"अलाउद्दीन खिलजी": अवतरणों में अंतर

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== शासन व्यवस्था ==
राज्याभिषेक के बाद उत्पन्न कठिनाईयों का सफलता पूर्वक सामना करते हुए अलाउद्दीन ने कठोर शासन व्यवस्था के अन्तर्गत अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार करना प्रारम्भ किया। अपनी प्रारम्भिक सफलताओं से प्रोत्साहित होकर अलाउद्दीन ने 'सिकन्दर द्वितीय' (सानी) की उपाधि ग्रहण कर इसका उल्लेख अपने सिक्कों पर करवाया। उसने विश्व-विजय एवं एक नवीन धर्म को स्थापित करने के अपने विचार को अपने मित्र एवं दिल्ली के कोतवाल 'अलाउल मुल्क' के समझाने पर त्याग दिया। यद्यपि अलाउद्दीन ने ख़लीफ़ा की सत्ता को मान्यता प्रदान करते हुए ‘यामिन-उल-ख़िलाफ़त-नासिरी-अमीर-उल-मोमिनीन’ की उपाधि ग्रहण की, किन्तु उसने ख़लीफ़ा से अपने पद की स्वीकृत लेनी आवश्यक नहीं समझी। उलेमा वर्ग को भी अपने शासन कार्य में हस्तक्षेप नहीं करने दिया। उसने शासन में इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों को प्रमुखता न देकर राज्यहित को सर्वोपरि माना। अलाउद्दीन ख़िलजी के समय निरंकुशता अपने चरम सीमा पर पहुँच गयी।
 
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== हिन्दुओं के साथ व्यवहार - ==
अलाउद्दीन हिंदुओं के प्रति बहुत ही निर्दयी था l वह प्रत्येक संभव प्रकार से उन्हें पीड़ित करने में कठोर नीतियों का प्रयोग करता था l   बयाना का क़ाज़ी हिन्दुओ के प्रति नीति की व्याख्या करता था, और अपने राज्य में अलाउद्दीन उसी का अनुसरण करता था l क़ाज़ी के अनुसार उनको "खिराज़ गुजार" (भेंट देने वाला) कहा गया हैl और जब कभी माल विभाग का अधिकारी उनसे चाँदी मांगे, तो उन्हें बिना प्रश्न किए पूर्ण विनम्रता तथा सम्मान पूर्वक स्वर्ण उपस्थित करना चाहिए।  यदि मुहस्सिल ( राज-कर वसूल करने वाला) किसी हिंदू के मुंह में थूकना चाहे तो उसे निर्विरोध भाव से मुंह खोल देना चाहिए। ऐसा करने का अर्थ यह है कि ऐसा करने से वह अपनी नम्रता एवम अधीनता तथा आज्ञा पालन एवं सम्मान प्रदर्शित करता है तथा उनकी संपत्ति राजकोष में जमा कर ली जाए l अलाउद्दीन ने अनेक ऐसे कार्य किए जिससे हिंदुओं को निर्धनता एवं पीड़ा का शिकार बनना पड़ा जियाउद्दीन बरनी के अनुसार, अलाउद्दीन ने गर्व के साथ यह विचार व्यक्त किया कि मेरा आदेश पाते ही वे लोग ऐसे भाग जाते हैं जैसे चूहे अपने बिलों में...सर् वुल्ज़ले हेग  के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी ने सारे राज्य में हिंदुओं को निर्धनता तथा पीड़ा के धरlतल पर उतार दिया था।
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== विद्रोहों का दमन ==
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== मृत्यु ==
 
जलोदर रोग से ग्रसित अलाउद्दीन ख़िलजी ने अपना अन्तिम समय अत्यन्त कठिनाईयों में व्यतीत किया और 2 जनवरी 1316 ई. को इसकी मृत्यु हो गई। यह भी कहा जाता है कि अंतिम समय में अलाउद्दीन खिलजी को एक त्वचा रोग (कोढ़) हो गया था जिसके कारण वह बहुत परेशान रहने लगा, अंत में उसके वफादार मलिक काफूर ने अलाउद्दीन के कहने पर ही उसको मुक्ति प्रदान की थी, अलाउद्दीन का मकबरा क़ुतुब मीनार के परिसर में ही स्थित है।