"काकोरी काण्ड": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Accused of Cacori Conspiracy1271.gif|thumb|right|200px||<big>काकोरी-काण्ड के क्रान्तिकारी</big><br /> <small>सबसे ऊपर या प्रमुख बिस्मिल थे [[राम प्रसाद 'बिस्मिल']] एवं [[अशफाक उल्ला खाँ]] नीचे ग्रुप फोटो में क्रमश: 1.योगेशचन्द्र चटर्जी, 2.प्रेमकृष्ण खन्ना, 3.मुकुन्दी लाल, 4.विष्णुशरण दुब्लिश, 5.सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य, 6.रामकृष्ण खत्री, 7.मन्मथनाथ गुप्त, 8.राजकुमार सिन्हा, 9.ठाकुर रोशानसिंह, 10.पं० रामप्रसाद 'बिस्मिल', 11.राजेन्द्रनाथ लाहिडी, 12.गोविन्दचरण कार, 13.रामदुलारे त्रिवेदी, 14.रामनाथ पाण्डेय, 15.शचीन्द्रनाथ सान्याल, 16.भूपेन्द्रनाथ सान्याल, 17.प्रणवेशकुमार चटर्जी</small>]]
'''काकोरी काण्ड''' ([[अंग्रेजी]]: Kakori conspiracy) [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] के क्रान्तिकारियों द्वारा [[ब्रिटिश राज]] के विरुद्ध भयंकर युद्ध छेड़ने की खतरनाक ईच्छा से हथियार खरीदने के लिये ब्रिटिश [[सरकार]] का ही खजाना लूट लेने की एक [[ऐतिहासिक]] घटना थी जो ९ अगस्त १९२५ को घटी।<ref>{{Cite web |url=http://rrtd.nic.in/ashfaqulla%20khan.html |title=संग्रहीत प्रति |access-date=11 दिसंबर 2012 |archive-url=https://web.archive.org/web/20120325170414/http://rrtd.nic.in/ashfaqulla%20khan.html |archive-date=25 मार्च 2012 |url-status=live }}</ref> इस ट्रेन डकैती में [[जर्मनी]] के बने चार [[माउज़र पिस्तौल]] काम में लाये गये थे।<ref>{{Cite web |url=http://world.guns.ru/handguns/hg90-e.htm |title=संग्रहीत प्रति |access-date=11 दिसंबर 2012 |archive-url=https://web.archive.org/web/20100914224726/http://world.guns.ru/handguns/hg90-e.htm |archive-date=14 सितंबर 2010 |url-status=live }}</ref> इन पिस्तौलों की विशेषता यह थी कि इनमें बट के पीछे लकड़ी का बना एक और कुन्दा लगाकर रायफल की तरह उपयोग किया जा सकता था। [[हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन]] के केवल दस सदस्यों ने इस पूरी घटना को परिणाम दिया था।
क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे स्वतन्त्रता के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के [[शाहजहाँपुर]] में हुई बैठक के दौरान [[राम प्रसाद बिस्मिल]] ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी थी। इस योजनानुसार दल के ही एक प्रमुख सदस्य [[राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]] ने [[९ अगस्त]] [[१९२५]] को [[लखनऊ]] जिले के [[काकोरी]] रेलवे स्टेशन से छूटी "आठ डाउन [[सहारनपुर]]-[[लखनऊ]] पैसेन्जर ट्रेन" को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में [[अशफाक उल्ला खाँ]], पण्डित [[चन्द्रशेखर आज़ाद]] व ६ अन्य सहयोगियों की सहायता से समूची लौह पथ गामिनी पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया। बाद में अंग्रेजी सत्ता उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल ४० क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व यात्रियों की हत्या करने का प्रकरण चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर [[रोशन सिंह]] को मृत्यु-दण्ड ([[फाँसी]] की सजा) सुनायी गयी। इस प्रकरण में १६ अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम ४ वर्ष की सजा से लेकर अधिकतम [[काला पानी]] (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था।राहुल भेरामोरे
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=== बाद में गिरफ़्तार ===
फरार क्रान्तिकारियों में से दो को पुलिस ने बाद में गिरफ़्तार किया था। उनके नाम व स्थान निम्न हैं:
<ref>{{cite book |last1=क्रान्त |first1= |authorlink1= |last2= |first2= |editor1-first= |editor1-last= |editor1-link= |others= |title=स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास |url=http://www.worldcat.org/title/svadhinata-sangrama-ke-krantikari-sahitya-ka-itihasa/oclc/271682218 |format= |accessdate=5-12- 2013 |edition=1 |series= |volume=1 |date= |year=2006 |month= |origyear= |publisher=प्रवीण प्रकाशन |location=नई दिल्ली |
* '''[[दिल्ली]] ''' से
# अशफाक उल्ला खाँ
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== काकोरी काण्ड का अन्तिम निर्णय ==
[[चित्र:Kakori Shaheed.jpg|thumb|right|200px|काकोरी काण्ड के चार अमर बलिदानी: (बायें से) राजेन्द्र लाहिडी, अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल' एवं ठाकुर रोशनसिंह]]
२२ अगस्त १९२७ को जो फैसला सुनाया गया उसके अनुसार [[राम प्रसाद बिस्मिल]], [[राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]] व [[अशफाक उल्ला खाँ]] को आई०पी०सी० की दफा १२१(ए) व १२०(बी) के अन्तर्गत आजीवन कारावास तथा ३०२ व ३९६ के अनुसार [[फाँसी]] एवं ठाकुर [[रोशन सिंह]] को पहली दो दफाओं में ५+५ कुल १० वर्ष की कड़ी कैद तथा अगली दो दफाओं के अनुसार [[फाँसी]] का आदेश हुआ। [[शचींद्रनाथ सान्याल|शचीन्द्रनाथ सान्याल]], जब जेल में थे तभी लिखित रूप से अपने किये पर पश्चाताप प्रकट करते हुए भविष्य में किसी भी क्रान्तिकारी कार्रवाई में हिस्सा न लेने का वचन दे चुके थे जिसके आधार पर उनकी उम्र-कैद बरकरार रही। उनके छोटे भाई भूपेन्द्रनाथ सान्याल व [[बनवारी लाल]] ने अपना-अपना अपराध स्वीकार करते हुए न्यायालय की कोई भी सजा भुगतने की अण्डरटेकिंग पहले ही दे रखी थी इसलिये उन्होंने माँँग नहीं की और दोनों को ५-५ वर्ष की सजा के आदेश यथावत रहे। चीफ न्यायालय में याचिका करने के बावजूद योगेशचन्द्र चटर्जी, मुकुन्दी लाल व गोविन्दचरण कार की सजायें १०-१० वर्ष से बढ़ाकर उम्र-कैद में बदल दी गयीं। सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य व विष्णुशरण दुब्लिश की सजायें भी ७ वर्ष से बढ़ाकर १० वर्ष कर दी गयी। [[रामकृष्ण खत्री]] को भी १० वर्ष के कठोर कारावास की सजा बरकरार रही।<ref name="क्रान्त">
खूबसूरत हैण्डराइटिंग में लिखकर याचिका देने के कारण केवल प्रणवेश चटर्जी की सजा को ५ वर्ष से घटाकर ४ वर्ष कर दिया गया। इस काण्ड में सबसे कम सजा (३ वर्ष) रामनाथ पाण्डेय<ref>डॉ॰ भगवान दास माहौर ''काकोरी बलिदान स्मृति'' पृष्ठ-७८</ref> को हुई। [[मन्मथनाथ गुप्त]], जिनकी गोली से यात्री मारा गया, की सजा बढ़ाकर १४ वर्ष कर दी गयी<ref>विद्यार्णव शर्मा ''युग के देवता-बिस्मिल और अशफाक'' पृष्ठ-११८/११९</ref>। एक अन्य अभियुक्त [[राम दुलारे त्रिवेदी]] को इस प्रकरण में पाँच वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गयी।<ref name="क्रान्त">
== क्षमादान के प्रयास ==
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