"धनुर्विद्या": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
भारतीय [[सैन्य विज्ञान]] का नाम '''[[धनुर्वेद]]''' होना सिद्ध करता है कि वैदिककाल से ही प्राचीन भारत में धनुर्विद्या प्रतिष्ठित थी। संहिताओं और ब्राह्मणों में वज्र के साथ ही धनुष बाण का भी उल्लेख मिलता है। कौशीतकि ब्राह्मण में लिखा है कि धनुर्धर की यात्रा धनुष के कारण सकुशल और निरापद होती है। जो धनुर्धर शास्त्रोक्त विधि से बाण का प्रयोग करता है, वह बड़ा यशस्वी होता है। भीष्म ने छह हाथ लंबे धनुष का प्रयोग किया था। [[रघुवंशम्|रघुवंश]] में [[राम]] और लक्ष्मण के धनुषों के टंकार का वर्णन और [[अभिज्ञानशाकुन्तलम्|अभिज्ञानशाकुंतलम्]] में दुष्यंत के युद्धकौशल का वर्णन सिद्ध करता है कि [[कालिदास]] को धनुर्विद्या की अच्छी जानकारी थी। भारत के पुराणकालीन इतिहास में धनुर्विद्या के प्रताप से अर्जित विजयों के लिए राम ,कर्ण और अर्जुन का नाम सदा आदर से लिया जाएगा। विलसन महोदय का कथन सच है कि हिंदुओं ने बहुत ही परिश्रम और अध्यवसाय पूर्वक धनुर्विद्या का विकास किया था और वे घोड़े पर सवार होकर बाण चलाने से सिद्धहस्त थे।
 
धनुषबाण की एक विशेषता यह थी कि इसका उपयोग चतुरंगिणी सेना के चारों अंग कर सकते थे। भारत में धनुष की डोरी जहाँ कान तक खींची जाती थी वहाँ यूनान में सीने तक ही खींची जाती थी।