"सोमनाथ मन्दिर": अवतरणों में अंतर
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यह मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। अत्यंत वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् लौहपुरुष [[सरदार वल्लभ भाई पटेल]] ने करवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति [[ डॉ राजेंद्र प्रसाद जी]] ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मंदिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया।
सोमनाथजी के मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबन्ध किया है। यह तीर्थ पितृगणों के [[श्राद्ध]], नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। [[चैत्र]], [[भाद्रपद]], [[कार्तिक]] माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस [[त्रिवेणी]] स्नान का विशेष महत्व है।
== किंवदंतियॉं ==
प्राचीन हिन्दू ग्रंथों के अनुसार में बताये कथानक के अनुसार सोम अर्थात् चन्द्र ने, दक्षप्रजापति राजा की २७ कन्याओं से विवाह किया था। लेकिन उनमें से रोहिणी नामक अपनी पत्नी को अधिक प्यार व सम्मान दिया कर होते हुए अन्याय को देखकर क्रोध में आकर दक्ष ने [[चंद्रदेव]] को शाप दे दिया कि अब से हर दिन तुम्हारा तेज (काँति, चमक) क्षीण होता रहेगा। फलस्वरूप हर दूसरे दिन चंद्र का तेज घटने लगा। शाप से विचलित और दु:खी सोम ने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी। अंततः शिव प्रसन्न हुए और सोम-चंद्र के श्राप का निवारण किया। सोम के कष्ट को दूर करने वाले प्रभु शिव का स्थापन यहाँ करवाकर उनका नामकरण हुआ "सोमनाथ"।
ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे। तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आँख जानकर धोखे में तीर मारा था। तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।
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इसके बाद गुजरात के राजा भीम और [[मालवा]] के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1297 में जब [[दिल्ली सल्तनत]] ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया। मुगल बादशाह [[औरंगजेब]] ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मन्त्री [[सरदार वल्लभ भाई पटेल]] ने बनवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति [[शंकर दयाल शर्मा]] ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
१९४८ में [[प्रभासतीर्थ]], 'प्रभास पाटण' के नाम से जाना जाता था। इसी नाम से इसकी तहसील और नगर पालिका थी। यह [[जूनागढ़]] रियासत का मुख्य नगर था। लेकिन १९४८ के बाद इसकी तहसील, नगर पालिका और तहसील कचहरी का वेरावल में विलय हो गया। मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा। लेकिन सन १०२६ में महमूद गजनी ने जो शिवलिंग खंडित किया, वह यही आदि शिवलिंग था। इसके बाद प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को १३०० में [[अलाउद्दीन]] की सेना ने खंडित किया। इसके बाद कई बार मंदिर और शिवलिंग को खंडित किया गया। बताया जाता है [[आगरे का किला|आगरा के किले]] में रखे देवद्वार सोमनाथ मंदिर के हैं। महमूद गजनी सन १०२६ में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साथ ले गया था।
सोमनाथ मंदिर के मूल मंदिर स्थल पर मंदिर ट्रस्ट द्वारा निर्मित नवीन मंदिर स्थापित है। राजा [[कुमार पाल]] द्वारा इसी स्थान पर अन्तिम मंदिर बनवाया गया था। सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री [[उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर]] ने १९ अप्रैल १९४० को यहां उत्खनन कराया था।
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== तीर्थ स्थान और मन्दिर ==
मन्दिर संख्या १ के प्रांगण में [[हनुमान]]जी का मंदिर, पर्दी विनायक, नवदुर्गा खोडीयार, महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित [[सोमनाथ]] ज्योतिर्लिग, अहिल्येश्वर, अन्नपूर्णा, गणपति और काशी विश्वनाथ के मंदिर हैं। अघोरेश्वर मंदिर नं. ६ के समीप भैरवेश्वर मंदिर, महाकाली मंदिर, दुखहरण जी की जल समाधि स्थित है। पंचमुखी महादेव मंदिर कुमार वाडा में, विलेश्वर मंदिर नं. १२ के नजदीक और नं. १५ के समीप राममंदिर स्थित है। नागरों के इष्टदेव हाटकेश्वर मंदिर, देवी हिंगलाज का मंदिर, कालिका मंदिर, बालाजी मंदिर, नरसिंह मंदिर, नागनाथ मंदिर समेत कुल ४२ मंदिर नगर के लगभग दस किलो मीटर क्षेत्र में स्थापित हैं।
== बाहरी क्षेत्र के प्रमुख मन्दिर ==
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