"जगन्नाथ": अवतरणों में अंतर
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== मूर्तियों की उत्पत्ति ==
[[चित्र:Jagannatha naya.jpg|thumb|जगन्नाथ, सुभद्रा, बळभद्र एवं सुदर्शन चक्र भगवान रत्नसिम्हसन के उपर्, ओडिशा राज्य के नयागढ शहर मे जो कि पुरी शहरसे ४ घण्टे कि दूरि पर है]]
जगन्नाथ से जुड़ी दो रोचक कहानियाँ हैं। पहली कहानी में [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] अपने परम भक्त राज इन्द्रद्युम्न के सपने में आये और उन्हे आदेश दिया कि पुरी के दरिया किनारे पर पडे एक पेड़ के तने में से वे श्री कृष्ण का विग्रह बनायें।
दूसरी कहानी [[महाभारत]] में से है और बताती है कि जगन्नाथ के रूप का रहस्य क्या है। माता [[यशोदा]], सुभद्रा और देवकी जी, [[वृन्दावन]] से [[द्वारका]] आये हुए थे। रानियों ने उनसे निवेदन किया कि वे उन्हे श्री कृष्ण की बाल लीलाओ के बारे में बतायें। सुभद्रा जी द्वार पर पहरा दे रही थी, कि अगर कृष्ण और बलराम आ जायेंगे तो वो सबको आगाह कर देगी। लेकिन वो भी कृष्ण की बाल लीलाओ को सुनने में इतनी मग्न हो गयी, कि उन्हे कृष्ण बलराम के आने का विचार ही नहीं रहा। दोनो भाइयो ने जो सुना, उस से उन्हे इतना आनन्द मिला की उनके बाल सीधे खडे हो गये, उनकी आँखें बड़ी हो गयी, उनके होठों पर बहुत बड़ा स्मित छा गया और उनके शरीर भक्ति के प्रेमभाव वाले वातावरण में पिघलने लगे। सुभद्रा बहुत ज्यादा भाव विभोर हो गयी थी इस लिये उनका शरीर सबसे जयदा पिघल गया (और इसी लिये उनका कद जगन्नाथ के मन्दिर में सबसे छोटा है)। तभी वहाँ नारद मुनि पधारे और उनके आने से सब लोग वापस आवेश में आये। श्री कृष्ण का ये रूप देख कर नारद बोले कि "हे प्रभु, आप कितने सुन्दर लग रहे हो। आप इस रूप में अवतार कब लेंगे?" तब कृष्ण ने कहा कि कलियुग में वो ऐसा अवतार लेंगे और उन्होंने ने कलियुग में राजा इन्द्रद्युम्न को निमित बनाकर जगन्नाथ अवतार लिया।
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