"रामायण": अवतरणों में अंतर

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=== किष्किन्धाकाण्ड ===
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राम [[ऋष्यमूक]] पर्वत के निकट आ गये। उस पर्वत पर अपने मन्त्रियों सहित [[सुग्रीव]] रहता था। सुग्रीव ने, इस आशंका में कि कहीं [[बालि]] ने उसे मारने के लिये उन दोनों वीरों को न भेजा हो, [[हनुमान]] को [[राम]] और [[लक्ष्मण]] के विषय में जानकारी लेने के लिये ब्राह्मण के रूप में भेजा। यह जानने के बाद कि उन्हें बालि ने नहीं भेजा है हनुमान ने राम और सुग्रीव में मित्रता करवा दी। सुग्रीव ने राम को सान्त्वना दी कि [[जानकी]] जी मिल जायेंगीं और उन्हें खोजने में वह सहायता देगा साथ ही अपने भाई बालि के अपने ऊपर किये गये अत्याचार के विषय में बताया। राम ने बालि का छलपूर्वक वध कर के सुग्रीव को [[किष्किन्धा]] का राज्य तथा बालि के पुत्र [[अंगद]] को युवराज का पद दे दिया।<ref>‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 634-638</ref>
 
राज्य प्राप्ति के बाद सुग्रीव विलास में लिप्त हो गया और वर्षा तथा शरद् [[ऋतु]] व्यतीत हो गई। राम की नाराजगी पर सुग्रीव ने वानरों को सीता की खोज के लिये भेजा। सीता की खोज में गये वानरों को एक गुफा में एक तपस्विनी के दर्शन हुये। तपस्विनी ने खोज दल को योगशक्ति से समुद्रतट पर पहुंचा दिया जहां पर उनकी भेंट [[सम्पाती]] से हुई। सम्पाती ने वानरों को बताया कि रावण ने सीता को [[लंका]] [[अशोकवाटिका]] में रखा है। [[जाम्बवन्त]] ने हनुमान को समुद्र लांघने के लिये उत्साहित किया।