"निर्वात नली": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Elektronenroehren-auswahl.jpg|350px|right|thumb|आधुनिक निर्वात नलियाँ (अधिकांशतः लघु आकार वाली)]]
[[इलैक्ट्रॉनिक्स|इलेक्ट्रॉनिकी]] में [[निर्वात नली]] एक ऐसी युक्ति है जिसका कार्य [[निर्वात]] में [[विद्युत धारा]] के प्रवाह पर आधारित है। इसे [[एलेक्ट्रॉन नलिका|एलेक्ट्रॉन नली]] ([[उत्तरी अमेरिका]]), तापायनिक वॉल्व (यूके में) या केवल 'ट्यूब' या 'वॉल्व' भी कहते हैं। इनमें एक तप्त फिलामेण्ट (कैथोड) से निकलने वाले [[एलेक्ट्रॉन]] निर्वात में गति करके एनोड पर पहुंचते हैं जो कैथोड की अपेक्षा अधिक वोल्टता पर रखा गया होता है। निर्वात नलियों के प्रादुर्भाव ने एलेक्ट्रॉनिकी के जन्म और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
 
== द्विध्रुवी (डायोड)==
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प्रथम तापायनिक नली को फ्लेमिंग ने सन्‌ 1904 में बनाया था जिसे '''द्विध्रुवी''' (Diode) कहते हैं। जैसा पहले ही लिखा जा चुका है, द्विध्रुवी में दो ध्रुव होते हैं। एक ध्रुव इलेक्ट्रान का निस्सारण करता है और दूसरा पहले ध्रुव की अपेक्षा धन विभव पर रखा जाता है, तब विद्युद्धारा प्रवाहित होती है। परंतु यह धारा एकदिश (यूनि-डाइरेक्शनल) होती है।
 
यदि पट्टिका को ऋणाग्र की अपेक्षा धन विभव पर रखा जाय तो, जैसा ऊपर लिखा जा चुका है, [[इलेक्ट्रान]] धारा प्रवाहित हो जाती है। परंतु यदि विभव को दूसरी दिशा में लगाया जाए, अर्थात्‌ यदि पट्टिका ऋणाग्र की अपेक्षा ऋण विभव पर हो, तो इलेक्ट्रान धारा एकदम नहीं प्रवाहित होगी, क्योंकि बिना पट्टिका को गरम किए पट्टिका से इलेक्ट्रान नहीं निकलेंगे। इस कारण नली में इलेक्ट्रान धारा केवल एक ही दिशा में प्रवाहित की जा सकती है। यदि प्रत्यावर्ती (ऑल्टरनेटिंग) धारा के स्रोत को एक द्विध्रुवी ओर विद्युतीय भार (इलेक्ट्रिकल लोड) के, जैसे किसी प्रतिरोधक (रेज़िस्टर) के, श्रेणीसंबंध (कंबिनेशन) के आर पार लगाया जाय तो धारा केवल एक ही दिश में बहेगी और प्रत्यावर्ती के आधे चक्र में कोई धारा नहीं प्रवाहित होगी। इन दिशाओं में नली प्रत्यावर्ती धारा के बदले विद्युत्‌ को भार में केवल एक दिशा में चलने देती हैं।
 
==== पट्टिक धारा तथा पट्टिक वोल्टता का संबंध ====