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'''कृत्रिम गर्भाधान''' या आइवीएफ ([[इन विट्रो फर्टिलाइजेशन]]) में अंडों को अंडाशय से शल्य क्रिया द्वारा बाहर निकाल कर शरीर से बाहर पेट्री डिश में [[शुक्राणु]] के साथ मिलाया जाता है। करीब 40 घंटे के बाद अंडों का परीक्षण किया जाता है कि वे निषेचित हो गये हैं या नहीं और उनमें कोशिकाओं का विभाजन हो रहा है। इन निषेचित अंडों को महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है और इस तरह गर्भ-नलिकाओं का उपयोग नहीं होता है।
इस प्रक्रिया में, विशेष रूप से तैयार किए गए वीर्य को महिला के अन्दर इंजैक्शन द्वारा पहुँचाया जाता है। कृत्रिम वीर्य़ का उपयोग कई स्थितियों में किया जाता है।
* अगर पुरुष साथी अनुर्वरक हो
* [[गर्भाशय ग्रीवा]] परक म्यूक्स में महिला को कोई रोग हो , या
* दम्पति में अनुर्वरकता का कारण पता न चल रहा हो।
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==सहायक प्रजनन तकनीक ==
सहायक प्रजनन तकनीक में अनुर्वरित दम्पतियों की मदद के लिए अनेकानेक वैकल्पिक विधियां बताई गई हैं। इस तकनीक के द्वारा स्त्री के शरीर से अण्डे को निकालकर प्रयोगशाला में उसे वीर्य से मिश्रित किया जाता है और एमबरायस को वापिस स्त्री के शरीर में डाला जाता है। इस प्रक्रिया में कई बार दूसरों द्वारा दान में दिए गए अण्डों, दान में दिए वीर्य या पहले से फ्रोजन एमबरायस का उपयोग भी किया जाता है। दान में दिए गए अण्डों का प्रयोग उन स्त्रियों के लिए किया जाता है है जो कि अण्डा उत्पन्न नहीं कर पातीं। इसी प्रकार दान में दिए गए अण्डों या वीर्य का उपयोग कई बार ऐसे स्त्री पूरूष के लिए भी किया जाता है जिन्हें कोई ऐसी जन्मजात बीमारी होती है जिसका आगे बच्चे को भी लग जाने का भय होता है।
 
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आई सी एस आई में उर्वरित अण्डे में मात्र एक शुक्राणु को इंजैक्ट किया जाता है। तब भ्रूण को गर्भाशय या अण्डवाही ट्यूब में ट्रांस्फर (स्थानान्तरित) किया जाता है। इसका प्रयोग उन दम्पतियों के लिए किया जाता है जिन्हें वीर्य सम्बन्धी कोई घोर रोग होता है। कभी कभी इसका उपयोग आयु में बड़े दम्पतियों के लिए भी किया जाता है या जिनका आई वी एफ का प्रयास असफल रहा हो।
 
{{आईवीएफ}}
==संदर्भ==
<references />