"भारतीय संविधान की उद्देशिका": अवतरणों में अंतर
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{{भारत का संविधान}}
[[संविधान]] के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु प्राय: उनसे पहले एक [[उद्देशिका]]
संविधान किन आदर्शों, आकांक्षाओं को प्रकट करता है, इसका निर्धारण भी
▲==[https://gkexamquiz.com/preamble-of-indian-constitution-pdf/ भारतीय संविधान की/प्रस्तावना]==
{{cquote | हम, भारत के लोग, भारत को एक '''संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी ,पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य'''<ref>संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा-2 द्वारा (3-1-1977 से) संपूर्ण प्रभु्त्व लोकतंत्रात्मक गणराज्य के स्थान पर प्रतिस्थापित</ref> बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:<br />
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक '''न्याय,''' <br /> विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की '''स्वतंत्रता''', <br /> प्रतिष्ठा और अवसर की '''समता,''' प्राप्त कराने के लिए, <br />
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'''नवीन मत'''-- इसे संविधान का एक भाग बताता है [[केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य|केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य 1973]] में दिये निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संविधान का भाग बताया है। संविधान का एक भाग होने के कारण ही संसद ने इसे 42वें संविधान संशोधन से इसे सशोधित किया था तथा समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंण्डता शब्द जोड़ दिये थे। वर्तमान में नवीन मत ही मान्य है।
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उद्देशिका के आदर्श अग्रलिखित है-
कम या अधिक मात्रा में प्राप्त कर लिये गये हैं <br />
अपेक्षाएं (स्वतंत्रता, न्याय, समानता है), लक्ष्य है जबकि आदर्श (जनतांत्रिक, समाजवादी) उपाय हैं।
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''' सम्प्रभु''' -- राज्य की सर्वोपरि राजनैतिक शक्ति है कि घोषणा करती है, राज्य की राजनैतिक सीमाओं के भीतर इसकी सत्ता सर्वोपरि है, तथा यह किसी बाहरी शक्ति की प्रभुता स्वीकार नहीं करती है।
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'''गणतंत्र''' -- राजप्रमुख निर्वाचित होगा न कि वंशानुगत
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*[[भारत का संविधान|भारतीय संविधान]]
*[[निदेशक तत्त्व|भारत के नीति निर्देशक तत्त्व]]
[[श्रेणी:भारत का संविधान]]
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