"मुकाम": अवतरणों में अंतर

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→‎धार्मिक परम्परा: यह सब आखोँ देखा विवरण हैं चुगाघर पक्षियों के चुगा का स्टोर हैं इसमें मैले में आने वाले जातरूओं द्वारा चुगा जमा किया जाता हैं जो वर्ष भर पक्षियों को ढाला जाता हैं मै भी मैला में. चुगा लेकर शरीक होता हूँ!!धन्यवाद
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==धार्मिक परम्परा==
यहां पर गुरू जाम्भोजी की पवित्र समाधि हैं। इसी कारण समाज में सर्वाधिक महत्त्व मुकाम का ही हैं। इसके पास ही पुराना तालाब गांव हैं। कहा जाता हैं कि गुरु जाम्भोजी ने अपने स्वर्गवास से पूर्व समाधि के लिये खेजड़ी एवं जाल के वृक्ष को निशानी के रूप में बताया और कहा था कि वहां 24 हाथ की खुदाई करने पर शिवजी का धुणा एवं त्रिशूल मिला थाएथा वही आज समाधि पर बने मन्दिर पर लगा हुआ है और खेजड़ा मन्दिर परिसर में स्थित हैं। मुकाम में वर्ष में दो मेले लगते है एक फाल्गुन की अमावस्या को तथा दूसरा आसोज की अमावस्या को। फाल्गुन की अमावस्या का मेला तो प्रारम्भ से ही चला आ रहा आसोज मेला संत वील्होजी ने सम्वत् 1648 में प्रारम्भ किया था। आजकल हर अमावस्या को बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुचनेपहुंंचने प्रारम्भप्रारंम्भ हो गयें हैं । कई वर्षो से मुकाम में समाज की ओर सें निःशुल्क भण्डारे की व्यवस्था हैं। मुकाम में पहुंचने वाले सभी जातरू समाधि के दर्शन करते हैं और धोक लगाते हैं। सभी मेंलों पर यहां बहुत बढ़ा हवन होता है जिसमेें कई मण घी एवं खोपरे से आहुति दी जाती है। घी खोपरा कें साथ-साथ जातरू पक्षियों के लिये चूगा भी चुगाघर में डालते हैं जिसे पक्षी वर्षभरवर्ष भर चूगते रहते हें। अब समाधि पर बने मन्दिर का जीर्णोद्धार करके एक भव्य मन्दिर बना दिया गया हैं । समाधि पर बने मन्दिर को निज मन्दिर भी कहते हैं । मुकाम में मेलो में आनें वाले लोगों के लिए समाज की भी अनेक धर्मशालाएं हें। मेलों की समस्त व्यवस्था अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा एवं अखिल भारतीय गुरू जम्भेश्वर सेवक दल द्वारा की जाती है।
 
==सन्दर्भ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/मुकाम" से प्राप्त