"अरण्यकाण्ड": अवतरणों में अंतर

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[[पंचवटी]] में [[रावण]] की बहन [[शूर्पणखा]] ने आकर [[राम]] से प्रणय निवेदन-किया। [[राम]] ने यह कह कर कि वे अपनी पत्नी के साथ हैं और उनका छोटा भाई अकेला है उसे [[लक्ष्मण]] के पास भेज दिया। [[लक्ष्मण]] ने उसके प्रणय-निवेदन को अस्वीकार करते हुये शत्रु की बहन जान कर उसके नाक और कान काट लिये। [[शूर्पणखा]] ने [[खर-दूषण]] से सहायता की मांग की और वह अपनी सेना के साथ लड़ने के लिये आ गया। लड़ाई में [[राम]] ने [[खर-दूषण]] और उसकी सेना का संहार कर डाला। [[शूर्पणखा]] ने जाकर अपने भाई [[रावण]] से शिकायत की। [[रावण]] ने बदला लेने के लिये [[मारीच]] को [[स्वर्णमृग]] बना कर भेजा जिसकी छाल की मांग [[सीता]] ने राम से की। [[लक्ष्मण]] को [[सीता]] के रक्षा की आज्ञा दे कर [[राम]] [[स्वर्णमृग]] रूपी [[मारीच]] को मारने के लिये उसके पीछे चले गये। [[मारीच]] के हाथों मारा गया पर मरते मरते [[मारीच]] ने [[राम]] की आवाज बना कर 'हा [[लक्ष्मण]]' का क्रन्दन किया जिसे सुन कर [[सीता]] ने आशंकावश होकर [[लक्ष्मण]] को [[राम]] के पास भेज दिया। [[लक्ष्मण]] के जाने के बाद अकेली [[सीता]] का [[रावण]] ने छलपूर्वक हरण कर लिया और अपने साथ [[लंका]] ले गया। रास्ते में [[जटायु]] ने [[सीता]] को बचाने के लिये [[रावण]] से युद्ध किया और [[रावण]] ने उसके पंख काटकर उसे अधमरा कर दिया।
 
[[सीता]] को न पा कर [[राम]] अत्यंत दुखी हुये और विलाप करने लगे। रास्ते में [[जटायु]] से भेंट होने पर उसने [[राम]] को [[रावण]] के द्वारा अपनी दुर्दशा होने व [[सीता]] को हर कर दक्षिण दिशा की ओर ले जाने की बात बताई। ये सब बताने के बाद [[जटायु]] ने अपने प्राण त्याग दिये और राम उसका अंतिम संस्कार करके [[सीता]] की खोज में सघन वन के भीतर आगे बढ़े। रास्ते में [[राम]] ने [[दुर्वासा ऋषि|दुर्वासा]] के शाप के कारण [[राक्षस]] बने [[गन्धर्व]] [[कबन्ध]] का वध करके उसका उद्धार किया और [[शबरी]] के आश्रम जा पहुंचे जहां पर कि उसके द्वारा दिये गये जूठेकंदमूल बेरोंफ़ल को उसके भक्ति के वश में होकर खाया| इस प्रकार राम सीता की खोज में सघन वन के अंदर आगे बढ़ते गये।
 
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