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राजल गोकुल रूप सिंह चंडी हटी जगदीश। सुजो अणदो कान्हो नौ नर हुया नरेश।।
 
कालांतर में इसी कुल में भवानी सिंह हुए जिन्होंने पुनः स्वतंत्र मेड़ता राज्य की स्थापना का प्रयास किया। इन्होंने मुग़ल सेना से कई बार सामना किया तथा मारवाड़ से दिल्ली जाने वाले कर रूपी शाही खजाने को लुटा एवम क्षेत्र में कई सामाजिक कार्य करवाये जिनमे पेयजल के लिए 11 तालाबों का निर्माण, वृक्षारोपण भी शामिल थे इन्होंने गांव में लक्ष्मन जी का मंदिर भी बनवाया तथा गांव के आराध्य चारभुजा जी के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया तथा गायों एवम मंदिर के नाम पर 1००० बीघा जमीन दान की , जो की मंदिर के समीप स्तिथ शिलालेख पर खुदखुदा हुआ है। भवानी सिंह के पुत्र मान सिंह हुए जिन्होंने 1857 कि क्रांति में सहयोग किया। इन्होंने जोधपुर एवम अंग्रेजों की संयुक्त सेना के विरुद्ध गूलर ,आलनियावास एवम आहुवा ठाकुर कुशल सिंह के साथ मिलकर युद्ध किया जिसमे इन्होंने इस संयुक्त सेना का हराया तथा जोधपुर के पोलिटिकल एजेंट मोक मेसन के सर को काटकर आहुआ किले के दरवाजे पर लटकाया इस युद्ध में मांझी के कई लोग काम आये जिनमें जाट, मेघवाल तथा रैगर समुदाय के व्यक्ति भी शामिल थे जाटों में बिरमा जी , रुघोजी , किरपा जी , रैगरों में सुगनो जी , हड़मानों जी तथा मेघवालों में रामुजी, रूपो जी भी थे। इसके पश्चात पुनः जोधपुर एवम मांझी के मध्य मोती सिंह जी के समय सम्बन्ध कड़वे हुए तथा दोनों की सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ। जिसमे जोधपुर सेना ने यहाँ तोपों से गोले बरसाए किन्तु गांव के सभी समुदाय के लोगों ने इसमें सहयोग एवम सहादत दी।
 
मांझी गांव एक समृद्ध इतिहास समेटे हुए है जिसकी वीरता की कहानी यहाँ की धरती आज भी बोलती है। कालांतर में द्वितीय विश्व युद्ध, भारत पाकिस्तान एवम भारत चीन युद्धों में भी यहाँ के वीरों ने अपनी अनूठी छाप छोड़ी। बदलते समय में गांव में आधुनिकता का भी परिचय मिलता है जहाँ गांव के लोग दिल्ली, कोलकाता, अहमदाबाद , हैदराबाद जयपुर एवम जोधपुर में बड़े व्यवसायी बनें है