"अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'": अवतरणों में अंतर

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== कार्य ==
बेहद जानकार और विद्वान शायर के तौर पर अपनी रचनाओं के जरिए वह स्व-अनुभूतियों और आधुनिक वक्त की समस्याओं को समझने की कोशिश करते नजर आते हैं। शहरयार ने गमन और आहिस्ता-आहिस्ता आदि कुछ हिंदी फ़िल्मों में गीत लिखे, लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा लोकप्रियता १९८१ में बनी फ़िल्म [[उमराव जान]] से मिली। "इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं," "जुस्तजू जिस की थी उसको तो न पाया हमने," "दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये," "कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता" - जैसे गीत लिख कर [[हिन्दी सिनेमा|हिंदी फ़िल्म जगत]] में शहरयार बेहद लोकप्रिय हुए हैं।<ref name=ibn7>{{cite news|title=जमीं की गोद में सदा के लिए सो गया शब्दों का चितेरा|url=http://khabar.ibnlive.in.com/news/67143/6/23|accessdate=14 फ़रवरी 2012|publisher=[[न्यूज़ 18|आईबीएन-7]]|date=14 फ़रवरी 2012|place=अलीगढ़|language=हिन्दी|archive-url=https://web.archive.org/web/20120216234727/http://khabar.ibnlive.in.com/news/67143/6/23|archive-date=16 फ़रवरी 2012|url-status=livedead}}</ref>
 
== पुरस्कार एवं सम्मान ==