"क़सीदा": अवतरणों में अंतर
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'''क़सीदा''' (<small>[[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]]: {{Nastaliq|ur|قصيده}}</small>) [[उर्दू शायरी|शायरी]] का वह रूप है जिसमें किसी की प्रशंसा की जाए। कुछ [[कवि|शायर]] अपने बेहतरीन क़सीदों के लिए विख्यात हुए हैं, जैसे कि [[मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी सौदा|मिर्ज़ा सौदा]]।<ref>
== शब्द की जड़ें और उच्चारण ==
'क़सीदा' में [[क़|'क़' अक्षर के उच्चारण]] पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना बिन्दु वाले 'क' से ज़रा भिन्न है। इसका उच्चारण 'क़ीमत' और 'क़रीब' के 'क़' से मिलता है। यह एक [[अरबी भाषा|अरबी-मूल]] का शब्द है और 'क़सादा' शब्द से लिया गया है जिसका मतलब 'ध्येय या नियत रखना' है।<ref name="ref04bupic">[http://books.google.com/books?id=3pbwgOLcwTYC Qasida Poetry in Islamic Asia and Africa: Classical traditions and modern meanings] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20151125090844/https://books.google.com/books?id=3pbwgOLcwTYC |date=25 नवंबर 2015 }}, Stefan Sperl, C. Shackle, BRILL, 1996, ISBN 978-90-04-10295-8, ''... The term is derived from the verb qasada, 'to aim at, to intend' ...''</ref>
== रूप और प्रकार ==
क़सीदों में हर शेर का दूसरा मिस्रा एक ही [[रदीफ़]] और [[क़ाफ़िया|क़ाफ़िये]] (तुकान्त) में होता है। क़सीदे दो प्रकार के होते हैं। एक वह, जिसमें कवि प्रारम्भ से ही प्रशंसा करने लगता है और दूसरा वह जिसमें प्रारम्भ में एक तरह की भूमिका दी जाती है और कवि और बातों के अलावा [[वसंत]], बहार, [[दर्शनशास्त्र|दर्शन]], [[ज्योतिष]] आदि के विषय में कुछ कहता है। इन प्रारम्भिक वर्णनों को "तश्बीब" कहते हैं। तश्बीब के बाद कवि प्रशंसा करने की ओर अपने शेरों को मोडता है। इस मोड को गुरेज़ कहते है। इसका वर्णन बहुत मुश्किल समझा जाता है और इसी के द्वारा शायर के कमाल का अनुमान होता है। अच्छी गुरेज़ वह है जिसमें कवि 'तश्बीब' से 'तारीफ' (प्रशंसा) पर इस तरह आ जाए कि पढने वालों को यह पता ही न चले कि प्रशंसा का विषय ठूँस-ठाँसकर लाया गया है। क़सीदे के तीसरे अंग 'मदह' (प्रशंसा) के बाद चौथा अंग 'दुआ' होता है, जिसमें कवि 'ममदूह' (प्रशंसित व्यक्ति) के लिए शुभकामनाएँ करता हुआ उससे कुछ याचना करता है। इसी के बाद क़सीदा समाप्त हो जाता है।<ref name="ref86fezuz">[http://books.google.com/books?id=-otQriwQ9z4C Encyclopaedic dictionary of Urdu literature] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20140708215023/http://books.google.com/books?id=-otQriwQ9z4C |date=8 जुलाई 2014 }}, Global Vision Publishing House, 2007, ISBN 978-81-8220-191-0, ''... Madh (eulogy) is the main component of a qasida. The poet extols his mamduh, putting together in his person all possible qualities ...''</ref>
== मिसाल ==
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