"द्रोणाचार्य": अवतरणों में अंतर
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{{ज्ञानसन्दूक महाभारत के पात्र|width1=|नाम=द्रोण|Image=Dronacharya as commander in chief. jpg.jpg|अन्य नाम=|देवनागरी=|संदर्भ ग्रंथ=[[महाभारत]]|उत्त्पति स्थल=[[गुड़गांव]]|व्यवसाय=[[आचार्य]]|मुख्य शस्त्र=[[धनुष]] [[बाण]]|राजवंश=|माता और पिता=[[भरद्वाज]] [[ऋषि]]<br />[[घृतार्ची]] [[अप्सरा]]|भाई-बहन=|जीवनसाथी=[[कृपि]]|संतान=[[अश्वत्थामा]]|Caption=[[द्रोणाचार्य]] [[कौरव]] [[सेना]] के [[सेनापति]] के रूप में।|width2=}}
'''द्रोणाचार्य''' ऋषि [[भारद्वाज]] तथा [[घृतार्ची]] नामक [[अप्सरा]] के पुत्र तथा धर्नुविद्या में निपुण [[परशुराम]] के शिष्य थे।<ref>{{cite book |last1=Mittal |first1=J. P. |title=History Of Ancient India (a New Version)From 4250 Bb To 637 Ad |date=2006 |publisher=Atlantic Publishers & Dist |isbn=9788126906161 |url=https://books.google.co.in/books?id=rrh4tY3v2A4C&pg=PA472&dq=dronacharya&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwi9koXnjcHcAhWGvo8KHSjvD5EQ6AEIRDAG#v=onepage&q=dronacharya&f=false |accessdate=28 जुलाई 2018 |language=en |archive-url=https://web.archive.org/web/20180728131211/https://books.google.co.in/books?id=rrh4tY3v2A4C&pg=PA472&dq=dronacharya&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwi9koXnjcHcAhWGvo8KHSjvD5EQ6AEIRDAG#v=onepage&q=dronacharya&f=false |archive-date=28 जुलाई 2018 |url-status=live }}</ref> कुरू प्रदेश में पांडु के पाँचों पुत्र तथा [[धृतराष्ट्र]] के सौ पुत्रों के वे गुरु थे। महाभारत युद्ध के समय वह कौरव पक्ष के सेनापति थे। गुरु द्रोणाचार्य के अन्य शिष्यों में [[एकलव्य]] का नाम उल्लेखनीय है। उसने द्रोणाचार्य द्वारा गुरु दक्षिणा मांगे जाने पर अपने दाएं हाथ का अंगूठा काट कर दे दिया। कौरवो और पांडवो ने द्रोणाचार्य के आश्रम मे ही अस्त्रो और शस्त्रो की शिक्षा
==जन्म==
[[महाभारत]] की कथा के अनुसार [[महर्षि भरद्वाज]] एकबार नदी में स्नान करने गए। स्नान के समाप्ति के बाद उन्होंने देखा की अप्सरा [[घृताची]] नग्न होकर स्नान कर रही है। यह देखकर वह कामातुर हो परे और उनके शिश्न से बीर्ज टपक पड़ा। उन्हीने ये बीर्ज एक द्रोण कलश में रखा, जिससे एक पुत्र जन्मा। दूसरे मत से कामातुर भरद्वाज ने [[घृताची]] से [[सम्भोग|शारीरिक मिलन]] किया, जिनकी योनिमुख द्रोण कलश के मुख के समान थी। द्रोण (दोने) से उत्पन्न होने का कारण उनका नाम द्रोणाचार्य पड़ा।
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