"भारत का सैन्य इतिहास": अवतरणों में अंतर

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प्राचीन काल से ही भारत में सुप्रशिक्षित, सुसंगठित तथा युद्ध कला में निपुण सेना थी। इसके उल्लेख [[महाकाव्य|महाकाव्यों]], [[अर्थशास्त्र (ग्रन्थ)|अर्थशास्त्र]], [[शुक्रनीति]], जैन व बौद्ध ग्रंथों, यूनानी ग्रंथों, अभिलेखों जैसे, [[हाथी गुम्फा अभिलेख]], [[रुद्रदमन का गिरनार शिलालेख|रूद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख]], इत्यादि में मिलते हैं।
 
[[वैदिक काल]] में सेना के तीन अंग होते थे- पदाति (पैदल), रथ एवं अश्व। महाकाव्य काल में और [[मौर्य राजवंश|मौर्य काल]] में [[चतुरंगिणी सेना]] का आरम्भिक तथा विकसित रूप देखने को मिलता है। [[गुप्त राजवंश|गुप्तकाल]] तक आते-आते राज्य की संगठित सेना का स्थान सामन्ती सेना ने ले लिया। परन्तु सेना का संगठन प्रायः मौर्यकालीन ही रहा। केवल पदों के नामों में परिवर्तन आया। [[रथ सेना]] गुप्तकाल में भी सेना का एक महत्त्वपूर्ण अंग थी। [[अश्व सेना]] भी युद्ध में महत्त्वपूर्ण योगदान देती थी परन्तु सीथियन लोगों की सजग एवं चपल अश्व सेना का प्रभाव कम दिखाई देता है। [[हस्ति सेना]] का प्रयोग भी गुप्तकाल एवं गुप्तोत्तर काल में होता था। [[हृवेनसांगह्वेनसांग]] ने भी इसका प्रमाण दिया हैं।
 
==मध्यकाल में भारतीय सैन्य व्यवस्था==