"वाक्य और वाक्य के भेद": अवतरणों में अंतर

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दो या दो से अधिक शब्दों के सार्थक समूह को '''वाक्य''' कहते हैं। उदाहरण के लिए 'सत्य से विजय होती है।' एक वाक्य है क्योंकि इसका पूरा पूरा अर्थ निकलता है किन्तु 'सत्य विजय होती।' वाक्य नहीं है क्योंकि इसका अर्थ नहीं निकलता है तथा वाक्य होने के लिए इसका अर्थ निकलना चाहिए। जैसे:- "विद्या धन के समान हैं ।" ,"विदयांशु कल विद्यालय जायेेेगा ।"
मैं एक जोकर हूँ । रंग-बिरंगे कपड़े पहनता हूँ। चेहरे पर सफेद रंग लगाता हूँ और नाक पर लाल-लाल गेंद चिपकाता हूँ। मेरे बाल सफेद-काले और घुंघराले हैं । मैं सदा उछलता-कूदता, हँसता-हँसाता हूँ। कभी भागता-भगाता है। चित्र-विचित्र हाव-भाव कर कभी फिसलता तो कभी गिरता हूँ। मुझे देखकर बाल-बच्चे हल्ला-गुल्ला मचाते हैं।
 
==शब्दकोशीय अर्थ==
मैं छोटे-बड़े गाँव-शहर में जाता हूँ । मजेदार कलाबाजियाँ दिखाकर अच्छे-भले करतब करता हूँ। कभी उल्टा-पुल्टा तो कभी आगे-पीछे तो कभी ऊपर-नीचे छलाँगें लगाता हूँ । सीढ़ियों पर सरसर-सरसर, चढ़ता-उतरता हूँ। गोल-गोल रिंग से आर-पार हो जाता हूँ। हँसाना मेरा काम है । जोकर मेरा नाम है।
*(१) वह पद समूह जिससे श्रोता को वक्ता के अभिप्राय का बोध हो। भाषा को भाषावै अबे
ज्ञानिक आर्थिक इकाई का बोधक पद समूह। वाक्य में कम से कम कारक (कर्तृ आदि) जो संज्ञा या सर्वनाम होता है और क्रिया का होना आवश्यक है। क्रियापद और कारक पद से युक्त साकांक्ष अर्थबोधक पद- समूह या पदोच्चय। उद्देश्यांश और विवेयांशवाले सार्थक पदों का समूह।
 
विशेष—नैयायिकों और अलंकारियों के अनुसार वाक्य में
*(क) आकांक्षा, <br>
*(ख) योग्यता और <br>
*(ग) आसक्ति या सन्निधि होनी चाहिए। <br>
'आकांक्षा' का अभिप्राय यह है कि शब्द यों ही रखे हुए न हों, वे मिलकर किसी एक तात्पर्य का बोध कराते हों। जैसे, कोई कहे—'मनुष्य चारपाई पुस्तक' तो यह वाक्य न होगा। जब वह कहेगा—'मनुष्य चारपाई पर पुस्तक पढ़ता है।' तब वाक्य होगा। <br>
'योग्यता' का तात्पर्य यह है कि पदों के समूह से निकला हुआ अर्थ असंगत या असंभव न हो। जैसे, कोई कहे—'पानी में हाथ जल गया' तो यह वाक्य न होगा। <br>
'आसक्ति' या 'सन्निधि' का मतलब है सामीप्य या निकटता। अर्थात् तात्पर्यबोध करानेवाले पदों के बीच देश या काल का व्यवधान न हो। जैसे, कोई यह न कहकर कि 'कुत्ता मारा, पानी पिया' यह कहे—'कुत्ता पिया मारा पानी' तो इसमें आसक्ति न होने से वाक्य न बनेगा; क्योंकि 'कुता' और 'मारा' के बीच 'पिया' शब्द का व्यवधान पड़ता है। इसी प्रकार यदि काई 'पानी' सबेरे कहे और 'पिया' शाम को कहे, तो इसमें काल संबंधी व्यवधान होगा। काव्य भेद का विषय मुख्यतः न्याय दर्शन के विवेचन से प्रारंभ होता है और यह मीमांसा और न्यायदर्शनों के अंतर्गत आता है।
 
दर्शनशास्त्रीय वाक्यों के ३ भेद- विधिवाक्य, अनुवाद वाक्य और अर्थवाद वाक्य किए गए हैं। इनमें अंतिम के चार भेद- स्तुति, निंदा, परकृति और पुराकल्प बताए गए हैं।
वक्ता के अभिप्रेत अथवा वक्तव्य की अबाधकता वाक्य का मुख्य उद्देश्य माना गया है। इसी की पृष्ठ भूमि में सस्कृत वैयाकरणों ने वाक्यस्फोट की उद्भावना की है। वाक्यपदोयकार द्वारा स्फोटात्मक वाक्य की अखंड सत्ता स्वीकृत है। <br>
भाषाबैज्ञानिकों की द्दष्टि में वाक्य संश्लेषणात्मक और विश्लेषणा- त्मक होते हैं। <br>
शब्दाकृतिमूलक वाक्य के शब्दभेदानुसार चार भेद हैं—समासप्रधान, व्यासप्रधान, प्रत्ययप्रधान और विभक्तिप्रधान। इन्हीं के आधार पर भाषाओं का भी वर्गीकरण विद्वानों ने किया है।
 
आधुनिक व्याकरण की दृष्टि से वाक्य के तीन भेद होते हैं—सरल वाक्य, मिश्रित वाक्य और संयुक्त वाक्य।
*२. कथन। उक्ति (को०)।
*३. [[न्यायशास्त्र|न्याय]] में युक्ति। उपपत्ति। हेतु
*४. [[विधि]]। नियम। अनुशासन (को०)।
*५. [[ज्योतिष]] में गणना की सौर प्रक्रिया (को०)।
*६. प्रतिज्ञा। पूर्व पक्ष (को०)।
*७. आदेश। प्रभुत्व। शासन (को०)।
*८. विधिसम्मत साक्ष्य या [[प्रमाण]] (को०)।
*९. वाक्रप्रदत्त होना (को०)।
 
=== वाक्यांश ===
शब्दों के ऐसे समूह को जिसका अर्थ तो निकलता है किन्तु पूरा पूरा अर्थ नहीं निकलता, वाक्यांश कहते हैं। उदाहरण -
:'दरवाजे पर', 'कोने में', 'वृक्ष के नीचे' आदि का अर्थ तो निकलता है किन्तु पूरा पूरा अर्थ नहीं निकलता इसलिये ये वाक्यांश हैं।
 
===कर्ता और क्रिया के आधार पर वाक्य के भेद ===
वाक्य के दो भेद होते हैं-
* [[उद्देश्य]] और
* [[विधेय]]
 
जिसके बारे में बात की जाय उसे '''उद्देश्य''' कहते हैं और जो बात की जाय उसे '''विधेय''' कहते हैं। उदाहरण के लिए, 'मोहन [[इलाहाबाद|प्रयाग]] में रहता है'। इसमें उद्देश्य है - 'मोहन' , और विधेय है - 'प्रयाग में रहता है।'
 
=='''वाक्य के भेद (प्रत्येक भेद के 5-5 उदाहरण लिखें)'''==