"सवैया": अवतरणों में अंतर
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:टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहैं।
:माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहैं, न जैहैं, न जैहैं॥
[[घनानन्द]] का ये सवैया देखें -
:अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
:तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ, झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं॥
:घनआनन्द प्यारे सुजान सुनौ इत एक ते दूसरो आँक नहीं।
:तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं॥
:हीन भएँ जल मीन अधीन कहा कछु मो अकुलानि समाने।
:नीर सनेही कों लाय अलंक निरास ह्वै कायर त्यागत प्रानै।
:प्रीति की रीति सु क्यों समुझै जड़ मीत के पानि परें कों प्रमानै।
:या मन की जु दसा घनआनँद जीव की जीवनि जान ही जानै।।
==बाहरी कड़ियाँ==
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