"चारण (जाति)": अवतरणों में अंतर

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'''चारण''' एक जाति है को [[सिंध]], [[राजस्थान]] और [[गुजरात]] में निवास करती है। चारण शब्द चाह + रण से बना है अर्थात वह जो रण या युद्ध की चाह रखता है । वेदों में चार वर्णो का उल्लेख मिलता है,जिनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी से बताई जाती है। जबकि चारण जाति की उत्पत्ति माता पार्वती से बताई जाती है, इसी कारण ये मान्यता है कि येे चारो वर्णो से अलग पांचवा वर्ण है ।
 
== सामाजिक संरचना ==
सदस्यों के जाति माना जाता है परमात्मा के द्वारा समाज के एक बड़े वर्ग है। जाति की महिला के बहुत अच्छा लगा रहे हैं के रूप में माँ देवी द्वारा अन्य प्रमुख समुदायों के इस क्षेत्र सहित [//en.wikipedia.org/wiki/Rajput राजपूतों].
युद्धों में हिन्दू सेनाओ की विजय का प्रमुख कारण एक बेहद विशिष्ट जाति थी जो “चारण” कहलाती थी। राजपूत और क्षत्रिय उसे अपने हरावल (vanguard) में रखते थे। हरावल सेना की वो टुकड़ी होती है जो शत्रु से सबसे पहले भिड़ती है। अग्रिम पंक्ति में चारण योद्धाओं को रखा जाता था। इन्हीं के साथ राज चिन्ह, नक्कारे और पताकाऐं चलती थी।
 
Charan समाज पर आधारित है, लिखा [//en.wikipedia.org/wiki/Genealogy वंशावली]है। एक चरण पर विचार करेंगे सभी अन्य Charans बराबर के रूप में यहां तक कि अगर वे एक दूसरे को जानते नहीं है और मौलिक अलग आर्थिक या भौगोलिक स्थिति.
ये आत्मघाती हमलावर होते थे और जरूरत होने पर खुद को समाप्त करने में जरा भी नही हिचकते थे।
 
अनिल चन्द्र बनर्जी, एक इतिहास के प्रोफेसर, ने कहा कि {{Quote|In them we have a combination of the traditional characteristics of the Brahmin and the Kshatriyas. Like the Brahmins, they adopted literary pursuits and accepted gifts.Like the Rajput, they worshipped Shakti, drank liquor, took meat and engaged in military activities. They stood at the chief portal on occasions of marriage to demand gifts from the bridegrooms, they also stood at the gate to receive the first blow of the sword."<ref name="Banerjee">{{cite book |last=Banerjee |first=Anil Chandra.|title=Aspects of Rajput State and Society |pages=124–125 |year=1983|oclc = 12236372}}</ref>}}
ये योद्धा और कवि दोनों भूमिकाओं का निर्वाह करते थे। युद्ध ले समय मे हरावल के योद्धा और शांतिकाल में डिंगल भाषा के कवि और इतिहासकार |
 
=== खाद्य और पेय ===
चारण शब्द चाह + रण से बना है अर्थात वह जो रण या युद्ध की चाह रखता है।
अपने खाने और पीने की आदतों के उन सदृश राजपूतों. Charans इस्तेमाल का आनंद करने के लिए की खपत [//en.wikipedia.org/wiki/Opium अफीम] और शराब पीने के लिए शराब, प्रथाओं जो भी कर रहे हैं के बीच लोकप्रिय राजपूतों के इस क्षेत्र.Charans खाने को नहीं है मांस के लिए गाय और पकड़, जो उन लोगों में क्या बोलना उपेक्षा. गायों का सम्मान कर रहे हैं की तरह. एक पति और पत्नी नहीं होगा दूध पीने से एक ही गाय, दूध या गंदे द्वारा अपने काउंटर भाग है। दूध पीने से एक माँ (गाय) का प्रतीक है कि जो लोग ऐसा माना जाता हो जाना चाहिए के रूप में भाई बहन हैं। इससे पहले 1947 में भारतीय स्वतंत्रता, एक बलिदान के एक पुरुष भैंस के गठन का एक प्रमुख हिस्सा का उत्सव [//en.wikipedia.org/wiki/Navratri नवरात्रि]है। इस तरह के समारोहों में अक्सर इस्तेमाल किया जा करने के लिए की अध्यक्षता Charan औरत है।
 
वर्ण ‘ह’ का उच्चारण थोड़ा मुश्किल है क्योंकि यह हलक से होता है अतः यह कालांतर में चाहरण से सिर्फ चारण रह गया।
 
और भी कई मत प्रचलित है जाति के नाम की उत्पत्ति के संबंध में परन्तु यही मत अधिक तर्कपूर्ण प्रतीत होता है।
 
ये एक बेहद खूंख्वार (fierce) जाति थी। ये युद्ध मे काले रंग के वस्त्र धारण करते थे और उन पर पशुबलि का रक्त या लाल रंग लगा होता था। ये दोनों ही हाथों में शस्त्र रखते थे क्योंकि वीरगति प्राप्त करना मोक्ष के समकक्ष समझा जाता था अतः ढाल का उपयोग बहुदा नही किया करते थे। स्त्रियां त्रिशूल धारण करती थी और युद्धों में नेतृत्व करती थी। इनकी वेशभूषा अत्यंत डरावनी होती थी। ये दिखने में भी बड़े खूंख्वार होते थे।
 
युद्ध होने पर ये अत्यधिक रक्तपात करते थे । इस जाति की कुछ देवीयों को बली और शराब भी चढ़ाई जाती है जैसे आवड़ जी या करणी जी परंतु वही कुछ देवीयों जैसे गुजरात की खोडियार आदी को माँस और शराब निषिद्ध है। ऐसे भी उदाहरण मिलते है कि बलि इत्यादि में इनकी दैवीयां बलि दिए गए पशु का रक्तपान करती थी। ऐसा शत्रुओं में भय उत्पन्न करने हेतु किया जाता होगा।
 
युद्ध मे हारने पर या अपनी जिद पूरी ना होने पर ये जापान के समुराई योद्धाओं की भाँति स्वयं के शरीर के अंगों को भयंकर अट्टहास करते हुए स्वयं ही काट डालते और शत्रुओं को श्राप देकर अपनी जीवनलीला स्वयं समाप्त कर देते क्योंकि युद्ध से वापस आना अपमानजनक समझा जाता था । इस प्रक्रिया को “त्रगु” या “त्राग” कहा जाता था। जापान के समुराई योद्धा इसे ‘हाराकीरी’ कहते है। इस प्रकार ये हिन्दुओ के आत्मघाती हमलावर थे। जहाँ जहाँ भी ऐसा होता वहाँ उन योद्धाओं की याद में पत्थर लगा दिये जाते जिनको “पालिया” कहा जाता था। ये पत्थर अभी भी आप गुजरात और राजस्थान के चारणों के पुराने गाँवो में देख सकते है।
 
ये पालिये सैकड़ों की तादाद में हर छोटे मोटे गाँवो में लगे हुए है और इस बात की पुष्टि करते है कि सैकड़ों युद्ध हुए थे। परंतु अब ये पालिये ही रह गए हैं। लिखित इतिहास को काफी हद तक नष्ट कर दिया गया है।
 
चारणों का युद्ध इतिहास पूरी तरह से मिटाने की पुरजोर कोशिश इसलिए हुई क्योंकि युद्ध मे वीरता का सीधा जुड़ाव गौरव से है। अतः जनसंख्या में बड़ी जातियां ये नही चाहती थी कि कोई ये गौरव उनसे छीने । अतः चारणों को निरंतर हाशिये पर धकेलने की कोशिशें हुई और अभी तक जारी है।
 
दरअसल ये ऐसी जाति थी जिसने अपने आप मे ब्राह्मणों और क्षत्रियों दोनों के अच्छे गुणों का सम्पूर्ण रूप से समावेश कर अपने आप को इस दोनों से अत्यधिक ऊंचा उठा लिया और आम जनमानस इन्हें देवताओं के समकक्ष रखने लगा। अतः ईर्ष्या स्वाभाविक थी और इसका दंश चारणों को झेलना पड़ा।
 
दूसरा चारण अत्यधिक युधोन्मादी होने की वजह से निरंतर राजपूतों को लड़ने के लिए कहते जिससे राजपूतों में धीरे धीरे ये धारणा बनने लगी कि ये हमें अनावश्यक युद्धों में झोंकते रहते है और दोनो में दूरियां बढ़ने लगी।
 
अनिल चन्द्र बनर्जी, एक इतिहास के प्रोफेसर, ने कहा कि{{Quote|In them we have a combination of the traditional characteristics of the Brahmin and the Kshatriyas. Like the Brahmins, they adopted literary pursuits and accepted gifts.Like the Rajput, they worshipped Shakti, drank liquor, took meat and engaged in military activities. They stood at the chief portal on occasions of marriage to demand gifts from the bridegrooms, they also stood at the gate to receive the first blow of the sword."<ref name="Banerjee">{{cite book |last=Banerjee |first=Anil Chandra.|title=Aspects of Rajput State and Society |pages=124–125 |year=1983|oclc = 12236372}}</ref>}}
 
== भारतीय साहित्य में योगदान==
एक पूरी शैली साहित्य के रूप में जाना जाता है चरण साहित्य है। के [//en.wikipedia.org/wiki/Dingal Dingal] भाषा और साहित्य के बड़े पैमाने पर मौजूद होने के कारण इस जाति है। [//en.wikipedia.org/wiki/Jhaverchand_Meghani Zaverchand Meghani] बिताते हैं Charani साहित्य (साहित्य) में तेरह उपशैलियों:
[//en.wikipedia.org/wiki/Dingal Dingal] भाषा शांति काल मे चारण वीरगति को प्राप्त योद्धाओं पर एक भाषा विशेष में वीर रस की कविताएं लिखती थी। इस भाषा को “डिंगल” कहते थे। इसका अर्थ होता है भारी-भरकम क्योंकि यह कविता अत्यंत भारी, जोशीली और डरावनी सी आवाज़ में बोली जाती थी और इसकी एक बेहद विशिष्ट शैली होती थी जो अब लुप्त हो चुकी है और अब केवल विरूपण देखने को मिलता है।
* प्रशंसा में गीत के देवी देवताओं (''stavan'')
 
* प्रशंसा में गीत के नायकों, संतों और संरक्षक (''birdavalo'')
1000 ईस्वी के आसपास में डिंगल भाषा में लिखे हुए इस छद को पढ़े
* विवरण के युद्ध (''varanno'')
 
* Rebukes के ढुलमुल महान राजाओं और पुरुषों के लिए जो उनकी शक्ति का उपयोग बुराई के लिए (''upalambho'')
तीखा तुरी न मोणंया, गौरी गले न लग्ग।
* मजाक का एक स्थायी विश्वासघात की वीरता (''thekadi'')
 
* प्रेम कहानियों
जन्म अकारथ ही गयो, भड़ सिर खग्ग न भग्ग।।
* अफसोस जताया के लिए मृत योद्धाओं, संरक्षक और दोस्तों (''marasiya'' या ''vilap काव्य'')
 
* प्रशंसा के प्राकृतिक सौंदर्य, मौसमी सुंदरता और त्योहारों
अर्थात
* विवरण हथियारों के
 
* गीत की प्रशंसा में शेर, घोड़े, ऊंट और भैंस
यदि आपने अपने जीवन में तेज घोड़े नही दौड़ाये, सुंदर स्त्रियों से प्रेम नही किया और रण में शत्रुओं के सर नही काटे तो फिर आपका यह जीवन व्यर्थ ही गया।
* बातें के बारे में शिक्षाप्रद और व्यावहारिक चतुराई
 
* प्राचीन महाकाव्यों
एक और उदाहरण देखिए
* गाने का वर्णन पीड़ा में लोगों की अकाल के समय और प्रतिकूल परिस्थितियों
 
अन्य वर्गीकरण के Charani साहित्य हैं Khyatas (इतिहास), Vartas और Vatas (कहानियां), रासो (मार्शल महाकाव्यों), Veli - ''Veli कृष्ण Rukman री'', दोहा-छंद (छंद).
लख अरियाँ एकल लड़े, समर सो गुणे ओज,
*सुखवीर सिहँ कविया की राजस्थानी भाषा में कविताएँ वर्तमान समय मे भाषा को अधिकार व मान्यता दिलाने की बात करती है -
 
मीठो गुड़ मिश्री मीठी, मीठी जेडी खांड
बाघ न राखे बेलियां, सूर न राखे फौज।
मीठी बोली मायडी और मीठो राजस्थान ।।
 
अर्थात
 
चाहे लाखों शत्रु ही क्यों न हो एक योद्धा उसी तेज़ के साथ युद्ध करता है। जिस प्रकार बाघ को शिकार के लिए साथियों की जरूरत नही होती उसी प्रकार एक योद्धा भी युद्व के लिए फौज का मोहताज नही होता।
 
इस प्रकार के दोहो और कविताओं से आने वाली पीढ़ियों को युद्ध के लिए निरंतर प्रेरित किया जाता था।
 
युद्धकाल में ये जाति हिन्दू सेनाओं में अग्र पंक्ति में युद्ध करती थी।
 
इस प्रकार इस जाति में ब्राह्मणों और क्षत्रियों दोनों के गुण अपने पूरी शक्ति के साथ विद्यमान होते थे|
 
यही कारण है कि इतिहासकार इनको ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनो ही जातियों से श्रेष्ठ मानते है और आम जन मानस में इन्हें अपनी विशेषताओं के कारण देवताओं का दर्जा प्राप्त है।
 
आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने अपने मशहूर ऐतिहासिक उपन्यास "गोली" में लिखा है कि राजपूत सम्मान तो ब्राह्मणों का भी करते थे परंतु चारणों की तो बात ही कुछ और थी। बड़े बड़े राजा महाराजा इनकी पालिकयों को कंधा तक लगाते थे और कई कई मील सामने जाकर अगुवाई करते थे। इनको हाथी पर बैठा कर खुद नीचे आगे आगे चलते थे। ऐसा सम्मान और किसी जाति को प्राप्त नही था।
 
जो राजपूत चारणों को अत्यधिक सम्मान नही देता था उसको राजपूत ही नही माना जाता था।
 
भगवत गीता, रामायण और महाभारत में चारणों की उत्पत्ति देवताओं के साथ बतायी गयी है।
 
आइने अकबरी में अकबर के इतिहासकार अबुल फ़ज़ल ने लिखा है कि चारण अच्छे कवि और बेहतर योद्धा होते है। उसने सूरत के एक चारण ठाकुर का भी जिक्र किया है जिसके पास 500 घुड़सवार सैनिकों का दस्ता और 4000 पैदल सिपाही हर वक्त रहा करते थे।
 
पुराणों को लिखने का श्रेय भी चारणों को दिया जाता है (स्रोत: आईएएस परिक्षा हेतु Tata McGraw Hill की इतिहास की पुस्तकें)
 
ये किले के द्वार पर हठ कर के अड़ जाते थे और भले राजा स्वयं किला छोड़ कर चला गया हो, शत्रुओं को भीतर नही जाने देते थे। इनकी इसी हठ के कारण कई बार ये सिर्फ अपने परिवार के साथ ही शत्रुओं से भिड़ जाते थे और पूरा कुटुंब लड़ता हुआ मारा जाता। एक बार औरंगजेब ने उदयपुर के जगदीश मंदिर पर हमला किया तो उदयपुर महाराणा अपनी समस्त फ़ौज और जनता के साथ जंगलों में चले गए परंतु उनका चारण जिसका नाम बारहठ नरुजी था, वहीं अड़ गया और औरंगजेब की सेना के साथ लड़ता हुआ अपने पूरे कुटुंब के साथ मारा गया। कहते है उसने कदंब युद्ध किया जिसमें की सर कटने के बाद भी धड़ लड़ता रहता है। उसके पराक्रम को देख कर जहां इनका धड़ गिरा वहाँ मुस्लिम योद्धाओं ने सर झुकाया और उनका एक स्थान बना दिया। जहां उनका सर गिरा वहाँ हिंदुओ ने समाधि बना दी और उस पर महादेव का छोटा सा मंदिर बना दिया। इस आशय का एक शिलालेख अभी भी जगदीश मंदिर के बाहर लगा हुआ है जिसकी कोई देखरेख नही करता। इनका आदमकद फ़ोटो जो कि जगदीश मंदिर में लगा हुआ था, भी महाराणा के वंशजों ने हटवा दिया क्योंकि उनके पूर्वज तो किला छोड़ कर चले गये थे और ये वीरगति को प्राप्त हुए तो इनकी ख्याति अत्यधिक बढ़ गयी थी जो महाराणा के वंशजों को रास नही आई।
 
इस जाति की महिलाओं ने सैकड़ों बार राजपूत सेनाओं का नेतृत्व कर बाहरी आक्रमणकारियो को हराया और ये राजपूतो में पूजनीय होती थी। आपने राजपूत करणी सेना का नाम तो सुना ही होगा। ये करणी जी चारण जाति में उत्पन्न देवी है। इनका मंदिर देशनोक में है जो कि राजस्थान में बीकानेर के पास है । देखें गूगल पर।
 
इस जाति की वजह से 800 वर्षो तक राजपूतो ने मुस्लिम आक्रमणकारियो से लोहा लिया। और लगातार युद्ध जीते। इस आशय का एक पत्र जो कि कर्नल जेम्स टॉड ने ब्रिटेन की महारानी को लिखा था आज भी उदयपुर के सिटी पैलेस म्यूजियम में दर्शनार्थ रखा हुआ है।
 
चारणों और राजपूतों के खानपान, वेशभूषा और रीतिरिवाजों में कोई फर्क नही है। इसी कारण से चारणों को दूसरी जातियां राजपूत ही समझती रहीं है। इस कारण से चारणों के बारे में हिंदुस्तान के अधिकतर राज्यों के निवासी हमेशा अनभिज्ञ रहे और इनको भी राजपूत समझते रहे।
 
इस जाति के बारे में एक प्रसिद्ध दोहा है, जो इस प्रकार है
 
आवड़ तूठी भाटिया, श्री कामेही गौड़ा,
 
श्री बरबर सिसोदिया,श्री करणी राठौड़ां।
 
अर्थात भाटी राजपूतों को राज, चारण देवी आवड़ ने दिया, श्री कामेही देवी ने राज गौड़ राजपूतों को दिया,श्री बरबर जी ने राज सीसोदियो को दिया,और श्री करणी जी ने राठोड़ों को।
 
ये सभी राज्य उपरोक्त चारण देवियों ने राजपूतो को दिये।
 
मामड़जी चारण की बेटी आवड़ ने सिंध प्रान्त के सूमरा नामक मुस्लिम शासक का सिर काट कर उसका राज्य भाटी राजपूतों के मुखिया तनु भाटी को दे दिया। उस राजा ने तनोट नगर बसाया और माता की याद में तनोट राय (तनोट की माता) मंदिर का निर्माण करवाया। (संदर्भ नीचे देखें)
 
जुर्गन शाफलेचनर की पुस्तक हिंगलाज देवी (Hinglaj Devi) से साभार।
 
आवड़ ने मुस्लिम शासक हम्मीर सूमरा के शक्तिशाली सेनापति बाखा जो कि काले भैंसे के समान भयंकर दिखता था का सिर काटकर उसका रक्तपान किया और फिर अपनी चारण सेना लेकर सूमरा पर टूट पड़ी और उसका वध कर दिया। आवड़ बाहर से आने वाले हूणं आक्रमणकारियो के भी सर काट डालती थी। एक युद्ध में उसने बावन हुणों का वध किया। आने वाले कई वर्षों तक हूणों के हमले रुक गये।
 
जिस समय आवड़ ये युद्ध सिंध प्रांत में लड़ रही थी उसी समय उसकी सबसे छोटी बहन खोडियार (The Criple) कच्छ के रण में अरब आक्रमणकारियों से युद्ध कर रही थी जिसमे हिन्दू सेनाओं को विजय प्राप्त हुई। कहते है खोडीयार ने अपने रिज़र्व धनुर्धारियों को एकदम से युद्ध मे उतारा जिससे शत्रुओं को लगा कि हज़ारों बाणों की वर्षा कोई अदृश्य धनुर्धारी कर रहे हों। आज पूरा गुजरात खोडीयार का उपासक है। खोडीयार भावनगर राज घराने की कुलदेवी भी है। ये युद्ध 8वीं शताब्दी के आसपास हुए थे। ये खोडीयार चारणों की सबसे शक्तिशाली खांप जिसे वर्णसूर्य (जातियों के सूर्य, अपभ्रंश वणसूर) कहा जाता है और जिनका कभी सौराष्ट्र के चौरासी गाँवों पर शासन था, कि भी कुलदेवी है।
 
ये कुल सात बहने थी और सातों जब एक साथ युद्ध के मैदान (जो किअक्सर कच्छ का रण या थार का रेगिस्तान होता था) में प्रवेश करतीं तो दूर से इनके हवा में हिलते काले वस्त्रों, काले अश्वों और चमकते शस्त्रों के कारण ये ऐसी दिखाई देतीं जैसे सात काले नाग एक साथ चल रहे हो। अतः आम जनमानस में ये नागणेचीयां माता अर्थात नागों के जैसी माताएं कहलाईं। इन सातो देवियों की प्रतिमा एक साथ होती है। इन्हें आप जोधपुर के मेहरानगढ़ किले के चामुंडा मंदिर में देख सकते हैं। आजकल इनके इतिहास को भी तहस नहस लड़ने की पुरजोर शाजिशें चल रही है और उल्टी सीधी किताबें भी लिखी जा रही है।
 
इसी जाति में मोमाय माता का जन्म हुआ। ये महाराष्ट्र में मुम्बादेवी कहलाईं और इन्ही के नाम पर मुंबई शहर का नाम पड़ा।
 
बीकानेर के संस्थापक राव बीका को बीकानेर का राज्य करणी माता के आशीर्वाद से प्राप्त हुआ और उन्होंने करनी माता के लिये देशनोक में मंदिर का निर्माण भी करवाया। करणी माता ने ही जोधपुर के मेहरानगढ़ किले और बीकानेर के जूनागढ़ किले की नींव रखी और यही दोनों दुर्ग आज भी राठौड़ों के पास है जबकि बाकी राजपूतों के सभी किले उनके हाथ से जा चुके हैं। आम जनमानस इसे भी करणी का चमत्कार मानता है।
 
बिल गेट्स की सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने साम्राज्यों और युद्धों पर आधारित अपने विश्वविख्यात कंप्यूटर गेम ‘साम्राज्यों का युग’ (Age of Empires) में करणी माता को श्रद्धांजलि देते हुए उनका एक wonder (चमत्कार) बनाया है जो गेम में बनने के बाद साम्राज्य जीतने में मदद करता है। लिंक है Karni Mata
 
नारी सशक्तिकरण की शुरुआत चारणों ने 7वीं शताब्दी में ही कर दी थी। इनकी बेटियां जीती जागती देवियों के रूप में पूजी जाने लगी थीं।
 
एक और सत्य घटना:
 
1965 के भारत पाक युद्ध मे चारण देवी माँ आवड़ के तनोट स्थित मंदिर जिसे तनोटराय (अर्थात तनोट की माता) के नाम से जाना जाता है, में पाकिस्तान ने 3000 बम भारतीय सेना की टुकड़ी पर गिराए पर एक भी बम नही फटा। इसे सेना ने माता का भारी चमत्कार माना। आज भी माता आवड़ को सेना और BSF की आराध्य देवी माना जाता है। हर शाम BSF के जवान माँ की बेहद ओज पूर्ण आरती करते है जो देखने लायक होती है।
 
इस मंदिर के चमत्कार के आगे नतमस्तक हो गया था पाकिस्तानी ब्रिगेडियर; भारत सरकार से मांगी थी दर्शन की अनुमति
 
बाद में इस अत्यंत विलक्षण जाति की अत्यधिक ख्याति देख दूसरी जातियां जो सांख्य बल में इनसे अधिक थीं , इनसे ईर्ष्या करने लग गयीं। इससे चारणों के प्रति षडयंत्र होने लगे। मसलन एक ब्राह्मण ने मेवाड़ राज्य के शासक महाराणा कुम्भा से कह दिया कि उसका वध एक चारण करेगा। जिससे डरे हुए कुंभा ने सभी चारणों को मेवाड़ से चले जाने को कहा। बाद में एक चारण के आश्वस्त करने पर वापस सारी जागीरे बहाल की।
 
महाराणा हमीर के जन्म के समय एक चारण देवी ने भविष्यवाणी की थी कि हमीर का यश सब ओर फैलेगा और वो राजा बनेगा। इस पर हमीर की माँ ने कहा कि है देवी यह तो असम्भव है। परंतु असम्भव सम्भव हुआ और हमीर राजा बना। ये गाथा आज भी कुम्भल गढ़ के लाइट एंड साउंड शो में दिखाई जाती है। आप यूट्यूब पर देख सकते हैं।
 
राजपूतों के लिए चारण दुधारी तलवार के समान थे। पक्ष में लड़ते तो शत्रुओं पर कहर बन कर टूट पड़ते और आत्मघाती हमलावर तक बन जाते।
 
वहीं जब अपनी जिद पर अड़ जाते तो राजपूतों के लिए मुश्किल बन जाते। खासकर शादी ब्याह के मौकों पर जब अपनी मांगे पूरी न होने पर रंग में भंग कर देते। युद्ध और त्रगु की धमकी देते। ऐसी घटनाओं से राजपूतों और चारणों में दूरियां बढती गयीं। अब चारण सिर्फ उन्हीं राजपूतों के यहाँ जाते थे जहाँ उनका मान सम्मान बरकरार था। इससे अधिकतर राजपूतों का पतन होता गया जो आज तक जारी है। इसका कारण है कि चारण राजपूतों के गुरू भी थे और उन्हें बचपन से ही वीरता के संस्कार देते थे। बच्चों को बचपन से ही कविताओं, गीतों और दोहो इत्यादि के द्वारा बताया जाता था कि उनके पूर्वज कितने बड़े योद्धा थे और उन्हें भी ऐसा ही बनना है। ये कवित्त चारण स्वयं लिखते थे और इसमे अतिश्योक्ति जानबूझकर की जाती थी क्योंकि ये मानव का स्वभाव है कि वह महामानव का अनुसरण करता है न कि साधारण मनुष्य का। यही कारण है कि हम फिल्मो में नायक को पसंद करते हैं। महान राजपूत और चारण योद्धाओं पर काव्य की रचना कर चारणों ने उन्हें अमर कर दिया। इसलिये हर राजपूत की ये चाह होती थी कि कोई चारण कवि उस पर कविता लिखे। इसके लिए राजपूत मरने को भी तैयार रहते थे। यही कारण है की इन्हें कविराज भी कहा जाता था।
 
मध्यकाल में भी कई बार चारणों ने राजपूतों को राजा बनाया।
 
जोधपुर के महाराजा मान सिंह ( शासन [[Tel:18031843|1803–1843]]) को चारण ठाकुर जुगता वर्णसूर्य ने राज गद्दी दिलवाई। मान सिंह जब केवल नौ साल के थे उनके बड़े भाई जोधपुर महाराजा भीम सिंह ने उन्हें मारने की कोशिश की क्योंकि उनके पुत्र नही हो रहा था तो उनको लगा कि कहीं मान सिंह बड़ा होकर उनसे राज गद्दी न छीन ले। मान सिंह को उनके चाचा शेर सिंह जोधपुर के किले से निकाल कर कोटड़ा ठिकाने के चारण जुगता वर्णसूर्य के पास जालोर के किले में छोड़ आये। पता चलने पर शेर सिंह की दोनों आँखे उनके भतीजे भीम सिंह ने निकलवा दी और प्रताड़ना देकर मार दिया। मारवाड़ की सेना ने जालौर की घेराबंदी कर दी जो कि 11 साल तक रही। अतः मान सिंह करीब 11 साल तक जालौर के किले में रहे और जुगता वणसूर के प्रशिक्षण की बदौलत उन्होंने भाषाओं, शस्त्र और शास्त्र सभी पर भारी महारथ हासिल कर ली। जुगतो जी ने भारी वित्तीय मदद भी मान सिंह जी को दी। ये सब मदद जुगतो जी ने बिल्कुल निःस्वार्थ की क्योंकि न तो मान सिंह गद्दी के उत्तराधिकारी थे न ही उनके राजा बनने की कोई उम्मीद थी। चौबीसों घंटे जालौर जोधपुर की सेना के घेरे में रहता था और निरंतर हमले होते रहते थे। बाद में दैवयोग से भीम सिंह अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए और मान सिंह राजा बन गए। राजा बनते वक्त मान सिंह ने जुगतो जी से आशीर्वाद लिया और उन्हें कई प्रकार के विशेषाधिकारों से नवाजा जैसे दोहरी ताज़ीम, लाख पसाव, हाथी सिरोपाव और खून माफ आदि। जुगतो जी को हाथी पर बैठा कर स्वयं मान सिंह आगे आगे पैदल चले और किले के अंतिम द्वार तक छोड़ने आये। उनके गांव कोटड़ा में एक दुर्ग का निर्माण करवाया जो आज भी जुगतो जी के वंशजों के पास है जो कि जुगतावत कहलाते है । मान सिंह आगे चल कर जोधपुर के सबस
 
उन्हें बताते की कैसे ये एक इतिहास लिखने की घड़ी है और धर्म की रक्षा एक योद्धा का कर्तव्य है। युद्ध की प्रेरणा देते और फिर युद्ध मे उन्ही के साथ लड़ते थे और इतना भयंकर युद्ध करते की साथी योद्धाओं को भी प्रेरणा मिले। जो चारण त्रगु आदि के बाद भी किसी प्रकार जीवित रह जाते वो वापस आकर अपने साथी योद्धाओं पर कवित्त लिखते और इस प्रकार युद्ध इतिहास की रचना की जाती।
 
गण गौरैयाँ रा गीत भूल्या
आज स्थिति ये है कि स्वयं चारणों को ही अपना इतिहास ठीक से पता नही है और पूछने पर आधे-अधूरे ज्ञान के साथ अपरिपक्व सा जवाब देते हैं। ये भूल गए कि इनके पूर्वज कितने महान थे। ये हिंदुत्व की हार है।
भूल्या गींदड़ आळी होळी नै,
के हुयो धोरां का बासी,
क्यूँ भूल्या मायड़ बोली नै ।।
 
कालबेलियो घुमर भूल्या
चारणों की भाषा “डिंगल” जिसमे कि अधिकतर साहित्य और इतिहास की रचना की गई थी, पहले ही विलुप्त हो चुकी है और अब सिर्फ पाठ्य पुस्तकों में दिखाई देती है।
नखराळी मूमल झूमर भूल्या
लोक नृत्य कोई बच्या रे कोनी
क्यू भूल्या गीतां री झोळी नै,
कै हुयो धोरां का बासी
क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
 
जी भाषा में राणा रुओ प्रण है
चारणों के बारे में यदि आप शोध के इच्छुक हों तो जर्मन या नॉर्डिक स्कॉलर्स के लिखे आर्टिकल पढ़ें क्योंकि वे ही इस जाति को ठीक से समझ पाए हैं। इसका कारण है कि ये वाइकिंग्स (8वीं से 11वीं शताब्दि) के वंशज है और वाइकिंग्स भी योद्धा और कवि थे और चारणों के समकालीन भी थे। वाइकिंग्स और चारणों में काफी समानताए है। चारण विशुद्ध आर्य थे और इनका उदगम मध्य एशिया बताया जाता है जहां से ये सर्वप्रथम बैक्ट्रीया और हिमालय में आये और वहाँ आकर इन्होंने पुराणों आदि की रचना की। गीता, रामायण, महाभारत सभी मे इनका उल्लेख मिलता है। विद्वान होने के कारण क्षत्रियों ने इनको अपने साथ रखना शुरू कर दिया और राजा पृथु ने इन्हें तैलंग राज्य सौंप दिया जहां से ये पूरे उत्तर भारत मे फैल गए।
जी भाषा में मीरां रो मन मन है
जी भाषा नै रटी राजिया,
जी भाषा मैं हम्मीर रो हट है
धुंधली कर दी आ वीरां के शीस तिलक री रोळी नै,
के हुयो धोरां का बासी,
क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
 
घणा मान रीतां में होवै
शुरू के अधिकतर युद्ध हिन्दुओं ने ही जीते थे और वो भी राजपूतों और इनके चारणो की बदौलत। बाद में हिन्दुओं की धर्म ध्वजा सिक्खों, मराठाओं और जाटों ने थाम ली और धर्म को जीवित रखा।
गाळ भी जठ गीतां में होवे
प्रेम भाव हगळा बतलाता
क्यू मेटि ई रंगोंळी नै,
के हुयो धोरां का बासी
क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
 
पीर राम रा पर्चा भूल्या
त्रगु:
माँ करणी री चिरजा भूल्या
खम्माघणी ना घणीखम्मा है
भूल्या धोक प्रणाम हमझोळी नै
के हुयो धोरां का बासी,
क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
 
बिन मेवाड़ी मेवाड़ कठै
आने वाली पीढ़ियों के लिए ये विश्वास करना भी मुश्किल होगा कि कभी ऐसे स्त्री-पुरुष भी थे जो छोटी सी अनबन पर पलक झपकते ही अपने शरीर के टुकड़े टुकड़े कर देते। खून की नदी बहने लगती और दृश्य देखने वाला अपने होश खो बैठता।
मारवाड़ री शान कठै
मायड़ बोली रही नहीँ तो
मुच्चयाँळो राजस्थान कठै ।।
 
(थारी मायड़ करे पुकार जागणु अब तो पड़सी रै - Repeat )
क्योंकि जंगे हमेशा जीतने के लिए ही नही लड़ी जातीं बल्कि इसलिए भी लड़ी जाती है ताकि उम्मीद जिंदा रहे कि कोई तो है जो लड़ रहा है।
 
- सुखवीर सिंह कविया
जो क़ौमें अपने इतिहास को भुला देती है, अपने पूर्वजों के बलिदान को भुला देती है, अपने योद्धाओं और विद्वानों की कद्र नही करती उन्हें अंततः गुलाम बना दिया जाता है।
 
== सन्दर्भ ==
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==इन्हें भी देखें==
*[[चारण]]
*[[भाट]]
*राजपूत
*करणी माता
*हिंगलाज माता
*
 
==बाहरी कड़ियाँ==
*[https://web.archive.org/web/20171122171036/http://www.charans.org/charan-shakha-parichay/ चारणों की विभिन्न शाखाओं का संक्षिप्त परिचय] (मैं चारण हूँ)
 
[[श्रेणी:भारत की मानव जातियाँ]]