"रानी लक्ष्मीबाई": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:1857Swatantrata sangram.jpg|thumb|200px|left|1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाकटिकट जिसमें लक्ष्मीबाई का चित्र है।]]
झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। [[झलकारी बाई]] जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।<ref>{{Cite web|url=https://www.bhaskar.com/news/MP-GWA-HMU-jhansi-ki-rani-laxmibai-5169714-PHO.html|title=यहां हुईं थीं रानी लक्ष्मीबाई शहीद, अंग्रेज अफसर ने किया था सेल्यूट|date=2015-11-16|website=Dainik Bhaskar|language=hi|access-date=2020-06-22}}</ref>
1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य [[ओरछा]] तथा [[दतिया]] के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर [[कालपी]] पहुँची और [[तात्या टोपे]] से मिली।<ref>{{Cite web|url=https://www.jagran.com/news/national-in-just-29-years-the-foundation-of-the-english-rule-was-shaken-jagran-special-19320473.html|title=मात्र 29 साल में हिला दी थी अंग्रेजी शासन की नींव, जानिए कौन थी वीरांगना|website=Dainik Jagran|language=hi|access-date=2020-06-22}}</ref>
तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने [[ग्वालियर]] के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। [[बाजीराव प्रथम]] के वंशज [[अली बहादुर द्वितीय]] ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया और रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी इसलिए वह भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल हुए। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी।<ref>^ David, Saul (2003), The Indian Mutiny: 1857, Penguin, London p367</ref>
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