"रामायण": अवतरणों में अंतर

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भक्तिपूर्ण आहुतियाँ पाकर [[अग्निदेव]] प्रसन्न हुये और उन्होंने स्वयं प्रकट होकर राजा दशरथ को हविष्यपात्र ([[खीर]], [[पायस]]) दिया जिसे कि उन्होंने अपनी तीनों पत्नियों में बाँट दिया। खीर के सेवन के परिणामस्वरूप कौशल्या के गर्भ से राम का, कैकेयी के गर्भ से [[भरत]] का तथा सुमित्रा के गर्भ से [[लक्ष्मण]] और [[शत्रुघ्न]] का जन्म हुआ।
[[चित्र:Ravi Varma-Rama-breaking-bow.jpg|thumb|right|300px|सीता स्वंयवर (चित्रकार: [[रवि वर्मा]])]]
राजकुमारों के बड़े होने पर [[आश्रम]] की राक्षसों से रक्षा हेतु ऋषि [[विश्वामित्र]] राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग कर अपने साथ ले गये। राम ने [[ताड़का]] और [[सुबाहु]] जैसे राक्षसों को मार डाला और [[मारीच]] को बिना फल वाले [[बाण]]<ref>‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ १८०</ref> से मार कर समुद्र के पार भेज दिया। उधर लक्ष्मण ने राक्षसों की सारी सेना का संहार कर डाला। [[धनुषयज्ञ]] हेतु राजा [[जनक]] के निमन्त्रण मिलने पर [[विश्वामित्र]] राम और लक्ष्मण के साथ उनकी नगरी [[मिथिला]] ([[जनकपुर]]) आ गये। रास्ते में राम ने [[गौतम]] मुनि की स्त्री [[अहल्या]] का उद्धार किया। मिथिला में राजाआकर जनकजब कीराम पुत्रीशिवधनुष [[सीता]]को जिन्हेंदेखकर किउठाने [[जानकी]]का केप्रयत्न नामकरने सेलगे भीतब जानावह जाताबीच हैसे काटूट [[स्वयंवर]]गया का भी आयोजन था जहाँ किऔर [[जनकप्रतिज्ञा]] के अनुसार [[शिवधनुष]] को तोड़ कर राम ने सीता से विवाह किया। राम और सीता के विवाह के साथ ही साथ गुरु वशिष्ठ ने भरत का [[माण्डवी]] से, लक्ष्मण का [[उर्मिला]] से और शत्रुघ्न का [[श्रुतकीर्ति]] से करवा दिया।<ref>‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ ९२-९३</ref>
 
=== अयोध्याकाण्ड ===