"शेख मुजीबुर्रहमान": अवतरणों में अंतर
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मुजीब के सभी तीन बेटे और उनकी पत्नी की बारी-बारी से हत्या कर दी गई। हमले में कुल २० लोग मारे गए थे। मुजीब शासन से बगावती सेना के जवान हमले के समय कई दस्तों में बंटे थे। अप्रत्याशित हमले में मुजीब परिवार का कोई पुरुष सदस्य नहीं बचा। उनकी दो बेटियाँ संयोगवश बच गईं, जो घटना के समय जर्मनी में थीं। उनमें एक [[शेख हसीना]] और दूसरी शेख़ रेहाना थीं। शेख़ हसीना अभी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं। अपने पिता की हत्या के बाद शेख़ हसीना हिन्दुस्तान रहने लगी थीं। वहीं से उन्होंने बांग्लादेश के नए शासकों के ख़िलाफ़ अभियान चलाया। १९८१ में वह बांग्लादेश लौटीं और सर्वसम्मति से अवामी लीग की अध्यक्ष चुन ली गयीं।
== लोकप्रिय संस्कृति में ==
*बांग्लादेशी लेखक [[हुमायून अहमद]] ने शेख मुजीब को उनके दो ऐतिहासिक उपन्यास, 2004 के "जोछना ओ जोनोनिर गोलपो" में आज़ादी की लड़ाई के दौरान के समय, और 2012 की "देयाल" मे आजादी के अवधि के बाद के दिन को चित्रित किया।
* मुजीब ने बांग्लादेशी-कनाडाई लेखक नेमत इमाम द्वारा नकारात्मक रूप से चित्रित किया है। उनके उपन्यास, "द ब्लैक कोटट में मुजीब को एक घातक तानाशाह के रूप में दर्शाया गया है।
* 2014 में भारतीय फिल्म "चिल्ड्रेन ऑफ वॉर" मे, प्रोडीप गांगुली ने शेख मुजीब के चरित्र को चित्रित किया।
==इन्हें भी देखें==
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