"कल्पेश्वर": अवतरणों में अंतर

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कल्पेश्वर मन्दिर काफ़ी ऊँचाई पर स्थित है। भगवान शिव को समर्पित यह स्थान पवित्र धाम माना जाता है। कल्पेश्वर [[उत्तराखण्ड]] के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों मे से एक है। यह उत्तराखण्ड के असीम प्राकृतिक सौंदर्य को अपने मे समाए [[हिमालय]] की पर्वत शृंखलाओं के मध्य में स्थित है। कल्पेश्वर सनातन [[हिन्दू]] संस्कृति के शाश्वत संदेश के प्रतीक रूप मे स्थित है। एक कथा के अनुसार, एक लोकप्रिय ऋषि अरघ्या मन्दिर में [[कल्प वृक्ष]] के नीचे [[ध्यान]] करते थे। यह भी माना जाता है की उन्होंने [[उर्वशी|अप्सरा उर्वशी]] को इस स्थान पर बनाया था। कल्पेश्वर मन्दिर के [[पुरोहित]] [[दक्षिण भारत]] के नंबूदिरी ब्राह्मण हैं। इनके बारे में कहा जाता है की ये [[शंकराचार्य|आदिगुरु शंकराचार्य]] के शिष्य हैं।
====कुंड तथा पवित्र जल====
मुख्य मन्दिर 'अनादिनाथ कल्पेश्वर महादेव' के नाम से प्रसिद्ध है। इस मन्दिर के समीप एक 'कलेवरकुंड' है। इस कुंड का पानी सदैव स्वच्छ रहता है और यात्री लोग यहाँ से [[जल]] ग्रहण करते हैं। इस पवित्र जल को पी कर अनेक व्याधियों से मुक्ति पाते हैं। यहाँ [[साधु]] लोग भगवान [[शिव]] को अर्घ्य देने के लिए इस पवित्र जल का उपयोग करते हैं तथा पूर्व प्रण के अनुसार तपस्या भी करते हैं। तीर्थ यात्री पहाड़ पर स्थित इस मन्दिर में [[पूजा]]-अर्चना करते हैं। कल्पेश्वर का रास्ता एक गुफ़ा से होकर जाता है। मन्दिर तक पहुँचने के लिए गुफ़ा के अंदर लगभग एक किलोमीटर तक का रास्ता तय करना पड़ता है, जहाँ पहुँचकर तीर्थयात्री भगवान शिव की जटाओं की पूजा करते हैं।<ref name="aa">{{cite web |url=https://sites.google.com/site/pandavbuiltreligeousplace/kalpeswarmandir|title=कल्पेश्वर मन्दिर|accessmonthday=07 अगस्त|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी|access-date=19 नवंबर 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20160922045515/https://www.sites.google.com/site/pandavbuiltreligeousplace/kalpeswarmandir|archive-date=22 सितंबर 2016|url-status=live}}</ref>
==कथा==
कल्पेश्वर में भगवान [[शंकर]] का भव्य मन्दिर बना है। कल्पेश्वर के बारे में पौराणिक ग्रंथों में विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया है। इस पावन भूमि के संदर्भ में कुछ रोचक कथाएँ भी प्रचलित हैं, जो इसके महत्व को विस्तार पूर्वक दर्शाती हैं। माना जाता है कि यह वह स्थान है, जहाँ [[महाभारत]] के युद्ध के पश्चात् विजयी [[पांडव|पांडवों]] ने युद्ध में मारे गए अपने संबंधियों की हत्या करने की आत्मग्लानि से पीड़ित होकर इस क्षोभ एवं पाप से मुक्ति पाने हेतु [[वेदव्यास]] से प्रायश्चित करने के विधान को जानना चाहा। व्यास जी ने कहा की कुलघाती का कभी कल्याण नहीं होता है, परंतु इस पाप से मुक्ति चाहते हो तो केदार जाकर भगवान शिव की पूजा एवं दर्शन करो। व्यास जी से निर्देश और उपदेश ग्रहण कर पांडव भगवान शिव के दर्शन हेतु यात्रा पर निकल पड़े। पांडव सर्वप्रथम [[काशी]] पहुँचे। शिव के आशीर्वाद की कामना की, परंतु भगवान शिव इस कार्य हेतु इच्छुक न थे।