"गोंडवाना काल": अवतरणों में अंतर

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तदुपरांत मध्य गोंडवाना काल के आंरभ में अथवा आंरभिक ट्राइऐसिक (Triassic) युग में जलवायु में पुन: शीतलता आ गई, जैसा इस काल की शिलाओं के अध्ययन से स्पष्ट विदित होता है। इन शिलाओं में उपस्थित फेल्सपार के कणों में विघटन होकर विच्छेदन (disintegration) हुआ है। विच्छेदन क्रिया मुख्यत: शीतल जलवायुवाले प्रदेशों में तथा विघटन क्रिया समान्य (उष्ण एवं नम) जलवायु के प्रदेशों में अधिक महत्वपूर्ण है। इस काल की शिलाएँ भारत के पंचत्‌ समुदाय, दक्षिणी अफ्रीका के व्यूफर्ट तथा दक्षिणी-पूर्वी आस्ट्रेलिया के हाक्सबरी उपसमुदायों के अंतर्गत मिलती हैं। इसके पश्चात्‌ अंतिम ट्राइएसिक युग में जलवाय उष्ण एवं शुष्क हो गई। इसकी पुष्टि इस काल के लाल वर्ण के बालुकाश्म से होती है जिसमें लौहयुक्त पदार्थों का बाहुल्य तथा वानस्पतिक पदार्थों का पूर्णतया अभाव मरुस्थलीय जलवायु का द्योतक है। भारत में महादेव समुदाय की शिलाएँ इसी काल में निक्षिप्त हुई थीं। मध्य गोंडवाना काल की मुख्य वनस्पति थिनफैल्डिया-टिलोफाईलम (Thinnfeldia Telophylum) है जिसने पूर्वकालीन ग्लासेपटेरिस वनस्पति का स्थान ले लिया था। जीवों में सरीसृपों (reptiles) का पृथ्वी पर सर्वप्रथम आगमन इसी काल में हुआ था कि उभयचरों एवं मीनों का भी बाहुल्य था। इन सब जीवों के जीवाश्म इस काल की निक्षिप्त शिलाओं में मिलते हैं।
 
गोंडवाना काल के अंतिम भाग में, अर्थात्‌ जुरैसिक युग में, जलवायु में पुन: सामान्यता आ गई थी। इस काल की शिलाओं में वानस्पतिक पदार्थ मिलते हैं; परंतु कोयले का निर्माण महत्वपूर्ण नहीं हुआ था। मुख्य वनस्पतियाँ साईकेड, कानीफर एवं फर्न हैं तथा मुख्य जीव स्टेशिया एवं मीन हैं। गोंडवाना काल का अंत अथवा गोंडवाना प्रदेश का विखंडन संभवत: एक भीषण ज्वालामुखी उद्गार से हुआ, जिसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। इस काल में भारतवर्ष में राजमहल उपसमूह तथा दक्षिणी अफ्रीका में स्टार्मबर्ग समुदाय की शिलाओं का निक्षेपण हुआ મા।હ નમસ્તે મજામાં છો