"सर्व धर्म सम भाव": अवतरणों में अंतर

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इस अवधारणा को [[रामकृष्ण परमहंस]] और [[स्वामी विवेकानन्द]]<ref name="long2012" /> के अतिरिक्त [[महात्मा गांधी]]<ref name="yashodharma" /> ने भी अपनाया था। हालाँकि ऐसा माना जाता है कि इस विचार का उद्गम [[वेद|वेदों]] में है, इसका अविष्कार गांधीजी ने किया था। उन्होंने इसका उपयोग पहली बार सितम्बर १९३० में [[हिन्दू धर्म|हिन्दुओं]] और [[मुसलमान|मुसलमानों]] में एकता जगाने के लिए किया था, ताकि वे मिलकर [[ब्रिटिश राज]] का अंत कर सकें।<ref name="yashodharma" /> यह भारतीय [[पंथनिरपेक्षता]] (Indian secularism) के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है, जिसमें धर्म को सरकार एक-दूसरे से पूरी तरह अलग न करके सभी धर्मों को समान रूप से महत्त्व देने का प्रयास किया जाता है।<ref name="desmith" /><ref name="Larson" />
 
सर्व धर्म सम भाव को संत रामवृक्ष जी ने कहा कि धार्मिक सार्वभौमिकता में सभी प्रचलित धर्मो का समान योगदान है तथा बिनां किसी भेदभाव के स्वतंत्रता होनी चाहिए । बिहार के गोपालगंज जिला के नेचुआ जलालपुर में अवस्थित रामबृक्ष धाम में सर्व धर्म का दर्शन होता है।
सर्व धर्म सम भाव को अति-रूढ़िवादी हिन्दुओं के एक छोटे-से हिस्से ने यह खारिज कर दिया है कि धार्मिक सार्वभौमिकता के चलते हिंदू धर्म की अपनी कई समृद्ध परंपराओं को खो दिया है।<ref name="long2007" />{{rp|60}}
 
== संदर्भ ==