"गायत्री मन्त्र": अवतरणों में अंतर

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'''गायत्री महामंत्र''' ([[चित्र:Speaker_Icon.svg|13px]]{{plainlink|http://www.awgp.org/audio/mantra/ सुनें}}) [[वेद|वेदों]] का एक महत्त्वपूर्ण [[मन्त्र|मंत्र]] है जिसकी महत्ता [[ॐ]] के लगभग बराबर मानी जाती है। यह [[यजुर्वेद]] के [[मन्त्र]] '[[गायत्री मन्त्र|ॐ भूर्भुवः स्वः]]' और [[ऋग्वेद]] के छन्द 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में [[सवितृ]] देव की उपासना है इसलिए इसे '''सावित्री''' भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। इसे [[श्री गायत्री देवी]] के स्त्री रुपरूप मेमें भी पुजापूजा जाता है।
 
'गायत्री' एक [[छंद|छन्द]] भी है जो ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध [[छंद]]ों में एक है। इन सात छंदों के नाम हैं- गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, विराट, त्रिष्टुप् और जगती। गायत्री छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में त्रिष्टुप् को छोड़कर सबसे अधिक संख्या गायत्री छंदों की है। गायत्री के तीन पद होते हैं (त्रिपदा वै गायत्री)। अतएव जब छंद या वाक के रूप में सृष्टि के प्रतीक की कल्पना की जाने लगी तब इस विश्व को त्रिपदा गायत्री का स्वरूप माना गया। जब गायत्री के रूप में जीवन की प्रतीकात्मक व्याख्या होने लगी तब गायत्री छंद की बढ़ती हुई महिता के अनुरूप विशेष मंत्र की रचना हुई, जो इस प्रकार है: