"सरस्वती शिशु मंदिर": अवतरणों में अंतर

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[[राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]] द्वारा संचालित विद्या भारती के विद्यालयों को '''सरस्वती शिशु मंदिर''' एवं ""सरस्वती विद्या मंदिर"" कहते हैं। संघ परिवार सरस्वती शिशु मंदिर की शिक्षा प्रणाली को अभिनव रूप में मानते हुवे इसका प्रसार करता है। इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिध्दि मिली है। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए सरस्वती शिशु मंदिर अच्छा विकल्प स्वीकार किया जा सकता है।
विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के निर्देशन में संचालित विद्यालयों को '''सरस्वती शिशु मंदिर''' एवं ""सरस्वती विद्या मंदिर"" कहते हैं। विद्या भारती सरस्वती शिशु मंदिर की शिक्षा प्रणाली को अभिनव रूप में मानते हुए इनका प्रसार करता है। इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिध्दि मिली है। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए सरस्वती शिशु मंदिर अच्छा विकल्प स्वीकार किया जा सकता है और साथ ही साथ सरस्वती शिशु मन्दिरों में हर वर्ष कई प्रकार के खेल व कार्यक्रम भी होते है, जो की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक भी जाते है साथ ही सरस्वती शिशु मन्दिरों में केवल भैया बहनो की पढाई ही नही बल्कि अनुशाशन पर भी ध्यान दिया जाता है। सरस्वती शिशु मंदिर में छात्रों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान दिया जाता है। विद्यालय का प्रारंभ ही ईश वंदना से होती है जिसमें मंत्रोच्चार से होता है जिसमें एक ओर तो प्रातः काल को पवित्र कर मन को ओज व सकारात्मकता से परिपूर्ण कर दिवस का प्रारंभ किया जाता है। इस प्रार्थना के दौरान ऐसे विद्यार्थी जिनका जन्म दिवस उस दिन होता है उन्हें शुभकामनाएँ भी दी जाती है कुछ विद्यालयों में कुछ सामान्य ज्ञान से जुड़ी बातें भी छात्र अपनी पारी के अनुसार करते हैं। सारी कक्षाएँ बड़े ही सुंदर ढ़ंग से संचालित की जाती है। छात्रों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से उन्हीं के मध्य चुनाव कराकर अध्यक्ष, सेनापति, क्रीड़ा प्रमुख आदि पदों पर विराजित कर उन्हें जिम्मेदारी दी जाती है। अकादमिक ही नहीं खेल, योग, प्राणायाम, बौद्धिक प्रतियोगिताएं इन सभी के माध्यम से विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास का कार्य किया जाता है। कई प्रकार के क्रियाकलापों से यहाँ बच्चों को संस्कारवान एवं कुशाग्र बनाया जाता है। लड़कें-लड़कियाँ एक दूसरे को भैय्या बहिन संबोधित करते हैं तथा गुरूजनो को नमोनमः तथा प्रणाम से अभिवादित किया जाता है। विद्यालय में भारतीय त्यौहार भी मनाए जाते हैं तथा आचार्यों द्वारा विद्यार्थियों के घर संपर्क भी किया जाता है। देश की संस्कृति तथा सभ्यता को बचाए रखने में इन सरस्वती शिशु मंदिर शाखाओं का महती योगदान है। इस प्रकार ये विद्यालय नहीं अपितु मंदिर ही है।
 
सचिन जोशी तथा मैं किरण अय्यर दोनो इसी विद्यालय के छात्र रहे हैं।
 
==इतिहास==