"मीरा बाई": अवतरणों में अंतर

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पति की मृत्यु के उपरान्त वे विरक्त हो गई और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगी। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थी। मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को [[विष]] देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह [[द्वारका]] और [[वृन्दावन]] गई। वह जहाँ जाती थी, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग उन्हे देवी के जैसा प्यार और सम्मान देते थे। मीरा का समय बहुत बड़ी राजनैतिक उथल-पुथल का समय रहा है। बाबर का हिंदुस्तान पर हमला और प्रसिद्ध [[खानवा का युद्ध]] उसी समय हुआ था। इस सभी परिस्तिथियों के बीच मीरा का रहस्यवाद और भक्ति की निर्गुण मिश्रित सगुण पद्धत्ति सवर्मान्य  बनी।
 
== संघर्ष ==
मीराबाई की मृत्यु के उपरान्त उसका देवर राणा जी राजा बन गया था, उसने मीराबाई को कई बार मारने की कोशिश की। कभी जहरीले सांप से तो कभी भयंकर विष पिलाकर। जब मीरा बाई को जान से मारने के सारे प्रयास करके थक गया तो राणा समझ गया कि मीरा नहीं मरने वाली । इसकी रक्षा करने वाली कोई परम शक्ति है। भक्त पर कोई विपत्ति आती है तो भक्ति की लाज बचाने को [[कबीर]] परमात्मा ही मदद करते हैं। राणा ने फिर मीरा बाई को मंदिर में जाने से नहीं रोका।<ref>{{Cite web|url=https://news.jagatgururampalji.org/true-story-of-meera-bai/|title=मीरा बाई की अनसुनी सत्य कहानी - SA NEWS|date=2018-06-15|website=S A NEWS|language=en-US|access-date=2020-06-27}}</ref>
 
== इन्हें भी देखें==