"राजनीतिक दर्शन": अवतरणों में अंतर

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== राजनीतिक सिद्धान्त के लिए महत्त्वपूर्ण प्रश्न ==
राजनीतिक सिद्धान्त में जिन प्रश्नों का महत्त्व रहा है वे समय के साथ-साथ बदलते रहे हैं। क्लासिकी और प्रारंभिक राजनीतिक सिद्धान्त का सरोकार नैतिक दृष्टि से दोष-रहित राजनीतिक व्यवस्था की तलाश से था और उसने विशेष ध्यान राज्य के स्वरूप और प्रयोजन, राजनीतिक सत्ता के उपयोग के आधार और राजनीतिक अवज्ञा की समस्या से प्रश्नों पर दिया। आधुनिक राष्ट्र राज्यों के उदय और आर्थिक संरचना में हुए परिवर्तनों तथा [[औद्योगिक क्रांति]] के फलस्वरूप नई प्राथमिकताएँ सामने आईं और ध्यान का केंद्र [[व्यक्तिवाद]] तथा व्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज एवं राज्य के साथ उसका संबंध बन गया। अधिकार, कर्त्तव्य, स्वतंत्रता, समानता और संपत्ति जैसे प्रश्न अधिक महत्त्वपूर्ण हो गए। धीरे-धीरे एक अवधारणा के साथ दूसरो के संबंध की व्याख्या जैसे स्वतंत्रता और समानता, न्याय और स्वतंत्रता, या समानता और संपत्ति के बीच के संबंध की व्याख्या : भी महत्त्वपूर्ण हो गई। [[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के बाद एक नए प्रकार के आनुभविक राजनीतिक सिद्धान्त का उदय हुआ। इसमें मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करने और उसके आधार पर सैद्धांतिक निष्कर्ष निकालने की कोशिश की गई। मानव-व्यवहारों का अध्ययन करने वाले विद्वानों ने अध्ययन के लिए नए प्रश्नों को सामने रखा। वे बहुधा विधा की अन्य शाखाओं से ऐसे प्रश्न उधार लेते थे। इनमें से कुछ प्रश्न इस प्रकार हैं-
: ''राजनीतिक संस्कृति और वैधता, राजनीतिक प्रणाली, अभिजन, समूह, [[राजनीतिक दल]] आदि।
 
विगत कुछ दशकों से कई और भी मसले उभरे हैं - जैसे पहचान, लिंग, पर्यावरणवाद, पारिस्थितिकी, समुदाय आदि। साथ ही मूल्य-आधारित राजनीतिक सिद्धान्त का भी पुनरोदय हुआ है, जिसमें स्वतंत्रता, समानता और न्याय के प्रश्नों पर नए ढंग से जोर दिया गया है।