"रामायण": अवतरणों में अंतर
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हनुमान सीता के पास पहुँचे। सीता ने अपनी [[चूड़ामणि]] दे कर उन्हें विदा किया। वे वापस समुद्र पार आकर सभी वानरों से मिले और सभी वापस सुग्रीव के पास चले गये। हनुमान के कार्य से राम अत्यन्त प्रसन्न हुये। राम वानरों की सेना के साथ समुद्रतट पर पहुँचे। उधर विभीषण ने रावण को समझाया कि राम से बैर न लें इस पर रावण ने विभीषण को अपमानित कर लंका से निकाल दिया। विभीषण राम के शरण में आ गया और राम ने उसे लंका का राजा घोषित कर दिया। राम ने समुद्र से रास्ता देने की विनती की। विनती न मानने पर राम ने क्रोध किया और उनके क्रोध से भयभीत होकर समुद्र ने स्वयं आकर [[राम]] की विनती करने के पश्चात् [[नल]] और [[नील]] के द्वारा पुल बनाने का उपाय बताया।
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{{main|लंकाकाण्ड}}
[[जाम्बवन्त]] के आदेश से [[नल-नील]] दोनों भाइयों ने वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पुल बांध दिया।<ref>‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 709-711</ref> श्री [[राम]] ने श्री [[रामेश्वर]] की स्थापना करके भगवान [[शंकर]] की पूजा की और सेना सहित समुद्र के पार उतर गये। समुद्र के पार जाकर राम ने डेरा डाला। पुल बंध जाने और राम के समुद्र के पार उतर जाने के समाचार से रावण मन में अत्यन्त व्याकुल हुआ। [[मन्दोदरी]] के राम से बैर न लेने के लिये समझाने पर भी रावण का अहंकार नहीं गया। इधर राम अपनी [[वानरसेना]] के साथ [[सुबेल पर्वत]] पर निवास करने लगे। [[अंगद]] राम के दूत बन कर लंका में रावण के पास गये और उसे राम के शरण में आने का संदेश दिया किन्तु रावण ने नहीं माना।
शान्ति के सारे प्रयास असफल हो जाने पर युद्ध आरम्भ हो गया। लक्ष्मण और [[मेघनाद]] के मध्य घोर युद्ध हुआ। [[शक्तिबाण]] के वार से लक्ष्मण मूर्छित हो गये। उनके उपचार के लिये हनुमान [[सुषेण]] वैद्य को ले आये और [[संजीवनी]] लाने के लिये चले गये। गुप्तचर से समाचार मिलने पर रावण ने हनुमान के कार्य में बाधा के लिये [[कालनेमि]] को भेजा जिसका हनुमान ने वध कर दिया। औषधि की पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पर्वत को ही उठा कर वापस
रावण ने युद्ध के लिये [[कुम्भकर्ण]] को जगाया। कुम्भकर्ण ने भी रावण को राम की शरण में जाने की असफल मन्त्रणा दी। युद्ध में कुम्भकर्ण ने राम के हाथों परमगति प्राप्त की। लक्ष्मण ने मेघनाद से युद्ध करके उसका वध कर दिया। राम और रावण के मध्य अनेकों घोर युद्ध हुऐ और अन्त में रावण राम के हाथों मारा गया।<ref>‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 802-807</ref> विभीषण को लंका का राज्य सौंप कर राम, सीता और लक्ष्मण के साथ [[पुष्पकविमान]] पर चढ़ कर अयोध्या के लिये प्रस्थान किया।<ref>‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 455-459</ref>
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