाँ ==
आर्यभट द्वारा रचित तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। '''दशगीतिका''', '''[[आर्यभटीय]]''' और '''तंत्र'''। लेकिन जानकारों के अनुसार उन्होने और एक ग्रंथ लिखा था- ''''आर्यभट सिद्धांत''''। इस समय उसके केवल ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। उनके इस ग्रंथ का सातवे शतक में व्यापक उपयोग होता था। लेकिन इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती।<ref>{{cite web |url=http://www.hindinovels.net/2008/03/ch-59b-hindi.html|title= आर्यभट|access-date=[[१२ फरवरी]] [[२००९]]|format= एचटीएमएल|publisher=हिन्दी नॉवेल्स|language=|archive-url=https://web.archive.org/web/20090429085656/http://www.hindinovels.net/2008/03/ch-59b-hindi.html|archive-date=29 अप्रैल 2009|url-status=live}}</ref>
 
उन्होंने '''[[आर्यभटीय]]''' नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें [[वर्गमूल]], [[घनमूल]], [[समान्तर श्रेणी]] तथा विभिन्न प्रकार के [[समीकरण|समीकरणों]] का वर्णन है। उन्होंने अपने आर्यभटीय नामक ग्रन्थ में कुल ३ पृष्ठों के समा सकने वाले ३३ श्लोकों में गणितविषयक सिद्धान्त तथा ५ पृष्ठों में ७५ श्लोकों में खगोल-विज्ञान विषयक सिद्धान्त तथा इसके लिये यन्त्रों का भी निरूपण किया।<ref>{{cite web |url= http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4545|title= गणित-शास्त्र के विकास की भारतीय परम्परा|access-date= [[१२ फरवरी]] [[२००९]]|format= पीएचपी|publisher= भारतीय साहित्य संग्रह|language= |archive-url= https://web.archive.org/web/20071222062933/http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4545|archive-date= 22 दिसंबर 2007|url-status= dead}}</ref> आर्यभट ने अपने इस छोटे से ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती तथा पश्चाद्वर्ती देश के तथा विदेश के सिद्धान्तों के लिये भी क्रान्तिकारी अवधारणाएँ उपस्थित कींं।
 
उनकी प्रमुख कृति, ''आर्यभटीय'', गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है, जिसे भारतीय गणितीय साहित्य में बड़े पैमाने पर उद्धृत किया गया है और जो आधुनिक समय में भी अस्तित्व में है। आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं। इसमे [[सतत भिन्न]] (कँटीन्यूड फ़्रेक्शन्स), [[द्विघात समीकरण]] (क्वाड्रेटिक इक्वेशंस), घात श्रृंखला के योग (सम्स ऑफ पावर सीरीज़) और [[आर्यभट की ज्या सारणी|ज्याओं की एक तालिका]] (Table of Sines) शामिल हैं।
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इसके अनुसार व्यास और परिधि का अनुपात ((४ + १००) × ८ + ६२०००) / २०००० = ३.१४१६ है, जो पाँच महत्वपूर्ण आंकडों तक बिलकुल सटीक है।<ref name="aryabhattapi">[http://www.livemint.com/Sundayapp/8wRiLexg1N2IOXjeK2BKcL/How-Aryabhata-got-the-earths-circumference-right-millenia-a.html How Aryabhata got the earth's circumference right] {{webarchive|url=https://web.archive.org/web/20170115063654/http://www.livemint.com/Sundayapp/8wRiLexg1N2IOXjeK2BKcL/How-Aryabhata-got-the-earths-circumference-right-millenia-a.html |date=15 January 2017 }}</ref>
 
आर्यभट ने ''आसन्न '' (निकट पहुंचना), पिछले शब्द के ठीक पहले आने वाला, शब्द की व्याख्या की व्याख्या करते हुए कहा है कि यह न केवल एक सन्निकटन है, वरन यह कि मूल्य अतुलनीय (या [[अन-अनुपातिक|इर्रेशनल]]) है। यदि यह सही है, तो यह एक अत्यन्त परिष्कृत दृष्टिकोण है, क्योंकि यूरोप में पाइ की तर्कहीनता का सिद्धांत [[जोहान हीनरिच लाम्बर्ट|लैम्बर्ट]] द्वारा केवल १७६१ में ही सिद्ध हो पाया था।<ref>{{cite book
{{cite book
| title = S. Balachandra Rao
| author = Indian Mathematics and Astronomy: Some Landmarks,
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| url-access = registration
| url = https://archive.org/details/
| access-date = 23 अक्तूबर 2019
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}}</ref>
 
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: ''वह संख्या ज्ञात करो जिसे ८ से विभाजित करने पर शेषफल के रूप में ५ बचता है, ९ से विभाजित करने पर शेषफल के रूप में ४ बचता है, ७ से विभाजित करने पर शेषफल के रूप में १ बचता है।''
अर्थात, बताएं N = 8x+ 5 = 9y +4 = 7z +1. इससे N के लिए सबसे छोटा मान ८५ निकलता है। सामान्य तौर पर, डायोफैंटाइन समीकरण कठिनता के लिए बदनाम थे। इस तरह के समीकरणों की व्यापक रूप से चर्चा प्राचीन वैदिक ग्रन्थ [[सुल्बा सूत्र|सुल्ब सूत्र]] में है, जिसके अधिक प्राचीन भाग ८०० ई.पू. तक पुराने हो सकते हैं। ऐसी समस्याओं के हल के लिए आर्यभट की विधि को कुट्टक विधि कहा गया है। ''{{IAST|kuṭṭaka}}'' कुुट्टक का अर्थ है पीसना, अर्थात छोटे छोटे टुकडों में तोड़ना और इस विधि में छोटी संख्याओं के रूप में मूल खंडों को लिखने के लिए एक पुनरावर्ती कलनविधि का समावेश था। आज यह कलनविधि, ६२१ ईसवी पश्चात में भास्कर की व्याख्या के अनुसार, पहले क्रम के डायोफैंटाइन समीकरणों को हल करने के लिए मानक पद्धति है,
और इसे अक्सर [[आर्यभट एल्गोरिथ्म|आर्यभट एल्गोरिद्म]] के रूप में जाना जाता है।<ref>अमर्त्य के दत्ता, [http://www.ias.ac.in/resonance/Oct2002/pdf/Oct2002p6-22.pdf अनिश्चित बहुपदीय समीकरण: कूटटक] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20120925022623/http://www.ias.ac.in/resonance/Oct2002/pdf/Oct2002p6-22.pdf |date=25 सितंबर 2012 }}, प्रतिध्वनि, अक्टूबर २००२.पूर्व के सिंहावलोकन भी देखें: [http://www.ias.ac.in/resonance/April2002/pdf/April2002p4-19.pdf "प्राचीन भारत में गणित,"] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20120906234229/http://www.ias.ac.in/resonance/April2002/pdf/April2002p4-19.pdf |date=6 सितंबर 2012 }}</ref> डायोफैंटाइन समीकरणों का इस्तेमाल [[क्रिप्टोलौजि|क्रिप्टोलौजी]] में होता है और [[आरएसए सम्मेलन|आरएसए सम्मलेन]], २००६ ने अपना ध्यान ''कुट्टक '' विधि और [[सुल्वसूत्र]] के पूर्व के कार्यों पर केन्द्रित किया।
और इसे अक्सर [[आर्यभट एल्गोरिथ्म|आर्यभट एल्गोरिद्म]] के रूप में जाना जाता है।<ref>
अमर्त्य के दत्ता, [http://www.ias.ac.in/resonance/Oct2002/pdf/Oct2002p6-22.pdf अनिश्चित बहुपदीय समीकरण: कूटटक], प्रतिध्वनि, अक्टूबर २००२.पूर्व के सिंहावलोकन भी देखें: [http://www.ias.ac.in/resonance/April2002/pdf/April2002p4-19.pdf "प्राचीन भारत में गणित,"]</ref> डायोफैंटाइन समीकरणों का इस्तेमाल [[क्रिप्टोलौजि|क्रिप्टोलौजी]] में होता है और [[आरएसए सम्मेलन|आरएसए सम्मलेन]], २००६ ने अपना ध्यान ''कुट्टक '' विधि और [[सुल्वसूत्र]] के पूर्व के कार्यों पर केन्द्रित किया।
 
==== बीजगणित ====
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उन्होंने कहा कि [[चंद्रमा]] और ग्रह सूर्य के परावर्तित प्रकाश से चमकते हैं। मौजूदा ब्रह्माण्डविज्ञान से अलग, जिसमे ग्रहणों का कारक छद्म ग्रह निस्पंद बिन्दु [[राहू]] और [[केतु]] थे, उन्होंने ग्रहणों को पृथ्वी द्वारा डाली जाने वाली और इस पर गिरने वाली छाया से सम्बद्ध बताया। इस प्रकार चंद्रगहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश करता है (छंद गोला. ३७) और पृथ्वी की इस छाया के आकार और विस्तार की विस्तार से चर्चा की (छंद गोला. ३८-४८) और फिर ग्रहण के दौरान ग्रहण वाले भाग का आकार और इसकी गणना। बाद के भारतीय खगोलविदों ने इन गणनाओं में सुधार किया, लेकिन आर्यभट की विधियों ने प्रमुख सार प्रदान किया था। यह गणनात्मक मिसाल इतनी सटीक थी कि 18 वीं सदी के वैज्ञानिक [[गुइलौमे ले जेंटिल|गुइलौम ले जेंटिल]] ने, पांडिचेरी की अपनी यात्रा के दौरान, पाया कि भारतीयों की गणना के अनुसार [[१७६५-०८-३०]] के [[चंद्रगहण|चंद्रग्रहण]] की अवधि ४१ सेकंड कम थी, जबकि उसके चार्ट (द्वारा, टोबिअस मेयर, १७५२) ६८ सेकंड अधिक दर्शाते थे।<ref name="Ansari" />
 
आर्यभट कि गणना के अनुसार पृथ्वी की [[परिधि]] ३९,९६८.०५८२ किलोमीटर है, जो इसके वास्तविक मान ४०,०७५.०१६७ किलोमीटर से केवल ०.२% कम है। यह सन्निकटन [[ग्रीक गणित|यूनानी गणितज्ञ]], [[एरातोस्थेनेस|एराटोसथेंनस]] की संगणना के ऊपर एक उल्लेखनीय सुधार था,२०० ई.) जिनकी गणना का आधुनिक इकाइयों में तो पता नहीं है, परन्तु उनके अनुमान में लगभग ५-१०% की एक त्रुटि अवश्य थी।<ref>"[http://www-istp.gsfc.nasa.gov/stargaze/Scolumb.htm दी राउंड अर्थ] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20120618151103/http://www-istp.gsfc.nasa.gov/stargaze/Scolumb.htm |date=18 जून 2012 }}", ''एनएएसए'', १२ दिसम्बर २००४, २४ जनवरी २००८ को वापस.</ref>
 
==== नक्षत्रों के आवर्तकाल ====
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==== सूर्य केंद्रीयता ====
आर्यभट का दावा था कि पृथ्वी अपनी ही धुरी पर घूमती है और उनके ग्रह सम्बन्धी ग्रहचक्र मॉडलों के कुछ तत्व उसी गति से घूमते हैं जिस गति से सूर्य के चारों ओर ग्रह घूमते हैं। इस प्रकार ऐसा सुझाव दिया जाता है कि आर्यभट की संगणनाएँ अन्तर्निहित [[सूर्य केन्द्रीयता|सूर्य केन्द्रित]] मॉडल पर आधारित थीं, जिसमे ग्रह सूर्य का चक्कर लगाते हैं।<ref>भारतीय सूर्य केन्द्रीकरण की अवधारण की वकालत बी.एल. वान् डर वार्डन द्वारा की गयी है, ''Das heliozentrische System in der griechischen, persischen und indischen Astronomie'' . जुरीच में नेचरफॉरचेनडेन गेसेल्काफ्ट.जुरीच : कमीशनस्वेर्लग लीमन एजी, १९७०.</ref><ref>बी.एल. वान् डर वार्डन, "सूर्य केन्द्रित प्रणाली ग्रीक, फारसी और हिंदू खगोल विज्ञान में", डेविड ए किंग और जॉर्ज सलीबा, ईडी., ''फ्राम डीफ़रेन्ट तो इक्वन्ट: ई.एस. कैनेडी के सम्मान में प्राचीन और मध्यकालीन निकट पूर्व में विज्ञान के इतिहास के पाठों का एक ग्रन्थ'', न्यूयॉर्क एकेडमी ऑफ साइंस के वर्श्क्रमिक इतिहास, ५००(१९८७), पीपी.५२९-५३४.</ref> एक समीक्षा में इस सूर्य केन्द्रित व्याख्या का विस्तृत खंडन है। यह समीक्षा [[बर्टेल लीनडार्ट वन डेर वैरडेन|बी.एल. वान डर वार्डेन]] की एक किताब का वर्णन इस प्रकार करती है "यह किताब भारतीय गृह सिद्धांत के विषय में अज्ञात है और यह आर्यभट के प्रत्येक शब्द का सीधे तौर पर विरोध करता है,".<ref>[40] ^ नोएल स्वेर्द्लोव, "समीक्षा: भारतीय खगोल विज्ञान का लुप्त स्मृतिचिन्ह" ''इसिस,'' ६४ (१९७३): २३९-२४३.</ref> हालाँकि कुछ लोग यह स्वीकार करते हैं कि आर्यभट की प्रणाली पूर्व के एक सूर्य केन्द्रित मॉडल से उपजी थी जिसका ज्ञान उनको नहीं था।<ref>डेनिस डयुक्, " भारत में सम पद : प्राचीन भारतीय ग्रह सम्बन्धी मॉडलों का गणितीय आधार."''सटीक विज्ञान के इतिहास का पुरालेख'' ५९ (२००५): ५६३-५७६, एन. 4 [http://people.scs.fsu.edu/~dduke/india8.pdf http://people.scs.fsu.edu/~dduke/india8.pdf.] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20090318024632/http://people.scs.fsu.edu/~dduke/india8.pdf |date=18 मार्च 2009 }}</ref> यह भी दावा किया गया है कि वे ग्रहों के मार्ग को [[दीर्घवृत्त|अंडाकार]] मानते थे, हालाँकि इसके लिए कोई भी प्राथमिक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है।<ref>[43] ^ जे जे ओ'कॉनर और ई ऍफ़ रोबर्टसन, [http://www-groups.dcs.st-and.ac.uk/~history/Biographies/Aryabhata_I.html आर्यभट द एल्डर] {{Webarchive|url=https://www.webcitation.org/6Dxq5ms1u?url=http://www-groups.dcs.st-and.ac.uk/~history/Biographies/Aryabhata_I.html |date=26 जनवरी 2013 }}, [[गणित पुरालेख का मेक ट्यूटर इतिहास|मैक ट्यूटर हिस्ट्री ऑफ मैथमैटिक्स आर्काइव]]:''''
<br />{{quote|"He believes that the Moon and planets shine by reflected sunlight, incredibly he believes that the orbits of the planets are ellipses."}}</ref> हालाँकि [[समोस का एरिस्तारचस|सामोस के एरिस्तार्चुस]] (तीसरी शताब्दी ई.पू.) और कभी कभार [[पोंटस का हेराक्लोइड|पोन्टस के हेराक्लिड्स]](चौथी शताब्दी ई.पू.) को सूर्य केन्द्रित सिद्धांत की जानकारी होने का श्रेय दिया जाता है, प्राचीन भारत में ज्ञात [[ग्रीक खगोल विज्ञान|ग्रीक खगोलशास्त्र]](''[[पालिसा सिद्धांत|पौलिसा सिद्धांत]]'' - संभवतः [[अलेक्जेंड्रिया|अलेक्ज़न्द्रिया]] के किसी [[पालास अलेक्सएंडरीनस|पॉल]] द्वारा) सूर्य केन्द्रित सिद्धांत के विषय में कोई चर्चा नहीं करता है।
 
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|year = 2001
|accessdate = 14 जुलाई 2007
|archive-url = https://www.webcitation.org/6APXGBvv6?url=http://www.etymonline.com/
|archive-date = 3 सितंबर 2012
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}}</ref>
 
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और अनेक [[अरबी]] खगोलीय तालिकाओं ([[जिज]]) की गणना के लिए इस्तेमाल की जाती थी। विशेष रूप से, [[अल- अन्दालुज|अरबी स्पेन]] वैज्ञानिक [[अल-झर्काली]] (११वीं सदी) के कार्यों में पाई जाने वाली खगोलीय तालिकाओं का लैटिन में [[तोलेडो की तालिकाएँ|तोलेडो की तालिकाओं]] (१२वीं सदी) के रूप में अनुवाद किया गया और ये यूरोप में सदियों तक सर्वाधिक सूक्ष्म [[पंचांग]] के रूप में इस्तेमाल में रही।
 
आर्यभट और उनके अनुयायियों द्वारा की गयी तिथि गणना [[पंचांग]] अथवा [[हिंदू पंचांग|हिंदू तिथिपत्र]] निर्धारण के व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए भारत में निरंतर इस्तेमाल में रही हैं, इन्हे इस्लामी दुनिया को भी प्रेषित किया गया, जहाँ इनसे [[जलाली तिथिपत्र]] का आधार तैयार किया गया जिसे १०७३ में [[उमर खय्याम]] सहित कुछ खगोलविदों ने प्रस्तुत किया,<ref>{{cite encyclopedia
{{cite encyclopedia
|title = Omar Khayyam
|encyclopedia = The Columbia Encyclopedia, Sixth Edition.
|date = 2001-05
|url = http://www.bartleby.com/65/om/OmarKhay.html
|accessdate = 10 जून 2007
|archiveurl = https://web.archive.org/web/20071017002631/http://www.bartleby.com/65/om/OmarKhay.html
|archivedate = 17 अक्तूबर 2007
|url-status = live
}}</ref> जिसके संस्करण (१९२५ में संशोधित) आज [[ईरान]] और [[अफगानिस्तान]] में राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में प्रयोग में हैं। जलाली तिथिपत्र अपनी तिथियों का आंकलन वास्तविक सौर पारगमन के आधार पर करता है, जैसा आर्यभट (और प्रारंभिक [[सिद्धांत]] कैलेंडर में था).इस प्रकार के तिथि पत्र में तिथियों की गणना के लिए एक [[पंचांग]] की आवश्यकता होती है।
यद्यपि तिथियों की गणना करना कठिन था, पर [[जलाली तिथिपत्र]] में [[ग्रेगोरियन कैलेंडर|ग्रेगोरी तिथिपत्र]] से कम मौसमी त्रुटियां थी।
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भारत के प्रथम उपग्रह [[आर्यभट (उपग्रह)|आर्यभट]], को उनका नाम दिया गया।[[चंद्र खड्ड]] [[आर्यभट खड्ड|आर्यभट]] का नाम उनके सम्मान स्वरुप रखा गया है। खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी और वायुमंडलीय विज्ञान में अनुसंधान के लिए भारत में नैनीताल के निकट एक संस्थान का नाम आर्यभट प्रेक्षण विज्ञान अनुसंधान संस्थान (एआरआईएस) रखा गया है।
 
अंतर्विद्यालयीय [[आर्यभट गणित प्रतियोगिता]] उनके नाम पर है।<ref>{{cite news |title= Maths can be fun |url=http://www.hindu.com/yw/2006/02/03/stories/2006020304520600.htm |publisher=[[द हिन्दू]] |date = 3 फरवरी 2006 |accessdate=6 जुलाई 2007 |archive-url=https://web.archive.org/web/20071001091954/http://www.hindu.com/yw/2006/02/03/stories/2006020304520600.htm |archive-date=1 अक्तूबर 2007 |url-status=live }}</ref> ''बैसिलस आर्यभट'', [[इसरो]] के वैज्ञानिकों द्वारा २००९ में खोजी गयी एक बैक्टीरिया की प्रजाति का नाम उनके नाम पर रखा गया है।<ref>[http://www.isro.org/pressrelease/Mar16_2009.htm स्ट्रैटोस्फियर में नए सूक्ष्मजीवों की खोज] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20090320033804/http://www.isro.org/pressrelease/Mar16_2009.htm |date=20 मार्च 2009 }}. १६ मार्च २००९.इसरो.</ref>
 
== टिप्प्णियाँ ==
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [https://web.archive.org/web/20160821165429/https://books.google.co.in/books?id=blpvBQAAQBAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false महान खगोलविद-गणितज्ञ '''आर्यभट'''] (गूगल पुस्तक ; लेखक-दीनानाथ साहनी)
* [https://web.archive.org/web/20090429085656/http://www.hindinovels.net/2008/03/ch-59b-hindi.html शून्य (हिन्दी उपन्यास)]
* [https://web.archive.org/web/20120515135059/http://www.bhartiyapaksha.com/?p=6476 प्राचीन भारत के शास्त्र]
* [https://web.archive.org/web/20130102024031/http://www.charchaa.org/2009/history/aryabhat-1-intro.html आर्यभट प्रथम-एक परिचय]
 
{{भारतीय विज्ञान}}